---

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

284....इंतज़ार करती मा


जय मां हाटेशवरी...


प्रस्तुति बनाने बैठा तो....
 मां पर बहुत कुछ लिखा हुआ पाया...
मुझे भी मुनव्वर राना के लिखे कुछ शब्द याद आ रहे हैं...
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
अब चलते हैं आज के लिंकों की ओर...

कहा, हम चले जब मुहब्बत में गिरने ...
तेरे ख़त के टुकड़े गिरे थे जहां पर
वहीं पर निकल आए पानी के झरने
है आसान तलवार पे चलते रहना
कहा, हम चले जब मुहब्बत में गिरने


आईना
रोको नहीं सफर कि सहरा बहुत बड़ा है ,
देखा किया बहुत है ,पहरा हर आईने में
वो  टुकड़ा तुम्हारे दर्श में ही,होगा कहीं छुपा
नादाँ हो ढूंढते हो वही टुकड़ा  हर आईने में


जो भी है जैसा भी है बस बना रहे बनारस
s320/IMG_20160424_070451
s320/IMG_20160424_070743
इसको समझने के लिये इसको जीना पड़ता है और जो एक बार बनारस को जी लेता है वो फिर इसे क्वोटो नही बनाना चाहेगा। यह मस्त मलंगो का शहर है इसे ऐसा ही रहना चाहिये



इंतज़ार करती माँ.....ब्रजेश कानूनगो
s1600/%25E0%25A4%2594%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2582
सच तो यह है कि खूब जानती है माँ मेरी विवशता
खुद ही चली आती है कविता में हर रोज
सब कुछ समेटे अपनी पोटली में.
s320/Brajesh%2BKavtvia


एक विकट समस्या का सरल समाधान - जल
पानी के उचित संरक्षण के लिये एक बार फिर से हमको उन नदियों पर, जो सिर्फ बरसात में ही बहती दिखाई देती हैं, छोटे छोटे चेक डैम बना कर उनका पानी ताल तलैयों
और झीलों में जमा करना होगा ! सूख चुके कूओं में वर्षा का पानी डाल कर भूमिगत पानी के जल स्तर को उठाने का पूरा प्रयास करना होगा ! जी हाँ इसे ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग
कहते हैं ! इसके छोटे बड़े अनेक रूप हैं और हमें हर संभव तरीके से इन्हें अपनाना होगा ! मेरे विचार से मनरेगा जैसी योजनाओं के लिये उपलब्ध धन व संसाधनों को सिर्फ
ऐसी योजनाओं में ही लगाना चाहिए जिससे ग्राउण्ड वाटर का स्तर बढ़ाने में सहायता मिले ! सूझ बूझ से पानी का सही उपयोग कर हमें इसका अपव्यय भी रोकना होगा तब ही
हम इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगे ! अभी भी देर नहीं हुई है और साधन व हल दोनों ही हमारे पास हैं बस हमें अपने इरादों को मजबूती देनी होगी और सही निर्णय लेने
के लिये एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करना होगा
 

भूलकर याद आ जाता है वह
भूल तो जाउँ उसे पर,
कैसे भुलाउँ उपकार उसका |
समीर  उसकी, नीर  उसका


अमर सागर झील : रांची से रेत के शहर तक – 6
s400/DSC_0022%2Bcopy
जब हम मंदि‍र पहुंचे तो ठीक बाहर दो बच्चे सड़क पर बैठे थे, जि‍न्‍होंने ढोल बजाकर हमारा स्‍वागत कि‍या। अंदर जाते ही सबसे पहले एक खूबसूरत फूलों वाला बागीचा
मि‍ला। अंदर भगवान आदि‍श्‍वर का दो मंजि‍ला जैन मंदि‍र है। बेहद खूबसूरत। यहां के स्‍थापत्‍य में हिन्दू -मुगल शैली का सामजंस्‍य है। मंदि‍र के गवाक्ष, बरामदों
पर उत्‍कीर्ण अलंकरण, झरोखें बेहद आकर्षक है।


मातृ-श्रृंगार
आओ माँ का रूप मित्रों,
करें गौरव से सुसज्जित।
नियम माँ के, जो सनातन,
काल चरणों में समर्पित ।।
शत्रुता अपनी भुलाकर,
रक्त का रंग संघनित हो ।


आज यहीं तक
फिर मिलते हैं





















7 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! जल संकट पर मेरे आलेख को आपने आज की हलचल में सम्मिलित किया आपका आभार कुलदीप जी ! धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर लिंक सभी ... आभार मुझे भी शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी लिंक्‍स सुंदर हैं। मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति .. आभार!

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।