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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

216......सबको नाच नचाता पैसा!

सादर अभिवादन
भाई संजय आज भी नही हैं
पर आनन्द तो आएगा ही
और काफी से अधिक ही आएगा

ये रही आज की चुनिन्दा रचनाओंं के अंश...


नन्ही अँगुली थामकर
सिखाया आखर-घट खोलना
वही सिखाता शिद्दत से अब
‘मम्मा, तुम ऐसे बोलना|”

मेरा दिया नाम सीपी सुन बच्चों सी किलकती थी
साझा नभ का कोना में हाइकु लेखन समय 
कभी गलती से भी शान्ति जी या Shanti जी 
कह दी तो भड़क जाती थी
उसे हमेशा शिकायत रहती थी 
कि उसे कभी I love you नहीं बोली  मैं

चलिए देशभक्ति शब्द को फांसी दे दें
या कर दें बनवासी
और देशद्रोह शब्द को आदर सम्मान दे दें
शायद आज इन शब्दों की बस इतनी सी है पहचान

स्कूल से आते ही राजू ने अपना बस्ता खोला और लाइब्रेरी से ली हुई पुस्तक निकाल कर 
अपनी छोटी बहन पिंकी को बुलाया ,तभी माँ ने राजू को आवाज़ दी ,
बेटा पहले कपड़े बदल कर ,हाथ मुह धो कर ना खा लो ,फिर कुछ और करना ,
तभी पिंकी ने अपने भाई के हाथ में वह पुस्तक देख ली 

जी चाहता है  
सारे उगते सवालों को  
ढ़ेंकी में कूट कर  
सबकी नज़रें बचा कर  
पास के पोखर में फ़ेंक आएँ  
ताकि सवाल पूर्णतः नष्ट हो जाए 


और ये रही आज की शीर्षक रचना
2009 में प्रकाशित रचना आज भी प्रासंगिक है.... 

नाते रिश्ते सब हैं पीछे
सबसे आगे है ये पैसा
खूब हंसाता, खूब रूलाता
सबको नाच नचाता पैसा!
अपने इससे दूर हो जाते
दूजे इसके पास आ जाते
दूरपास का खेल ये कैसा
सबको नाच नचाता पैसा!

आज बस इतना ही
आज्ञा दें यशोदा को






8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    सस्नेहाशीष छोटी बहना
    खुद का लिखा यहाँ पाकर हमेशा खुश होती रही
    आज मन उदास है

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    सुन्दर लिंको के साथ मनभावन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. २ अगस्त २००९ को ब्लॉग पर मेरी पहली कविता थी सबको नाच नाचता पैसा" और आज हलचल में शीर्षक रचना
    के रूप में शामिल करने हेतु आभार!
    बहुत अच्छा लगा ...
    मेरी पसंदीदा रचना है ..

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंक संयोजन ......... आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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