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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

विषमताओं से वो क्यूँ हो विचलित....अंक पिचहत्तर

एक दिन
परमात्मा ने
मुझसे कहा कि.....
तुम्हें सब
शिकायतें
मुझ ही से हैं...!!
.....
मैंने भी
सर झुका के
कह दिया कि..
मुझे भी..
सब उम्मीदें  तो
आप ही से हैं..

सादर अभिवादन.....
ये रही आज की रचनाओं की कड़ियाँ....


आज मन मे एक सवाल ने दस्तक दिया 
क्या है मेरी पहचान ? 
रसोई मे अच्छा खाना बनाना 
और फिर तारीफ सुन खुश हो जाना , 
या मेरा व्यवस्थित घर 
जिसे कभी अव्यवस्थित 
रखने की गुंजाइश नहीं , 


विषमताओं से वो क्यूँ हो विचलित
जब दूर चमकते चाँद का सर्वस्व...
धरा का है...


प्याज घोटाला।
आह! इत्ते दिनों के बाद किसी घोटाले की खबर सुनने को मिली। वरना, तो घोटाले की खबर सुनने को कान तरस गए थे। एकदम नई सरकार। एकदम नया घोटाला। घोटाला भी ऐसा कि सुनते ही आंखों में पानी आ जाए।... प्याज घोटाला।


लड़कियां
डरी-सहमी लड़कियां
चाहकर भी
मुहब्बत की राह पर
कदम नहीं रख पाती


अब भी तो कुछ रहम कर ऐ बेवफा ज़िन्दगी
दे रही किस बात की तू सज़ा ज़िन्दगी

सांस लेना भी क्या अब गुनाह हो चला है
हो रही क्या मुझसे यही खता ज़िन्दगी..



बहुत याद कर चुके मुझे  
अब बस करो  
अहिंसा  की  लड़ाई  मेरी थी  
लड़ी भी मैंने  
अब तुम कहते रहो  
शहीद  भगत सिंह  को  मै  
बचा सकता था 


शायरी से ज्यादा प्यार मुझे कहीं नही मिला..

ये सिर्फ वही बोलती है, जो मेरा दिल कहता है…!!!

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलेंगे













2 टिप्‍पणियां:

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