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शनिवार, 12 नवंबर 2016

484 ... भ्रष्ट




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष










अनकहे शब्दो के भंवर में
खुद ब खुद फँस जाते,
सपने देखते नही तुम्हारे
जाने फिर क्यों गिनते हैं तारे,
दूर दूर तक थमा सन्नाटा





कई बार ऐसे हालात बनतें हैं, जब जीवन संघर्ष मे
खुद या परिवार को बचाने कि जद्दोजेहद मे विकल्पहीनता का
अहसास होता हैं, तब हम मजबूरन ही सही
जीवन संघर्ष मे खुद को बचाये रखने कि गरज से
भ्रष्टाचार का दामन थाम हि लेते हैं! जब जीवन कि 
नाव बिच समुन्द्र मे फँस जाती हैं, 
स्थापित उसूल और मर्यादायें भी बोझ लगती हैं! 











जिनसे थे दोस्ताने हमारे वो दुश्मनों की मानिंद हो गये
प्यार के पंछी दिल के पिंजरो को भी तोड़ के चले गये

सावन की झड़ी भी अब तेजाबी बारिश क्यो सी लगती है
दिल की हर डगर अब गहरी-गहरी खो सी क्यो लगती है



फिर मिलेंगे .... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव



3 टिप्‍पणियां:

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