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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

आओ हँस लें



यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष




कल मैं पटना से दिल्ली आई थी
हाइकु दिवस
और
हमारे दो पुस्तकों के विमोचन के लिए


आओ हँस लें
आज से पंद्रह   दिनों  बस
अध्यात्म का मेला
भक्तों से प्रभू  का
सीधा   है संपर्क का रेला


छोटी सी बात
छोटा सा दिन और छोटा सा जीवन
अपनी अँजुरी में क्या-क्या लूँ
अपनी बातों में क्या-क्या कहूं
सुबह होती है, शाम होता है


किताबें बोलती हैं
अजब चलन है के अब यारियाँ नहीं चलतीं
नफा न हो तो, वफादारियाँ नहीं चलतीं

नये ज़माने की अय्यारियाँ नहीं चलतीं
हसद की बुग्ज़ की, बीमारियाँ नहीं चलतीं


आलपिन कांड
ब्लंडर मिस्टेक तो आलपिन कंपनी के
प्रोपराइटर का है
जिसने वेस्ट जैसा चीज़ को
इतना नुकीली बनाया
और आपको
धरातल पे कष्ट पहुंचाया।


मेहनत और जिन्दगी
सब गुणो का है आधार
परिश्राम लगातार
करते रहो मेहनत
हारो नही हिम्मत
रहो हमेशा प्रयासरत


हक
मेहनत की शिद्दत को नहीं देखा उसने,
हमारी पुरज़ोर हिम्मत को नहीं देखा उसने.
गम इस बात का नहीं के फैसला मेरे खिलाफ था,
गम तो इस बात का है की,
फैसले को उसूल के तराज़ू से नहीं परखा उसने


वर्सी महोत्सव
वर्सी महोत्सव का मूल उद्देश्य यही है कि मानव जीवन में आध्यात्मिक परिवर्तन आये
उसका व्यवहार, आचरण, संस्कार और मानवीय कर्म ज्ञान के अनुरूप हो.
 आज हर कोई जमाने को तो बदलना चाहता है
लेकिन ख़ुद को बदलने के बारे में संत - महात्मा ही सोचते है.


फिर मिलेंगे ...... तब तक के लिए

आखरी सलाम



विभा रानी श्रीवास्तव


5 टिप्‍पणियां:

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