कल हमने बाल दिवस पर...
बेटियों पर बहुत कुछ सुना...
बहुत कुछ कहा...
हर वर्ष ही सुनते हैं...
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, समाज को प्रगति के रास्ते ले जाओ ...
विकसित राष्ट्र की हो कल्पना, बेटियों को होगा पढ़ना ...
इस प्रकार के संदेशों ने...
बेटियों के बारे में...
समाज की सोच में अवश्य ही परिवर्तन लाया है...
आज समाज का हर वर्ग कह रहा है...
बेटी नहीं है किसी से कम, बेटी से देश को मिल रहा है दम ...
बेटियों को बराबरी का दर्जा दीजिये, समाज में जागरूकता फैलाइये ।
इस आवाहन के साथ...
पेश है मेरे द्वारा प्रस्तुत आज की हलचल....
कविता मंच पर..
आँगन" - डॉ. धर्मवीर भारती
कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना
फिर आकर बाँहों में खो जाना
अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी
फिर गहरा सन्नाटा हो जाना
दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना,
कँपना, बेबस हो गिर जाना
प्रस्तुत कर्ता: संजय भास्कर
माही....पर
जाने क्यों
जाने तुझमे क्या बात थी
जो तुम मुझे
अपने पास
वापस ले आये।
मैं फिर आई
तुम्हारी ज़िन्दगी में।
बस तुमको सुनने के लिये
मैं तुमसे बात करने लगी
बस तुमको देखने के लिए
तुम्हारी फोटो तुमसे मांगने लगी।
प्रस्तुतकर्ताः महेश बरमटे
कविताएँ...पर
बहस के बीच में
पुत गई थी उसके चेहरे पर स्याही,
मनाही के बाद भी जो बोलना चाहता था,
क़त्ल हो गया था किसी का अपने ही घर में,
खा लिया था उसने वह जो वर्जित था,
फेंक दी थी आग किसी ने खिड़की से,
ज़िन्दा जला दिया था सोते बच्चों को,
किसी भाई ने दबा दिया था बहन का गला,
ज़िद थी उसकी कि शादी मर्ज़ी से करेगी,
एक छोटी-सी बच्ची का अपनों ने ही
कर दिया था बलात्कार.
प्रस्तुतकर्ताः ओंकार
मेरी धरोहर
फिर से बचपन दे दे जरा.............. पुष्पा परजिया
निस्तब्ध निशा कह रही मानो मुझसे ,
तू शांति के दीप जला, इंसा जूझ रहा
जीवन से हर पल उसको
तू ढांढस बंधवा निर्मल कर्मी बनकर
इंसा के जीवन को
फिर से बचपन दे दे जरा
प्रस्तुतकर्ताः यशोदा अग्रवाल
समाधान पर
आइए जानते है एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारें में जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया
वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने कालापानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया..
#24. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया...
पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है।
प्रस्तुतकर्ताः विवेक सुरंगे
बेटी है अनमोल...
बेटी है स्वर्ग की सीढ़ी,
वह पढ़ेगी ,
तो बढ़ेगी अगली पीढ़ी ...
धन्यवाद...
आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
सादर
सुन्दर हलचल......बधाई ...................
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा है |
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स हेतु आभार...
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रपति के नाम एक पत्र
जवाब देंहटाएं.
महामहिम राष्ट्रपति जी आज जो अराजकता या असहिष्णुता फैली हुई है उसके बारे में
कुछ तो बोलिए जनाब ?
आज हमारा भारत सामाजिक विकास के महत्वपूर्ण मानदंडों पर पिछड़ता जा रहा है,
ऐसी स्थिति हमारे लोकतन्त्र के लिए खतरनाक है....यह आप भी बखूबी जानते है
जनाब ,लोकतन्त्र में जनता के भरोसे का खुलेआम मज़ाक बनाया जा रहा है ..
हमारे देश की गरीबी और पिछड़ेपन को विश्वभर में एक बाकायदा मंच लगाकर सुनाया जा रहा है
में पूछना चाहुगा जनाब क्या इस देश ने पिछले 60 सालों में यही पाया है
गरीबी और विकास के बारे मैं कोई बात नहीं हो रही ..बात होती है सिर्फ धर्म और जाती की
कुछ भद्रजन इसको बखूबी अंजाम दे रहे है ..
महामहिम आप ही ने कहा था अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती
लेकिन आज धर्म के नाम साध्वी प्राची, आदित्यनाथ जेसे कुछ जो हर धर्म में मोजूद है
जो धर्म के नाम पर नफरत का जहर उगल रहे है यह अराजकता नहीं तो और क्या है
कुछ कीजिये महाराज .....इनसे रोकिये यह के लिए बड़ा खतरा है ....
आज कही किसी को कुछ खाने पर मार दिया जाता है
कही किसी को देश से निकालने की बात की जा रही है
किसान की हालत जस से तस है गरीब और लाचार होता जा रहा है
कुछ कीजिये जनाब इससे पहले की कोई आप पर भी ऊँगली उठाये ..
अपने संवैधानिक सीमा में रहकर ही सही पर इतना तो कर दीजिये जनाब .............
गणतन्त्र का नागरिक