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शनिवार, 21 मई 2016

309 ..... कल का क्या





सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष







है क्या इसमें हकीकत ये तो केवल ख्वाब था,
पर इस कल्पना ने ही खयाल सारे धो दिये।
ख्वाब थे पाले मैंने भी क्या, खूब नाम कमाउंगा,
इस शब्दलोक की भूमि पर, धन-धान्य जुटाउंगा




 धारा 415= छल करना धारा 
445= गृहभेदंन धारा 
494= पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0 
धारा 499= मानहानि 
धारा 511= आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड।




सोचा ...चलो अब साइंस से पीछा छुटा 
आराम से अब साहित्य का मज़ा जाए लूटा।

पर बाबा को मुझे इंजीनियर बनाना था
अच्छा वर पाने के लिए डिग्री जो लाना था।





दो दिन तेज़ बारिश हो जाये 
तो छतें इतना टपकती हैं 
की outdoor और indoor का 
फर्क खत्म हो जाता है.… 

और भी है बहुत कुछ कहने को 
पर बातों की फहरिस्त
कहाँ खत्म होने वाली


कल का क्या


दौड़ता रहा... भागता रहा
हुयी रात तो सबेरा भी हुआ
मगर न आया
तो वो सुनहरा कल ...
समय बदला, दिन बदला
जगह बदली, लोग बदले
यहाँ तक कि हम भी बदले
लेकिन न मिला तो केवल वो कल



नास्तिकता खूबसुरत है


एक अन्य आश्चर्य की बात है कि जहाँ सभी धर्म मनुष्य को ईश्वर का रूप
 या फिर उसके द्वारा उत्पन्न मानते हैं, वहीं किसी भी धर्म में मनुष्यों की समानता को
पूर्ण रूप में धरातल पर नहीं उतरा गया और प्रत्येक धर्म में विशेषाधिकार युक्त
एक वर्ग मौजूद रहा जो व्यक्ति और ईश्वर के बीच के बिचौलिए का काम करता है.
शायद ही किसी धर्म में सभी मनुष्यों को सामान अधिकार होने की बात कही गयी हो.
 इसके विपरीत नास्तिकतावाद चूंकि ईश्वर को ही  नहीं मानता है,
इसमें ऐसे किसी बिचौलिए के होने की संभावना ही नहीं है.



कब तक ठुकराओगे



नारी के बिना नारायण कैसे कहला पाओगे
कितने जन्मों तक सोने की सीता बनवाओगे
बिन नारी जीवन, घर सूना, कैसे जगत चलाओगे। है राम

पत्थर को नारी  करने वाले पत्थर बन बैठे
नैन मूँद कर ले लिए भगवन मर्यादा के ठेके
अपने ही अंतर्मन को आखिर





फिर मिलेंगे ........ तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव



3 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    अच्छी रचनाएँ चुनी आपने
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार.. आपके इस अच्छे प्रयास से सहज ही कई और बेहतर पंक्तियों का मौका मिल जाता है। साथ ही हौसला अफजाई का भी शुक्रिया....

    जवाब देंहटाएं

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