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बुधवार, 23 मार्च 2016

250..सभी को विश्व कविता दिवस की बहुत बहुत बधाई !!

सादर अभिवादन
आज विरम सिंह जी नहीं हैं
और 10 मई तक नहीं रहेंगे
परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त है
ईश्वर उन्हे सफलता दे....

आज की चयनित रचनाएँ....

उन्हें हंसाने को, बस इक सलाम काफी है,
इसी विश्वास पर, रूठों को हंसाने निकलें  !

बहुत मज़ाक हुआ, एक बार फिर आओ,
तुम कहो रोज ही,मनुहार ही गाने निकलें !

सवाब क्या है, खुशी तुम्हारी,
अज़ाब क्या है, तुम्हारी उलझन,
' वहाँ ' पे कुछ भी नहीं है प्यारे,
यहीं पे सब कुछ, है रोजे-रौशन।

कंधे का दुशाला दुरुस्‍त करते गली में रिक्‍शा पर सपरकर बैठते मामा जी सोच-विचारकर अपने नतीजे पर पहुंचे थे, ऐसा ही जोम चढ़ा है तो जोती बाबू के गुंडों से दोस्‍ती कर लूं, कम्‍युनिस्‍टों को वोट दे आऊं, कंधे पर 'भारतमाता की जै' का गोदना गोदवा लूं, चिरकुटई एक मर्तबा छेरना शुरु कर देती है तो उसका फिर कहीं अंत थोड़े होता है, चल बच्‍चा, इस गंदगी से रेक्‍शा बाहर कर!

छनकारो हो छनकारो
गोरी प्यारो लगो तेरो छनकारो
छनकारो हो छनकारो

तुम हो ब्रज की सुन्दर गोरी
मैं मथुरा को मतवारो
छनकारो हो छनकारो


और आज की शीर्षक कड़ी...

आस-पास हाथ आये 
सब कुछ 
एक साथ मिलाएं 
छोटी छोटी मुस्कानों से सजाएँ 
और  जिंदगी की तश्तरी में 
बड़े अदब से  पेश करें 
हंसती मुस्कराती 
गुनगुनाती 
कुछ कुछ लजाती 
प्यारी सी कविता 

इसी के साथ आज्ञा दें यशोदा को






3 टिप्‍पणियां:

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