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गुरुवार, 1 सितंबर 2016

412..परीक्षा उत्तर पुस्तिका की आत्मा की कथा यानी उसके भूत की व्यथा

सादर अभिवादन
बिना किसी लाग-लपेट के
सीधे चलते है पसंदीदा रचनाओं की ओर....

बनते-बिखरते
सुलगते- मचलते
गिरते- संभलते
फूल सा महकते
काँच सा चटकते
हसरतों से तकते
ये बेज़ुबां सपने



मैं जानता हूं कि.....ज़हीर कुरेशी
इतना तो तय था कि
अस्मत लुटा के लौटेगी,
सुबह की भूली
अगर रात भर नहीं लौटी।


एक अफसाना..आशा सक्सेना
एक अफसाना सुनाया आपने
गहराई तक पैठ गया मन में
जब पास बुलाया आपने
थमता सा पाया उस पल को
कसक शब्दों की आपके
वर्षों तक बेचैन करती रही




यूँ तो बदलते रहे रंग ओ नूर ज़िन्दगी के, 
बेअसर रहा लेकिन दिल ए किताब मेरा। 
अंधेरों के खेल में कहीं सहमा सा है उजाला, 
हर हाल में है ताज़ा, वो पोशीदा गुलाब मेरा।






पुरानी बकवास नया लिबास
तेरी कहानी 
भी कोई 
छोटी मोटी 
नहीं होती है 
तेरे छपने 
के ठेके से 
शुरु होती है 
मुहर लग कर 
सजा सँवर कर 
लिखने वाले 
तक पहुँचती है


पाँच का मतलब पांच
आज्ञा दें
यशोदा को
सादर

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात दीदी
    इतना तो तय था कि
    अस्मत लुटा के लौटेगी,
    सुबह की भूली
    अगर रात भर नहीं लौटी।
    बहुत अच्छी हलचल
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी। आभार यशोदा जी 'उलूक' की एक पुरानी बकवास को आज के सूत्रों में जगह और चर्चा को उसका शीर्षक देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्दर प्रस्तुतीकरण यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. अति सुन्दर प्रस्तुतीकरण यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना शामिल करने के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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