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सोमवार, 1 सितंबर 2025

4498...सेवानिवृत होकर तो जवान भी बूढ़े हो जाते हैं...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.टी.एस.दराल जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

सोमवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

रिटायर्ड होकर टायर्ड ना हों।

खाली घर में रहकर हाथ पैर भी टेढ़े हो जाते हैं,

सेवानिवृत होकर तो जवान भी बूढ़े हो जाते हैं।

इसीलिए कहते हैं भैया रिटायर्ड हुए तो क्या, टायर्ड मत हो,

मिलो मिलाओ, कविता लिखो, सुनो सुनाओ, फिर ना कोई ज़हमत हो।

*****

कुछ खरी-खरी

मुद्दा बनता वोट का,झूठे बोलें बोल।

कड़वी बातें बोलते, बातों में है झोल।

देश हित सोचें नहीं,ओछी इनकी सोच,

दूजे की निन्दा करें,पहले खुद को तोल।

*****

विलुप्त पल--

वो बुलाते हैं मुझे सुदूर वनांचल
में, जहां कभी मैं दौड़े जाया करता था
खुले बदन, सभी दुःख दर्द से मुक्त
हो कर बारिश में भीगने के
लिए, काश, वो जान
पाते वेदनामय
अंतर,

*****

 अपनी इच्छा पर निर्भर है

तिरस्कृत है वह कटु भाषा

जिससे टूटता हृदय की तार

परवाह नहीं जिसे अपनों की

कष्ट वेदना देता है अपार।

*****

सर्वधर्म समभाव...

हवा सभी को मिलती है, जल सबको देता जीवन,

सूरज की किरणें पूछतीं नहीं, किस मज़हब का है तन।

 दीवारों के साए में क्यों, नफ़रत के बीज उगाते हो?

इंसान हो जब पैदा होते, फिर क्यों धर्म बतलाते हो?

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव

 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर

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