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बुधवार, 3 अगस्त 2016

383...........मालिक ये हाथ रखें नीचे,हम हाथ उठाना सीख गए


पन्द्रह दिन ही बचे सावन के
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ग़ज़ल के दो श़ेर..
फिर घटा ज़हन के आकाश में छाई हुई है
मेरे चौखट प कोई नज़्म सी आई हुई है

लौट आईं हैं गए दिन की सदायें मुझमें
भीगती कांपती इक शाम भी आई हुई है
-दिनेश नायडू-
पूरी ग़ज़ल पढ़वाऊँगी मेरी धरोहर में

शुरु करते हैं फिछले साल से..

एक साल पहले....
जिन्दगी तो है हकीकत पर टिकी, 
मत इसे जज्बात में रौंदा करो। 

चाँद-तारों से भरी इस रात में, 
उल्लुओं सी सोच मत रक्खा करो।


आसपास के बच्चों के खेलने के लिए जिद करने पर कई बार उनके साथ कार्ड्स खेलना भी होता है। उसमें एक गेम है 'ब्लैक क्वीन'। उसमें सब ब्लैक क्वीन से कितना डरते हैं। एक दिन फील हुआ इस ब्लैक क्वीन के साथ कितना रंगभेद हो रहा है। और फिर बच्चे इसी तरह तो बचपन से ही ये सारे भेदभाव सीख जाते हैं। इसलिए मैं बदल-बदल कर 'रेड क्वीन' भी खेल लेती हूँ उनके साथ। अब से ब्लैक और रेड किंग भी खेला करुँगी।


दम्भ.... प्रतिभा स्वति 
 सुना सबने  है ,पर    
कौन  कहता  है ? 
कि  दम्भ  / सिर्फ़ 
इंसान  में  रहता है !


टि्वटर पर कवि और कविता....अंशु माली रस्तोगी
वे हमारे मोहल्ले के वरिष्ठ कवि हैं। खुद को केवल कवि नहीं हमेशा वरिष्ठ कवि कहलाना ही पसंद करते हैं। भूलवश अगर कोई उन्हें कवि कह दे तो बुरा मान जाते हैं। दुआ-सलाम तक खत्म कर देते हैं। ऐसा एक दफा वे अपनी पत्नी के साथ कर चुके हैं। बहरहाल। 

आज का शीर्षक..
मालिक ये हाथ रखें नीचे,हम हाथ उठाना सीख गए..... सतीश सक्सेना
मालिक गुस्ताखी माफ़ करें,घर बार हिफाज़त से रखना
बस्ती के बाहर भी रह कर,हम आग जलाना सीख गये !

अपना क्या था बचपन से ही,अपमानों में जीना सीखा,
मालिक हम ऊँचे महलों की दीवार गिराना सीख गये !

इंसानों का जीवन पाकर, कुत्तों सा जीवन जिया मगर,
मालिक ये हाथ रखें नीचे,हम हाथ उठाना सीख गए !

आज्ञा दें यशोदा को
सादर











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