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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

263....मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ


जय मां हाटेशवरी...

आज फिर मैं ही...
पुनः उपस्थित हूं...
आज  सब से पहले हरिओम पंवार जी की ये कविता...
मेरा गीत चाँद है ना चाँदनी
न किसी के प्यार की है रागिनी
हंसी भी नही है माफ कीजिये
खुशी भी नही है माफ कीजिये
शब्द - चित्र हूँ मैं वर्तमान का
आइना हूँ चोट के निशान का
मै धधकते आज की जुबान हूँ
मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ
कोइ न डराए हमे कुर्सी के गुमान से
और कोइ खेले नही कलम के स्वाभिमान से
हम पसीने की कसौटियों के भोजपत्र हैं
आंसू - वेदना के शिला- लेखों के चरित्र हैं
हम गरीबों के घरों के आँसुओं की आग हैं
आन्धियों के गाँव मे जले हुए चिराग हैं
किसी राजा या रानी के डमरु नही हैं हम
दरबारों की नर्तकी के घुन्घरू नही हैं हम
सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नही हैं हम
कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नही हैं हम
अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं
हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं
ये तुम्हारी कुर्सियाँ टिकाऊ नही हैं कभी
औ हमारी लेखनी बिकाऊ नही है कभी
राजनीति मे बडे अचम्भे हैं जी क्या करें
हत्यारों के हाथ बडे लम्बे हैं जी क्या करें
आज ऐरे गैरे- भी महान बने बैठे हैं
जाने- माने गुंडे संविधान बने बैठे हैं
आज ऐसे - ऐसे लोग कुर्सी पर तने मिले
जिनके पूरे - पूरे हाथ खून मे सने मिले
डाकु और वर्दियों की लाठी एक जैसी है
संसद और चम्बल की घाटी एक जैसी है
दिल्ली कैद हो गई है आज उनकी जेब मे
जिनसे ज्यादा खुद्दारी है कोठे की पाजेब मे
दरबारों के हाल- चाल न पूछो घिनौने हैं
गद्दियों के नीचे बेइमानी के बिछौने हैं
हम हमारा लोकतन्त्र कहते हैं अनूठा है
दल- बदल विरोधी कानूनो को ये अंगूठा है
कभी पन्जा , कभी फूल, कभी चक्कर धारी हैं
कभी वामपन्थी कभी हाथी की सवारी हैं
आज सामने खडे हैं कल मिलेंगे बाजू मे
रात मे तुलेंगे सूटकेशों की तराजू मे
आत्मायें दल बदलने को ऐसे मचलती हैं
ज्यों वेश्यांये बिस्तरों की चादरें बदलती हैं
उनकी आरती उतारो वे बडे महान हैं
जिनकी दिल्ली मे दलाली की बडी दुकान है
ये वो घडियाल हैं जो सिन्धु मे भी सूखें हैं
सारा देश खा चुके हैं और अभी भूखे हैं
आसमा के तारे आप टूटते देखा करो
देश का नसीब है ये फूटते देखा करो
बोलना छोडो खामोशी का समय है दोस्तो
डाकुओं की ताजपोशी का समय है दोस्तो

अब देखते  हैं...आप की रचनाओं की एक झलक...
शिक्षको चुनौती स्वीकारो, भारत का भाग्य बदल डालो,
मनीष प्रताप
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उस 'विश्व गुरु' भारत का फिर, दुनिया में परचम लहरा दो,
शिक्षको तरासो भारत को, यह देश बचाना ही होगा ।
संस्कृति डूबती जाती है ,उन पश्चिम के आगोशों में,
प्रण करो आज हुंकार भरो, अब चीर बढाना ही होगा ।


हिंदी ब्लागिंग
रेखा जोशी
हिंदी भाषा में लुप्त हो रहा छंद विधा नव परिवर्तनों के आज के इस दौर में फिर से उभर कर आ रही है ,हिंदी साहित्य में रूचि  रखने वाले न केवल इस विद्या के रस
का आनंद उठा रहे है बल्कि इसे सीखने का भरसक प्रयास भी कर रहें है |आजकल मनु  जैसे हजारों ,लाखों ब्लागर्स  हिंदी में ब्लागिंग कर रहे है | कई ब्लागर्स  ब्लागिंग
से अपनी हाबी के साथ साथ आर्थिक रूप से भी सम्पन्न भी हो रहे है | आज मनु को अपने फैसले पर गर्व है कि उसने बदलते हुए इस नयें दौर में अपने विचारों कि अभिव्यक्ति
के लिए हिंदी ब्लागिंग को चुना | इसमें कोई दो राय नही है कि नव परिवर्तनों के इस  दौर में एवं आने वाले समय में हिंदी ब्लागिंग का भविष्य उज्जवल है |


प्रजातन्त्र के खेल
Neeraj Kumar Neer
s320/Democracy%2Bin%2BIndia<br>पर सरकार ! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
सीमा पर मरने वाले सैनिकों का हिसाब....
तो फिर खेलेंगे
जाति-जाति
जनता जाति की भूखी है
पर सरकार ! जाति से पेट नहीं भरता
जनता को विकास चाहिए
तो फिर से खेलेंगे
विकास–विकास ......



सीधे 33 करोड़पति बन जाओगे हास्यपद ।
vedic wisdom
s400/mandir
6 - लेकिन पंडो ने इससे उलट हमें अंधविश्वास की गलियों में धकेला - उधारण के लिए "सोमनाथ मंदिर " जहाँ पंडो ने अपनी कायरता दिखा कर निर्दोष लोगों को मरवाया
और मंदिर लुट्वाया ।
6- आर्य समाज ने जितने भी ये पाखंडी बाबा है उनका विरोध किया ।
7 - पंडों ने इससे उलट कुकरमुत्तो की तरह नए नए उगने बाले बाबाओं का समर्थन किया और उनके धंधे में शामिल भी हुए ( निर्मल बाबा , राधे माँ , रामपाल , लाल किताब
बाले बाबा , )
8- आर्य समाज ने सभी को वर्ण उनके कर्म के हिसाब से दिया ।


भारत में अंग्रेजी परस्तों की साजिश-
Kavita Rawat
में गया तो उसने इंग्लैण्ड से पहलवानों से कहा कि जो पहलवान इसको उठाते हैं, उनसे कहिए कि वे उसे उठाकर दिखायें। इंग्लैण्ड का पहलवान चूंकि 10 मन की नाल (भार)
उठाने में अभ्यस्त था, तुरन्त मिनट भर में उसे उठा लिया। ठीक उसी समय भारत के पहलवान ने फुर्ती के साथ नाल उठाने वाले पहलवान के पीछे से पैरों के बीच एक हाथ
डालकर और एक हाथ गर्दन में डालकर उस पहलवान को उठा लिया, क्योंकि वह 10 मन से अधिक वहन के पहलवानों को उठाने का अभ्यस्त था। फिर इसके बाद इंग्लैण्ड के पहलवानों
ने उसके समक्ष हार मान ली। इसी तरह देश का उच्च सरकारी तंत्र/अभिजात्य वर्ग इसी प्रकार से अंग्रेजी की दीवाल खड़ी कर देश की सामान्य जनता के युवाओं को परास्त
करने की जुगत/कुचक्र रचता रहता है। अतः इस देश की सामान्य जनता, गरीब तथा पिछड़े वर्गों के युवाों को भाषा, विशेष कर देश की राजभाषा की स्थिति को जानना चाहिए



कविता "नेता के पास जवाब नही..."
 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सम्बन्ध तलाश रहे हैं जो, वो केवल भावों को देखें।
अनुबन्ध तलाश रहे हैं जो, वो दिल के घावों को देखें।।
दानवता की चक्की में, जब-जब मानवता पिसती है।
लोभी पण्डों की टोली जब, नकली चन्दन को घिसती है।।
क्यों शेर सभी बिल्ले बन जाते, जब निर्वाचन आता है।
छिप जातो खूनीं पंजे सब, जब-जब निर्वाचन जाता है।।

आज बस यहीं तक...
धन्यवाद।

















5 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा संकलन । सभी रचनाऐं प्रासंगिक एवं मौलिक समस्याओं को इंगित करती हुयीं।
    मेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए कुलदीप जी का विशेष आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर लिंक्स .... धन्यवाद मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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