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सोमवार, 16 नवंबर 2015

121...पेरिस में भी पसारा पैर आतंकवाद ने

आज से दो दिन पहले फ्रांस के शहर पेरिस में
आतंकवादों ने 153 निर्दोष लोगों की हत्या की...
तो पूरा विश्व उस घटना की भर्त्सना करने लगा
और इस तरह के हमले तो भारत में होते ही रहते हैं
और शेष विश्व कानों मे तेल डाल कर बैठा रहता है
लोग ये समझते हैं कि.... 
भारत तो देवभूमि है....सहनशील है और दयालु भी है...

सभी राजनीतिज्ञों को पता है.....??
ये आतंकवाद आया कहां से..??
कौन है सूत्राधार..??.....पर वे चुप हैं..??
टूटेगी चुप्पी भी!..तब तक आतंकवाद
विशाल बरगद का रूप ले लेगा



चलिए चलते हैं आज की चुनिन्दा रचनाओ की कड़ियां देखने..


ग्रेविटॉन में...
अभिनेता ही नायक है अब
और वही खलनायक
जनता के सारे सेवक हैं
पूँजी के अभिभावक


रचना रवीन्द्र में..
खुश हूँ अच्छे दिन आए हैं 
सदियों से झुग्गी बस्तियों में बसने वाले 
सडान बदबू में रहने वाले 
नाले नालिओं में पनपने वाले
अब नहीं रहते हैं वहां.
बदल गया है बसेरा 
आयें है अच्छे दिन 


सपने में...
फेसबुकी दीवाली..फेक का अंग्रेजी अर्थ है धोखा व फेस याने चेहरा, दुनिया में आभाषी दुनिया का चमकता यह चेहरा एक मृगतृष्णा के समान है जो आज सभी को प्यारा मोहित कर चुका है. नित्य समाचार की तरह सुपरफास्ट खबरे यहाँ मिलती रहती है.कहीं हँसी के ठहाके


मधुर गुंजन में....
सच्ची भक्ति...
''आंटी, आप मंदिर जा रही हैं|" नेहा के हाथों में पूजा की थाल देखकर रहमान ने पूछा|
वह अभी अभी उसके बेटे प्रबोध के साथ आया था|
''हाँ बेटे, पूजा करके आती हूँ|"
जब वह मंदिर से लौटी तो उसने देखा कि रहमान अपने बैग के पास बैठा था और बैग के खुले मुँह से पिस्तौल झाँक रही थी| एकबारगी सिहर गई नेहा| बेटे का मित्र था इसलिए कुछ कह नहीं सकती थी


उच्चारण में...
हो गये उलट-पलट, वायदे समाज के,
दीमकों ने चाट लिए, कायदे रिवाज़ के,
प्रीत के विमान पर, सम्पदा सवार है।
तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।।


प्रतिभा की दुनियां में..
लौटकर आने पर ताला खोलते वक्त ऐसा नहीं लगता कि यहां किसी को मेरा इंतजार नहीं था। मानो इस घर के कोने-कोने को मेरा इंतजार रहता है। घर के पर्दे, दीवारें, खिड़कियां, सोफे पर आधी पढ़कर छूटी हुई किताब, दरवाजे के बाहर लगा अखबारों का ढेर...पानी के लिए पड़ोसी की छत पर पहुंचाये गये पौधे...सुबह दाना खाने आने वाली चिड़िया, कबूतर, तोते...सब तो बाहें पसारे इंतजार करते मिलते हैं।


सुधिनामा में
बिल्कुल सम गति सम लय में
समानांतर उड़ रहे थे दोनों,
मधुर स्वर में चहचहाते हुए
कुछ जग की कुछ अपनी
एक दूजे को सुनाते हुए
बड़े आश्वस्त से पुलकित हो   
उड़ रहे थे दोनों !

चलती हूँ..आज्ञा दें....

कुछ नेता
कुछ मीडिया वाले
कुछ सभ्रांत लोग
निन्दा कर रहे हैं
भर्त्सना कर रहे हैं
कोस रहे हैं
आतंक वाद को....
और सलाखों के
अन्दर उनके साथी
सरकार के 
खर्चे पर..
शराब और बिरियानी
के साथ...ज़श्न मना रहे हैं
मन की उपज
-यशोदा


















6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर लिंक्स ! मेरी प्रस्तुति को इन चयनित सूत्रों में सम्मिलित करने के लिये आपका आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर हलचल ..........
    मेरी नयी पोस्ट पर आपके आगमन की प्रतीक्षा है |

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/11/mitti-ke-diye.html

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात दीदी,
    सही कहा है आपने...
    सुंदर लिंक चयन...

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी कड़ियाँ, मुझे भी शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं

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