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बुधवार, 7 मई 2025

4481..ज़िन्दगी न ठहरी, न थमी..

 ।।प्रातःवंदन।।

"है बहुत अंधियार अब #सूरज निकलना चाहिए,

जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए।


छीनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो

आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए !"

गोपालदास 'नीरज'

बहुत कुछ कहकर,थोड़ा संभलकर लिजिए बुधवारिय प्रस्तुतिकरण..

सफ़र जारी है

बहुत कुछ छूट गया

बहुत कुछ छोड़ दिया

ज़िन्दगी न ठहरी, न थमी

चलती रही, फिरती रही 

न कोई राह दिखाने वाला 

न कोई साथ निभाने वाला  

✨️

कुछ फायकू

 


बनाई सुन्दर सी रंगोली
सजा दिए तोरण
तुम्हारे लिए

✨️

अर्थ

अलसाई सहर पैबंद सरीखी सी कायनात बीच l

कयामत खलल ख्वाबों ख्यालों अफ़सानों बीच ll


धूप अरदास धूनी कौतूहल सी लागत दर्पण नीर l

पुकार हृदय मांझी नृत्य साधना यौवन सागर क्षीर ll

✨️

मार्केज़ मर्सिडीज सा कुछ

मुझे भी तुमसे कुछ ऐसा सुनना है

जैसे मार्केज़ ने कहा था मर्सिडीज़ से

और मैं ख़ुद को उसके बाद

झोंकना चाहूँगी

इंतज़ार की भट्टी में

वह इंतज़ार

जो क़िस्मत से पूरा हो


वह इंतज़ार..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

 


 

1 टिप्पणी:

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