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बुधवार, 19 अगस्त 2015

ज्योतित हों मुख नवम आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर--अंक 32

जय मां हाटेशवरी...


 

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर
व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयंकर

है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती,
जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर

बहुत संकुचित छोटा घर है, दीपालोकित फिर भी धुंधला,
वधू मूर्छिता, पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, कवि का मन गीला
"ये सब क्षनिक, क्षनिक जीवन है, मानव जीवन है क्षण-भंगुर" ।

ऐसा मत कह मेरे कवि, इस क्षण संवेदन से हो आतुर
जीवन चिंतन में निर्णय पर अकस्मात मत आ, ओ निर्मल !

इस वीभत्स प्रसंग में रहो तुम अत्यंत स्वतंत्र निराकुल
भ्रष्ट ना होने दो युग-युग की सतत साधना महाआराधना

इस क्षण-भर के दुख-भार से, रहो अविचिलित, रहो अचंचल
अंतरदीपक के प्रकाश में विणत-प्रणत आत्मस्य रहो तुम

जीवन के इस गहन अटल के लिये मृत्यु का अर्थ कहो तुम ।
क्षण-भंगुरता के इस क्षण में जीवन की गति, जीवन का स्वर

दो सौ वर्ष आयु होती तो क्या अधिक सुखी होता नर?
इसी अमर धारा के आगे बहने के हित ये सब नश्वर,

सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ मरण-गीत तुम सुंदर
तुम कवि हो, यह फैल चले मृदु गीत निर्बल मानव के घर-घर

ज्योतित हों मुख नवम आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर


गजानन माधव मुक्तिबोध

अब चलते हैं...आनंद के आज के सफर पर...
बहुत प्रसिद्ध खेल हैं कृपाण के,
कहां समान वह कलम-कमान के,
अचूक हैं निशान शब्द-बाण के,
कलम लिए हुए कभी न तुम डरो।
समस्त देश की बसेक टेक हो,
समस्त छिन्न-भिन्न जाति एक हो,
विमूढ़ता जहां वहाँ विवेक हो,
यही प्रभाव शब्द-शब्द में भरो।


भीगते तो होंगे तुम्हारे भी कुछ लफ्ज़ 
मेरे याद के भरे बादल बरसते तो होंगे
चलती तो होंगी तुम्हारे शहर भी हवाएँ
मेरे नाम के पत्ते शाख से गिरते तो होंगे


दिखाये देखे सपने की
दुनियाँ फिल्म देखने
के दरम्यान के तीन
घंटे की बस एक
फिल्म हो जायेगी
हर सीन वाह वाह
और जय जय का
होता चला जायेगा
कैसे नहीं दिखेगा
आयेगा नहीं भी
तब भी फिल्म का
अंत सकारात्मक
कर ही दिया जायेगा


साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ,
जाके हिरदै  साँच है ,ताके हिरदै  आप।
उसने ऐद किया आइन्दा गलती न दोहराने का सत्यसंकल्प कर लिया। उसके लिए यही प्रायश्चित की कसौटी सिद्ध होगी उसे खुद पे यकीन है। पूरा यकीन ,वह आइन्दा अपने आसपास
को पूरी तवज्जो देगा।


लेखक और प्रकाशन समूह हिंदी के पाठक वर्ग का रोना रोते हैं कि हिंदी भाषा का पाठक वर्ग कम होता जा रहा है लेकिन वे इसकी कमियों को ढूंढने का प्रयास नहीं करते.जरूरत
इस बात की है मूल भाषा से हिंदी में अनुवाद करते समय उसके भाव तो यथावत रहें और यथासंभव हिंदी के शब्दों का प्रयोग हो.


लेकिन हिन्दी में ऐडसेंस विज्ञापन लाने की आवश्यकता क्यों महसूस की गयी? इसका कारण यह की समूचे उत्तर भारत और मध्य भारत में हिन्दी सर्वाधिक बोली जाने वाली
भाषा है। यदि आप भारत में ऑनलाइन उभरते हुए बाज़ार में अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहते हैं तो आपको हिन्दी बोलने वालों से उनकी भाषा संवाद करना होगा। आइए देखते हैं
कि गूगल ऐडसेंस द्वारा तैयार की गयी इंफ़ोग्राफ़िक इस बारे में क्या दर्शा रही है।


धन्यवाद।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति कुलदीप जी । आभार 'उलूक' का सूत्र 'चलचित्र है चल रहा है मान ले अभी भी सुखी हो जायेगा' को आज के पंचों में जगह दी :) ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर
    अदम्य साहस है आपमें
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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