tag:blogger.com,1999:blog-692139476716571990.post5139830988405442360..comments2024-03-28T11:15:23.497+05:30Comments on पाँच लिंकों का आनन्द: 1828 मायकाyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-692139476716571990.post-83889663066574513732020-07-19T01:28:38.685+05:302020-07-19T01:28:38.685+05:30अद्धभुत भावाभिव्यक्तिअद्धभुत भावाभिव्यक्तिविभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-692139476716571990.post-7269061224679459482020-07-19T00:27:55.543+05:302020-07-19T00:27:55.543+05:30आदरणीय दीदी , मायके से नारी का रिश्ता किसी से छुप...आदरणीय दीदी , मायके से नारी का रिश्ता किसी से छुपा नहीं -ना ही छुप पाता है - बुढापे तक मायके से मोह | भारतीय समाज में बहन , बुआ , बेटी को विशेष महत्व मिला है ,जिनके कदमों से मायके में बरकत समझी जाती है | ये अलग बात है धीरे- धीरे नई पीढ़ी इस मोह से मुक्त हो रही है तो अधिकारों के बुनियादी प्रश्नों में आपसी अपनत्व उलझ कर रह गया है | बहुत ही भावपूर्ण रचनाएँ पढवाई आपने | मायके के सुख -दुःख और विभिन्न रंग संजोती हुई | सभी रचनाकारों को बधाई उर आपको भी साधुवाद इस भावपूर्ण अंक के लिए | काफी दिन पहले मैंने भी आयके जाती माँ के भावों को संजोती एक रचना को लिखने का प्रयास किया था जिसे यहाँ लिख रही हूँ | | रचना में गाँव -- मायके का ही परिचायक है --<br /><br /> <br /><br /><br /><br />माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है -<br /><br />माँ की आँख डबडबाने लगी है !<br />चिरपरिचित खेत -खलिहान यहाँ हैं ,<br />माँ के बचपन के निशान यहाँ हैं ;<br />कोई उपनाम - ना आडम्बर -<br />माँ की सच्ची पहचान यहाँ है ;<br />गाँव की भाषा सुन रही माँ -<br />खुद - ब- खुद मुस्कुराने लगी है !<br />माँ की आँख डबडबाने लगी है !!<br /><br /><br />भावातुर हो लगी बोलने गाँव की बोली -<br />अजब - गजब सी लग रही माँ बड़ी ही भोली ,<br />छिटके रंग चेहरे पे जाने कैसे - कैसे -<br />आँखों में दीप जले - गालों पे सज गयी होली ;<br /> जाने किस उल्लास में खोयी -<br /> मधुर गीत गुनगुनाने लगी है !<br />माँ की आँख डबडबाने लगी है !<br /><br /><br />अनगिन चेहरों ढूंढ रही माँ -<br />चेहरा एक जाना - पहचाना सा ,<br />चुप सी हुई किसी असमंजस में<br /> भीतर भय हुआ अनजाना सा ;<br />खुद को समझाती -सी माँ -<br />बिसरी गलियों में कदम बढ़ाने लगी है !<br />माँ की आँख डबडबाने लगी है !!<br />शहर था पिंजरा माँ खुले आकाश में आई -<br />थी अपनों से दूर बहुत अब पास में आई ,<br /> उलझे थे बड़े जीवन के अनगिन धागे <br /> सुलझाने की सुनहरी आस में आई<br />यूँ लगता है माँ के उग आई पांखें-<br />लग अपनों के गले खिलखिलाने लगी है<br />माँ की आँख डबडबाने लगी है !!! <br />पुनः आभार और प्रणाम !!<br /><br />रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-692139476716571990.post-24508694145735112922020-07-18T11:04:07.305+05:302020-07-18T11:04:07.305+05:30सुंदर प्रस्तुतिसुंदर प्रस्तुतिPammi singh'tripti'https://www.blogger.com/profile/13403306011065831642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-692139476716571990.post-54560389140557634162020-07-18T09:45:02.521+05:302020-07-18T09:45:02.521+05:30सादर नमन...
सदाबहार प्रस्तुति
सादरसादर नमन...<br />सदाबहार प्रस्तुति<br />सादरyashoda Agrawalhttps://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-692139476716571990.post-85583277477191689052020-07-18T08:56:53.915+05:302020-07-18T08:56:53.915+05:30आदरणीया विभा जी इस सम्माननीय साहित्यिक मंच पर मेरी...आदरणीया विभा जी इस सम्माननीय साहित्यिक मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सादर <br />सभी रचनाकारों को अभिवादन <br />बेहतरी साधुवाद 🙏🙏hindiguruhttps://www.blogger.com/profile/09026018787795712597noreply@blogger.com