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सोमवार, 2 नवंबर 2015

107....कि एक दिन लौट जायेंगे घर की ओर

सादर अभिवादन स्वीकारें

"तुम पर भी यकीन है 
और......... 
मौत पर भी ऐतबार है,"
देखें..... 
पहले कौन मिलता है , 
हमें दोनों का इंतजार है ....

चलिए देखते हैं आज की कड़ियाँ......


यूँ ही एक दिन 
पूछा था चाँद से 
क्यों घटते बढ़ते हो 
क्यों रहते नहीं एक से 
सूरज की तरह. 


रोटी की तलाश में घर से दूर गए लोग
हर रोज देते हैं दिलासा खुद को
बस कुछ समय और
कि एक दिन लौट जायेंगे घर की ओर
गाते हुए राग मल्हार 
जैसे लौट आते है पखेरू
अपने घोंसलों में मीलों उड़ने के बाद


'मैडम जी, चार पैग तो हो गए...अब?' 
'एक और बना दो' 
'ओके मैडम जी' 
'क्या हुआ...ग्लास अब तक भरा क्यूँ नहीं?' 
'भरा तो है मैडम जी...आइस भी डाली है...' 
'नहीं बाबू...ग्लास खाली है...बीड़ी भी ख़त्म हो गयी...तुमको खम्बा लाने बोले थे न ओल्ड मौंक का...ये पव्वा काहे लेकर आये हो?'
'मैडम जी..आप काहे गुस्सा हो रही है..
पूरा पैग बना दिए..और पव्वा कहाँ है..


काँटों रखते चमन में, अपने सदा उसूल।
जो सुमनों को मसलते, उनको चुभते शूल।।

विध्वंशों के बाद में, होता नवनिर्माण।
जीवनभर करते रहो, निर्बल का परित्राण।।


सुझाई दे रहा जो भी फिर...
है इक तजुरबा ही महज़.. इक हक़ीक़त ही महज़..पर
है नहीं यह सत्य..
ऐसा बोध सकना हो सका गर......


अब बच्चे लोरी नहीं सुनते ! 
‘चंदा मामा आरे आवा पारे आवा, 
नदिया किनारे आवा, सोने की कटोरिया में 
दूध-भात लिहे आवा, मुन्ना के मुंह में घुटूक.....‘ 
और लोरी का आखिरी शब्द पूरा होते-होते नन्हा बालक मुंह ऐसे चलाना शुरू करता है जैसे कि चंदामामा सचमुच अपने हाथों से उसे दूध-भात खिला ही रहे हों। इस तरह, लोरी के बोल में दूध-भात खाता और मां की मीठी थपकियों में समाए वात्सल्य के असीम संसार में विचरता हुआ बच्चा बड़ी सहजता से ‘निदिंया रानी‘ की गोद में समा जाता है। 


और अभी-अभी..

कुछ ऋण ऐसे हैं  
जिनसे उऋण होना नहीं चाहती  
वो कुछ लम्हे 
जिनमें साँसों पर क़र्ज़ बढ़ा  
वो कुछ एहसास  
जिनमें प्यार का वर्क चढ़ा  




आज्ञा दें यशोदा को
फिर मुलाकात होगी

ऐसा भारत में ही संभव है...











4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर हलचल ........... मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा |

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/
    http://kahaniyadilse.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. वक़्त
    ना जाने कब कैसे वक़्त बे साख्ता उड़ा
    जैसे पंख फैलाये आसमां में फाख्ता उड़ा
    मिट गयी ना जाने कैसी कैसी हस्तियां
    जब जब जिससे भी इसका वास्ता पड़ा
    बदलने चले थे कई सिकंदर और कलंदर
    ख़ाक हुए जिसकी राह मैं यह रास्ता पड़ा
    मत कर गुरूर अपनी हस्ती पर ऐ RAAJ
    कुछ पल उसे देदे सामने जो फ़कीर खड़ा

    जवाब देंहटाएं

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