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मंगलवार, 28 जनवरी 2025

4382...सरापा गुलमुहर है ज़िंदगी



मंगलवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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क्यों न कुछ दर्द उम्मीद की दरिया में धोया जाय
आसान नहीं फिर भी कुछ सपने बंजर आँखों में बोया जाय।
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चिट्ठाजगत में क़लमकारों की क़लम 
की बोलती बंद है दिन-ब-दिन
ये ख़ामोशी बढ़ती ही जा रही है।
किसी-किसी दिन तो 
पाँच कविताएँ / कहानी का
सूत्र लगाने के लिए भी मशक्कत करनी
पड़ती  है।
मन चिंतित है चिट्ठा जगत के भविष्य को लेकर...
नियमित रचनाओं से अलग
आज पढ़िए एक ऐसे तेज-तर्रार,
क़लम के धनी शख्सियत को
अदम गोंडवी
समाज के संचालन के लिए संवेदना ज़रूरी शर्त है। भौतिक प्रगति के साथ, हमने सबसे मूल्यवान जो चीज़ खोई है, वह है संवेदनशीलता। व्यवस्था से जोंक की तरह चिपके हुए लोग, आख़िर संवेदनहीन व्यवस्था के प्रति विद्रोह का रुख कैसे अख़्तियार करें? ऐसे बहुत कम नाम हैं, जो हिंदी गज़ल साहित्य को संवेदना का स्वर देने की कोशिश करते हैं, जिनकी आवाज़ में जड़ व्यवस्था के प्रति विद्रोह का भाव है।


हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए




तुम्‍हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ' गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्‍हारी मेज चाँदी की तुम्‍हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्‍मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है





आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिंदगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है जिंदगी
भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लमहात से भी तल्ख़तर है जिंदगी
डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साए में फिर भी बेख़बर है ज़िंदगी
रोशनी की लाश से अब तक जिना करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िंदगी
दफ़्न होता है जहाँ आ कर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गंदा असर है ज़िंदगी


★★★★★★★

उम्मीद है आज का अंक
आपको पसंद आया होगा;
आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

4 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तविक प्रश्न
    और उलाहना को लिए हुए
    धमाकेदार अंक
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. कोई लिंक नहीं न खुला
    सो कविता कोश से
    लिंक लेकर लगा दिए
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी सर, रचनाएँ पूरी थी न इसलिए लिंक नहीं लगाए थे।

      हटाएं
  3. सही कहा श्वेता आपनें ....बोलती बंद ही है ..।
    आदरणीय गोंडवी जी की रचनाएँ साँझा करनें के लिए धन्यवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं

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