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रविवार, 9 अक्टूबर 2016

450....दूसरों के हादसे, अपने हादसे

नमस्कार 
सुप्रभात 
दोस्तो आज 450 वी 
हलचल प्रस्तुति

                 ठिठोली

चाय की दुकान पर काम करता 8-9 साल का लड़का. छोटी उम्र, मोटी अक्ल. दुकान में भीड़-भाड़ थी. मालिक को ठिठोली सूझी. उसने लड़के से पूछा, ‘‘क्यों रे कितने बाप का?’’ 
लड़का बेचारा क्या जाने, क्या समझे? चुप रहा. परन्तु ऐसे मजाक पर वहां बैठे तमाम लोगों की निगाहें लड़के के ऊपर चिपक गयीं. मालिक ने एक लात मारते हुए फिर पूछा, ‘‘क्यों रे, कितने बाप का, एक या दस?’’


साथ तेरे होकर भी मैं कितनी तुझसे दूर हूं,
हालात के हाथों देखो कितनी मैं मजबूर हूं।

दो कदम चलकर जब तू खुद पास मेरे आया था,
तुझे मेरी ये सादगी और भोलापन ही भाया था,
तूने लोगों से ये सुना था मैं बहुत मगरूर हूँ,
कितनी मैं मजबूर हूं,..।

          

दूसरों के हादसे
शब्द शब्द आँखों से टपकते हैं
उसे कहानी का नाम दो
रंगमंच पर दिखाओ
या तीन घण्टे की फिल्म बना दो  ... !
नाम,जगह,दृश्य से कोई रिश्ता बन जाए
ये अलग बात है !
पर हादसे जब अपने होते हैं
तो उसे कहने के पूर्व
आदमी एक नहीं
सौ बार सोचता है


एक अमेरिकी निकला, भारत के सफ़र पर
पर भीड़ भाड़ के कारण , न मिला होटल में अवसर
न जाने कितने होटलों के लगा चुका था, चक्कर
पर हर जगह उसे निराश मिली, हाउसफुल पढ़कर
एक आदमी मिला, बोला मिल जायेगा रूम, तुम्हे जुगाड़ पर
बस इसके लिए तुम्हे खर्च करने होंगे , कुछ और डालर
व्हाट इज जुगाड़ ? इससे कैसे मिलेगा रूम
दिस इज इंडियन सिस्टम, बस तू ख़ुशी से झूम
इस तरह आदमी ने अमेरिकी को दिलाई राहत


हर इन्सान की अपनी ज़िन्दगी होती है...उसके सुख-दुःख होते हैं...कई आन्तरिक समस्यायें होती हैं, जो कभी उलझती हैं तो कभी सुलझती हैं...। कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें वह किसी से शेयर भी नहीं कर सकता और अगर करने की कोशिश करता भी है तो कई बार मानो क़यामत ही आ जाती है...। इन्हीं सब बातों से घबरा कर अक्सर लोग चुप ही रहते हैं, पर इससे होता क्या है...? कहते हैं न आप किसी की ज़ुबान पर ताला नहीं लगा सकते...ठीक उसी तरह किसी की भेदिया प्रवृति और निगाह पर कोई बन्दिश भी नहीं लग सकती। हमारे समाज में कुछ ऐसी भेदिया निगाहें हैं जो अपने आप ही सब कुछ भाँप लेने का दावा करती हैं...कुछ-कुछ लिफ़ाफ़ा देख कर मजमून भाँप लेने जैसा...

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आज के लिए 
बस इतना ही 
नवरात्रि पर गरबा
का आनन्द लिजिए 

अब दे अनुमति
विरम सिंह 
सादर

3 टिप्‍पणियां:

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