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शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

4455...उन्हें नींद नहीं आती, पर हम चैन की नींद सोते हैं...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शुक्रवारीय प्रस्तुति में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

 पिता की खांसी

पिता दिन में भी खाँसते हैं,

पर रात में ज़्यादा खाँसते हैं,

उन्हें नींद नहीं आती,

पर हम चैन की नींद सोते हैं।

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पापी का सच

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सुखनवर द्विमासिक पत्रिका में प्रकाशित आकिब जावेद की ग़ज़लें

सुख़नवर द्विमासिक पत्रिका के जनवरी - फरवरी 2025 के अंक में नामी आदीबों के साथ इस नाचीज़ को जगह देने के लिए संपादक आदरणीय असीम आमगांवी साहब का बहुत बहुत शुक्रिया

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 विप्र सुदामा-70

जब रथ पर बैठ गये कान्हा,

दहाड़ मार रोई सिगरी नगरी।

वादा करो आज  कान्ह तुम,

फिर कब अइहौ मोरी नगरी।।

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कविता: "एकलव्य"

अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।

तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता।

फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती

अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आभार
    मेरे ब्लॉग (कानूनी ज्ञान) पर आकर "साइबर क्राइम से लड़ें-1930 डायल करें" से जागरूक समाज का हिस्सा बनें - https://shalinikaushikadvocate.blogspot.com/2025/04/1930.html

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