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मंगलवार, 31 मई 2016

319...तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात

जय मां हाटेशवरी...

आज सारा विश्व तम्बाकू निषेध दिवस  मना रहा है...
इस लिये आज की प्रस्तुति के आरंभ में...   इसी विषय पर  कुछ अनुमोल विचार।
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• “तंबाकू छोड़ना इस दुनिया का सबसे आसान कार्य है।
मैं जानता हूँ क्योंकि मैंने ये हजार बार किया है।”- मार्क ट्वेन
• “तंबाकू मारता है, अगर आप मर गये, आप अपने जीवन का बहुत महत्वपूर्ण भाग खो देंगे।”- ब्रुक शील्ड
• “तंबाकू का वास्तविक चेहरा बीमारी, मौत और डर है- ना कि चमक और कृत्रिमता जो तंबाकू उद्योग के नशीली दवाएँ बेचने वाले लोग हमें दिखाने की कोशिश करते हैं।”-डेविड बिर्न
• “ज्यादा धुम्रपान करना जीवित इंसान को मारता है और मरे सुअर को बचाता है।”- जार्ज डी प्रेंटिस
• “सिगरेट छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है तुरंत इसको रोकना- कोई अगर,
और या लेकिन नहीं।”- एडिथ जिट्लर
• “सिगरेट हत्यारा होता है जो डिब्बे में यात्रा करता है।”- अनजान लेखक
• “तंबाकू एक गंदी आदत है जैसे कथन के लिये मैं समर्पित हूँ।”- कैरोलिन हेलब्रुन
आइये इस अवसर पर हम सब भी  संकल्प लें कि खुद भी नशा नही करेंगे और अन्य लोगो को भी नशा ना करने
के लिये प्रोत्साहित करेंगे
अब पेश है...आज के लिये  के कुछ चुने हुए लिंक...

तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात
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हर वर्ष विश्व तम्बाकू निषेध दिवस आकर गुजर जाता है। इस दौरान विभिन्न  संस्थाएं कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को तम्बाकू से होने वाली तमाम बीमारियों के बारे में समझाईश देते है, जिसे कुछ लोग उस समय गंभीर होकर छोड़ने की कसमें खा भी लेते है, लेकिन कुछ लोग हर फिक्र को धुंए में उड़ाने की बात कहकर उल्टा ज्ञान
बघार कर- “कुछ नहीं होता है भैया, हम तो वर्षों से खाते आ रहे हैं, एक दिन तो सबको ही मरना ही है, अब चाहे ऐसे मरे या वैसे, क्या फर्क पड़ता है“  हवा निकाल देते हैं। कुछ ज्ञानी-ध्यानी ज्यादा पढ़े-लिखे लोग तो दो कदम आगे बढ़कर “सकल पदारथ एही जग माही, कर्महीन नर पावत नाही“ कहते हुए खाने-पीने वालों को श्रेष्ठ और इन चीजों से दूर रहने वालो को कर्महीन नर घोषित करने में पीछे नहीं रहते। उनका मानना है कि-
















बीडी-सिगरेट, दारू, गुटका-पान 
आज इससे बढ़ता मान-सम्मान 
दाल-रोटी की चिंता बाद में करना भैया 
पहले रखना इनका पूरा ध्यान! 
मल-मल कर गुटका मुंह में डालकर 
हुए हम चिंता मुक्त हाथ झाड़कर 
जब सर्वसुलभ वस्तु अनमोल बनी यह 
फिर क्यों छोड़े? क्या घर, क्या दफ्तर!  


ग़ज़ल "बिगड़ा हुआ है आदमी"
छिप गयी है अब हकीकत, कलयुगी परिवेश में,
रोटियों के देश में, टुकड़ा हुआ है आदमी।
हम चले जब खोजने, उसको गली-मैदान में
ज़िन्दग़ी के खेत में, उजड़ा हुआ है आदमी।

कलम नहीं चला पाई
शब्दों का भण्डार अपार
उनमें ही डुबकी लगाई
लिखने की रही क्षमता
पर कलम नहीं चला पाई |
क्या यह थी कुंठा मन की
या प्रहार की चिंता थी

जिन्दगी
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खुशियों के कुछ
संकेतों से
और फ़िर
हम जिन्दगी से
प्रेम करने लगते हैं
और चल पड़ती है
जिन्दगी
खुशियों का निमन्त्रण पाकर

हर मौसम तेरा बनना है
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मेरे इस प्यासे तन पर, जब से पडी छाया तेरी,
खिल गयी मुरझाई कली, फूल बनी काया मेरी
धडकनों की धुन बन कर, गीत तुम्हारा बनना है
कभी धूप कभी छाँव बन, हर मौसम तेरा बनना है


दोहे
अतिशय गरमी आज है, चरम छोर पर ताप
खाली नल में मुहँ लगा, प्यासा करे संताप |
रवि है आग की भट्टी, बरस रहा है आग
झुलस रहा है आसमाँ, जलता जंगल बाग़  |

आज की प्रस्तुति को यहीं विराम देता हूं...
धन्यवाद।







4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन व प्रासंगिक प्रस्तुति
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया हलचल प्रस्तुति कुलदीप जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. विश्वास तम्बाकू निषेध दिवस पर मेरी ब्लॉगपोस्टों (लेख और कविता) को हलचल में शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया लिंक्स संयोजन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं

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