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गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

265....अब तो लेखन-भाषण का बाजार रह गया


जय मां हाटेशवरी....

भाई संजय जी अधिक व्यस्त हैं...
यशोदा दीदी विदेश प्रवास पर  हैं...
भाई दिगविजय भी साथ गये हैं...
विभा आंटी को आदेश दे नहीं सकते....
इस लिये आज भी मैं ही....
 
राम गये रामायण का आधार रह गया,
कृष्ण गये गीता का सार रह गया !
महावीर का आदर्श कहाँ है जीवन में,
अब तो लेखन-भाषण का बाजार रह गया


अब चलते हैं कुछ चुनी हुई रचनाओं की ओर...

नयी दुनिया
Hitesh Sharma
अब हर घर पर है अपना बसेरा
खुश हैं इस दुनिया अंजान में
नहीं उलझता कोई गीता -कुरान में
सुर नहीं था जीवन के तरानों में
अपनापन मिला जाकर बेगानो में


ड्रोन
Mukesh Kumar Sinha
अन्दर ही अन्दर समझ पाता
क्या चल रहा है, क्या सोच रहे लोग
बिना कुछ कहे, बिना मुस्काये या खीज दिखाए
डिप्लोमेटिकली परफेक्ट, आँखे मटकाए
हम भी होते उनके अनुरूप
होते हर एक के करीब ........ !!


अल्लाह की गवाही - धरती भी माता होती है
सत्यवादी
दारूल उलूम देवबंद ने 'भारत माता की जय' के खिलाफ फतवा देते हुए कहा कि इंसान ही इंसान को जन्म दे सकता है, तो धरती मां कैसे हो सकती है।अब  देवबंद  के  मुल्ले
बताएं   कि जब  तुम्हारा  अल्ल्लाह  बेजान  भूमि   यानि   मक्का  को  शेरोन  की  माता  कह  रहा  है  ,  यानि मक्का  को  ऐसी माता   मान  रहा  है  कई  शहर  रूपी
  बच्चे  हों   ,  क्योंकि  बिना   बच्चे की   स्त्री  को  माता   नहीं   कहा   जा  सकता  ,
  और  जब  एक शहर  मक्का  कई  शहरों  की  माता   हो  सकती    है  ,  तो  कई  प्रांतो   , सैकड़ों    शहरों  पैदा करने  वाली   भारत  माता   ,   सबकी  माता  क्यों
   नहीं       मानी   जा  सकती   ?



वो प्यार था ....
रश्मि शर्मा
तुम तब पूरी कोशि‍श में लगे थे मुझे इम्‍प्रेस करने के। जि‍तना ज्यादा वक्‍त दे सकते थे, मुझे देने की कोशि‍श करते। हर सुबह हम फोन पर बातें करते। तुम मि‍नट
भर के लि‍ए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। रोज मि‍लने की जि‍द। मुमकि‍न नहीं था हमारा यूं मि‍लना। तो तुम फोन और एसएमएस से जुड़े रहते थे मुझसे। तब व्‍हाटसएप
नहीं आया था। हर पांच मि‍नट के बाद एक एसएमएस। क्‍या कर रही हो...क्‍या पहना है, क्‍या खाया है।
सब कुछ जैसे जानना चाहते थे तुम। तब गाने भी खूब गाते थे तुम। मुझे याद नहीं कि‍ कि‍तनी बार सुना है तुमको ये गाते हुए...छुपा लाे दि‍ल में यूं..... गहराई है
तुम्‍हारी आवाज में। कानों से सीधे दि‍ल में उतरती थी।
मैं करीब और करीब होती गई। तुम हर जतन करते और कामयाबी की सीढ़ि‍यां चढ़ते जाते। मैं हर बीतते दि‍न में तुमसे जुड़ती जाती थी।
तब नहीं लगा था एक बार भी कि‍ कोई यूं कि‍सी पर पहले रि‍सर्च करता है फि‍र उसे अपने करीब लाता है। आज रेडि‍यो जॉकी ने अतीत का वो पन्ना पलट दि‍या, जि‍से मैं
खोलना नहीं चाहती थी।


नहीं छेड़ा तुमने कोई तराना
Jayanti Prasad Sharma
 अति उत्साहित था मेरा मन,
नजरों में बसा था तेरा तन।
नहीं सब्र था पलभर मुझको,
स्पर्श किया उद्धेलित हो तुमको।
सहलाया मैंने बड़े प्रेम से, पर नहीं आई तुम्हें झुरझुरी मेरे सहलाने पै..... लगता है...............।



वक्त वक्त की टेर
vibha rani Shrivastava
कार्ड पर हुई बहस के कारण उसकी सास उसे उसकी ननद के शादी की सारी तैयारियों से अलग रखी ही थी साथ कोशिश की थी कि शादी की रस्मों में भी भाग कम से कम ले सके
….. केवल शादी में आये लोगों के भोजन वो पकाये खिलाये
काश सास चार साल और जीवित रहती …… सुनती
वक्त वक्त की टेर  …
अच्छे अच्छे होते ढ़ेर
ढ़ेर  ढ़ेर के हेर फेर



धन्यवाद।



7 टिप्‍पणियां:

  1. सबने जिम्मेदारी दी है और आपने बहुत अच्छे लिंक प्रस्तुत किये हैं
    प्रस्तुति हेतु धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ दोपहरी पुत्र जी
    हम एक साथ हैं तो सहयोग के लिए आदेश की बात नहीं होगी .... मैं 20 मार्च से 5 अप्रैल तक 15 दिन अपने शहर से बाहर रहने वाली थी तो सब पोस्ट एक साथ बना डेट के अनुसार पब्लिश करने के लिए लगा दी .... सबको अपनी ली गई जिम्मेदारी समझनी चाहिए .... व्यस्तता बिना बताये भी दस्तक देते रहता है तो एक दो पोस्ट हमेशा तैयार रहना चाहिए ताकि किसी के कारण किसी को ज्यादा वर्क ना करना पड़े

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके मेहनत को सलाम ... उम्दा प्रस्तुतिकरण :)

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्‍यवाद, बहुत अच्‍छे लिंक्‍स। मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार, धन्‍यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. शुक्रिया....
    आभार....
    अभूतपूर्व
    सादर....

    जवाब देंहटाएं

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