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सोमवार, 13 जून 2016

332...गोलि‍यों के नि‍शान अब भी बीते जख्‍म को कुरेद जाते हैं

अभिवादन स्वीकार करें...

आज-कल अन्तर्जाल तरक्की पर है
जी. जी और अब जी भी
गति भी बे-इन्तेहां
फिर भी कहीं कहीं
दिखाई ही नहीं देती गति
गुम हुइ सी लगती है....

चलिए बातें-वाते तो होती ही रहेंगी आगे बढ़ते हैं....

कालीपद 'प्रसाद'......
राजनयिक औरों के कन्धे पर से बन्दूक चलाता है
अपना विशेष गुप्त मिशन संदूकों में गोपन रखता है
जन हित में मन्दिर बनाने की, वायदा तो एक बहाना
खुद की रोजी रोटी का इन्तजाम, मन्दिर से करता है




शून्य के भीतर भी ,
होते हैं बहुत सारे शून्य ,
जब जब तुम चुप रहे ,
शून्य धंसते गए ,
एक के भीतर एक ,
फिर एक और एक,




रास की रात
मंत्रमुग्ध राधिका
विमुग्ध कान्हा
हर्षित ग्वाल बाल
आल्हादित यमुना !



एक बार कबूतरों का झुण्ड, बहेलिया के बनाये जाल में फंस गया। सारे कबूतरों ने मिलकर फैसला किया और जाल सहित उड़ गये "एकता की शक्ति" की ये कहानी आपने यहाँ तक पढ़ी है ....
इसके आगे क्या हुआ वो आज प्रस्तुत है 



ये है आज की शीर्षक कड़ी
शहीदी कुएं के बगल में ही दीवार है जहां गोलि‍यों के 28 नि‍शान अंकि‍त है। यह हमें याद दि‍लाता है क्रूर नरसंहार। थोड़ी दूर पर लौ के रूप में एक मीनार बनाई गई है जहां शहीदों के नाम अंकि‍त हैं। उसके ठीक पीछे की दीवार पर भी गोलि‍यों के नि‍शान अब भी बीते जख्‍म को कुरेद जाते हैं।

आज बस यहीं तक
आज की प्रस्तुति उन्हें बनानी थी
पर.. ये मैं हूँ न..अपने नाम से सूचना दे डाली
उपरोक्त पंक्तिया उन्ही की लिखी है

सादर..
यशोदा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत आभार आपका यशोदा जी आज के चयनित सूत्रों में 'सुरभित प्रेम' की महक को फैलाने के लिये ! हृदय से धन्यवाद आपका !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ संधया...
    मैं भी पहुंच ही गया...
    आप की प्रस्तुति पढ़ने के लिये...
    न पहुंच पाता तो आप की पसंद पढ़ने का सौभाग्य न मिलता....

    जवाब देंहटाएं

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