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शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

हरी घास की चटाई पर..... .....आनन्द का छठवां अंक

यशोदा का अभिवादन स्वीकार करें

मेरी आँखों को सुर्ख़ देख कर कहते हे लोग,,
लगता है…तेरा प्यार तुझे आज़माता बहुत है....





बिना किसा लाग-लपेट के चलें देखें आज के लिंक्स....



अब सि‍द्ध न रहे
तुमको
वो त्राटक, वो सम्‍मोहन।
भूल चुके तुम
मारण मोहन उच्‍चाटन।।




फूल को ख़ार बनाने पे तुली है दुनिया,
सबको अंगार बनाने पे तुली है दुनिया

मैं महकती हुई मिटटी हूँ किसी आँगन की,
मुझको दीवार बनाने पे तुली है दुनिया


न जाने कैसा है वो शीशा
ए अहसास, नज़र 
हटते ही होता 
है टूटने 
का गुमान। क़रीब हो जब 
तुम, लगे सारा 


बंद करो अपनी पलकें
रखो अपना दायाँ हाथ
बायें तरफ सीने पर
महसूस करो मुझे
अपनी धड़कन में
हर पल हर दम


मैं करता रहा मेहनत लोग जुगाड़ भिड़ाते रहे
वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे 

बेईमानी करती रही रेप रोज ईमानदारी का 
लोग उसी को किस्मत का लिखा बताते रहे 



समेट कर रखे ये कोरे पन्ने एक रोज
बिखर जाएंगे …
जिंदगी तेरे किस्से खामोश रहकर
भी बयां हो जाएंगे…

अब विदा मांगती है यशोदा...















4 टिप्‍पणियां:

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