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बुधवार, 5 अगस्त 2015

शमा जलती रहे तो बेहतर है।..........अकं 18

जय मां हाटेशवरी...

ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमने आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।


साहिर लुधियानवी  की इस गजल के बाद...अब देखिये मेरी पसंद के 5 लिंक...



मन जो बिखरा-बिखरा सा था
उसे समेट पिरोई माला,
जाने किसने निज वैभव से
प्रीत के घूँट पिलाकर पाला !


क्या वक्त था, कितने आला प्यारे थे लोग
हाय क्या वक्त है कितने बेरहम आवारे हैं लोग।।
ले लुकाठी गर कोई अपना ही घर फूंका करे।
आइए मिलके उसकी नादानी का मातम करें।।

रहता है मन उसके वश में, वह धैर्यवान है
चाँद पर पत्थर है ,यह सब जान लोग गए
विज्ञान ने कुछ ऐसा किया,इंसान बदल गए
गृह-नक्षत्र से नाता जोड़ा, वे आ गए करीब
रिश्ते के तार टूट गए,रिश्तेदार दूर हो गए |

कुछ शरीफों के
शरीफ झमेलों की
शरीफ ओढ़े कुछ शरीफ
शरीफ मोड़े कुछ शरीफ
शरीफ तोड़े कुछ शरीफ
कुछ शब्द शब्दों में शरीफ
कुछ चेहरे चेहरों में शरीफ ।

 सूना-सूना है घर का आगंन लिखा है
रूठा-रूठा हूं  खुद से ही हरदम लिखा है
फूल या कलियां सब तो है इसमे, पर
कहां से लाये खुशबू  ये उपवन लिखा है
लोट लगाते थे जिसमे  हम सुबह सवेरे ही
अपने आंगन की सौंधी-सौंधी  मिट्टी लिखी है
कल सपने मे मुझको घर की मिट्टी दिखी है


धन्यवाद...

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति कुलदीप जी । आभार 'उलूक' का सूत्र 'कुछ शब्द शब्दों में शरीफ कुछ चेहरे चेहरों में शरीफ' को स्थान देने के लिये । ब्लाग बाजार में मंदी चल रही है ऐसा कुछ महसूस हो रहा है :)

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  2. कुलदीप जी, देर से आने के लिए खेद है..कृपया माँ हाटेश्वरी के बारे में कुछ परिचय दें, पहली बार नाम सुना है, आभार !

    जवाब देंहटाएं

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