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मंगलवार, 23 सितंबर 2025

थोड़ा सा कुछ बिकना.सीख

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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देवी का आह्वान करने से तात्पर्य  मात्र विधि-विधान से मंत्रोच्चार पूजन करना नहीं, अपितु अपने अंतस के विकारों को प्रक्षालित करके दैवीय गुणों के अंश को दैनिक आचरण में जागृत करना है।
व्रत का अर्थ अपनी वृत्तियों को संतुलित करना और उपवास का अर्थ है अपने इष्ट का सामीप्य।
अपने व्यक्तित्व की वृत्तियों अर्थात् रजो, तमो, सतो गुण को संतुलित करने की प्रक्रिया ही दैवीय उपासना है।
देवी के द्वारा वध किये दानव कु-वृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे-
महिषासुर शारीरिक विकार का द्योतक है
चंड-मुंड मानसिक विकार,
रक्तबीज वाहिनियों में घुले विकार,
ध्रूमलोचन दृश्यात्मक वृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है,
शुम्भ-निशुम्भ भावनात्मक एवं आध्यात्मिक।
प्रकृति के कण-कण की महत्ता को आत्मसात करते हुए
ऋतु परिवर्तन से सृष्टि में उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा का संचयन करना और शारीरिक मानसिक एवं अध्यात्मिक विकारों का नाश करना नवरात्रि का मूल संदेश है।




पुचकारो, सहलाओ, फेरो अपनी स्नेहसिक्त हथेली,

किसी निज प्रिय की आँखों की तरह ही कभी-कभी,

फ़ुर्सत निकाल झाँको कभी तो इनकी आँखों में भी।

भैरव के हो उपासक तो मानो इन्हें निज संतान-सी।





और
जब इन सब वृत्तों से
थोड़ी सी बचती हूँ
तो चली जाती हूँ
उस वृत्त में
जो सबसे भीतर है
सबसे शांत
सबसे गूढ़
जहाँ मैं
अपने आप में समाई हूँ।



ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री साँप तनाह लोट’  की तलहटी में रहता है और मंदिर को घुसपैठियों और दुष्ट लोगों से बचाता है। द्वैपायन ने बताया कि मन्दिर वरुणदेव को समर्पित है । हम देर तक मन्दिर से टकराती लहरों को  देखते रहे मानो वे वरुणदेव का अभिनन्दन कर रही हों ।




इस सुबह जागने में भी एक आत्मीयता होती है। इतराता हुआ आलस घेर लेता है और आप अचानक नहीं उठते, बल्कि आराम से कुछ सोचते हुए उठते हैं। कुछ क्षण बिस्तर पर यूँ ही बैठे रहते हैं जैसे कोई पत्ता शांत पानी की सतह पर तैर रहा हो। शरीर हल्का महसूस करता है, आत्मा ज़्यादा स्वतंत्र महसूस करती है क्योंकि उसे पता है कि आगे आने वाले घंटे किसी ज़िम्मेदारी के बंधन में अटके हुए नहीं हैं। यह आज़ादी सूक्ष्म होते हुए भी गहन लगती है और इसे हम धीरे-धीरे चाय की चुस्कियाँ लेते हुए, केतली से दोबारा कप भरते हुए एक  उत्सव की तरह जीते हैं।


साधक हो जाएगा सधेगा खुद भी
बाधाओं के बाजार लगेंगे
बस तू थोड़ा सा कुछ बिकना सीख
सधी हुई लेखनी से सधा हुआ कुछ लिखा हुआ
सामने कागज पर उतर आएगा
भीड़ होगी मधुमक्खियों की तरह
जहर के पानदानों के विज्ञापनों में निखरना सीख

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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह मन से नमन आपको एवं आपका सादर आभार मेरी बतकही को इस मंच तक लाने के लिए ...
    आज की भूमिका में नवरात्रि संज्ञा की सही संज्ञान सहित आपका आख्यान किसी भी कर्मकांडी आस्तिक को तार्किक नास्तिक में सौहाद्रपूर्ण परिवर्तित करने की मादा रखती है और ... ... किसी भी "दिशाहारा" को "दशहरा" का अभिप्राय से अभिभूत करने के लिए पर्याप्त हैं .. शायद ...

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  2. बेहतरीन अंक. नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद, श्वेता जी

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  4. सभी लिंक्स पढ़े बढ़िया चयन । धन्यवाद श्वेता जी

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  5. माँ के आने का आभास है इस अंक में ।

    जवाब देंहटाएं

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