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रविवार, 26 अक्टूबर 2025

4552 ..चेतना का मानचित्र दुनिया इसे जीवन कहती है

 सागर अभिवादन

एक उत्सव जा रहा है
और दूसरा आ रहा है
ऐसे में नयी रचनाएं आए तो आए
कहां से..आज देखिए भूली बिसरी रचनाएं


दुनिया इसे जीवन कहती है,
पर वह जानती है—
यहाँ हर सुबह एक मौत-सी होती है,
और हर रात एक जन्म की तैयारी;
फिर भी वह मुस्कुराती है,
क्योंकि यह खेल
हर बार कुछ नए किरदारों से मिलता है।





लिखेगा कुछ तभी तो सुनेगा भी कुछ तो लिख
कोई कहेगा कुछ लिखे पर
कोई सहेजेगा लिखे का कुछ इसलिए लिख
जमा मत कर
अन्दर कुछ लिख बाहर बेमिसाल कुछ लिख
चाहे किसी पेड़ किसी दीवार में लिख
डर मत बेधड़क कुछ लिख




सत्य की दीवार
उनका निर्माण था
कदाचित उन्हें
सत्य के मान का भान रहा होगा
सरलता और सादगी का जीवन
उनकी पहचान रहा होगा
मिथ्या वचन,छल,पाखंड,क्रूरता,अन्याय और दंभ
तब उस पवित्र दीवार से
परे ही रहे होंगे





मेरे जन्म पर
न सप्तऋषियों ने कोई बैठक की
न ग्रहों की चाल ने कोई
विशेष योग बनाया ...
न सूरज मुस्कुराया
न चाँद खिलखिलाया
न सितारों ने भेजा जादुई संदेश
न मछलियाँ देखकर शरमाई




नजरो से अपनी पिलाइये तो जरा।
हस कर करीब मेरे आइये तो जरा।।

क्यूं रूठे है सनम आप हमसे।
क्या वजह है बताइये तो जरा।।

दिल है मेरा कांच का सनम।
इस पर रहम खाइये तो जरा।।

आज बस
वंदन

5 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ हर्ष की बूँद
    दिखी है
    अच्छा अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सराहनीय संकलन भाई साहब 🙏
    शिर्षक पर अपने भाव देखकर अत्यंत हर्ष हुआ।
    आपका स्नेह आशीर्वाद अनमोल है।
    हार्दिक धन्यवाद 💐
    सादर नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं

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