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बुधवार, 9 नवंबर 2016

481...निठल्ले का सपना

सादर अभिवादन
दशहरा - दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

आज की मेरी पसंदीदा रचनाएँ.....



उलझन..............शैल अग्रवाल
पर कैसे परोसूँ
प्यार की रसोई
शब्दों की मिठाई
नेह का जल...



घुटना बोलता है,
जब उसे दुख  होता है
साथ छूटने का, साथी जो
उसके अपने थे।
होता है उनको भी दुख


वामना की कामना में
पुरोधिका का त्याग,
क्या यही है अनुराग!


दनदनाय दौड़े मदन, चढ़े बदन पर जाय।
खजुराहो को देखकर, काशी भी पगलाय।।

कैसे कोई अन्न जल, कर सकता बरबाद।
संसाधन साझे सकल, रखना रविकर याद।।


गिरि शिखरों से घिरा हुआ है
तृण कुसुमों से हरा हुआ है
विविध वृक्षों से भरा हुआ है
जैसे शीशम, सेब और साल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।


पुकारो तो सही तुम नाम लेकर 
तुम्हारे घर के बाहर ही खड़े हैं

अहा ! कदमों की आहट आ रही है 
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं 


सालों पहले...
कर पा रहे हैं
कबूतर भी 
तो चिट्ठियों 
को नहीं ले 
जा रहे हैं
एक निठल्ला
इनको कबसे 
गिनता हुवा 
आ रहा है
मन की कूँची 
से अलग 
अलग रंगों 
में रंगे
जा रहा है

इज़ाज़त चाहता है दिग्विजय
सादर

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    प्यारी प्रस्तुति
    पूरे प्यार से
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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