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गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

272....जो कभी...... न मिलूं तो गम न करना

चौदह अप्रैल

बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर जी की जयन्ती
शत्-शत् नमन उनको


हाँ प्रेम है तो 
परिवर्तन है, 
अन्यथा नक्कारखाने में 
तूती की आवाज़ और 
.........निष्कर्ष,
स्वभाव नहीं बदलता.......
-रश्मि दीदी 

चलते हैं आज की रचनाओं की ओर....

"चलते चल, पथिक.. 
डगर का अस्तित्व.. 
तुझसे ही होगा"

ये चाहतें न  .... 
सच बड़ी ही अजीब होती हैं 
बेमुरव्वत सी कभी भी कहीं भी 
सरगोशियों में दामन थाम 
कदमों को उलझा देती है 

मैं जब कढ़ाई या बुनाई करती हूँ ...... 
तो जब गाँठ डालना होता है ..... 
गाँठ डालना होगा न 

भर्तृहरि एक किंवदंती है 
एक इतिहास-सिद्ध कवि के अलावा
जो कहीं हमारे भीतर हमारे ही मन के 
वृत्तांत अंकित करती है किसी कूट भाषा में 

ये है आज की शीर्षक रचना...
तुम्हे........ मैं
जो कभी...... न मिलूं 
तो गम न करना 
माना, तुमको अज़ीयत होगी 


आज बस....
फिर तो मिलना ही है...
सादर....
यशोदा















4 टिप्‍पणियां:

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