लीजिये इस बार भी सोमवार कुछ जल्दी ही आ गया लग रहा है .... कोई बात नहीं आज शुरू करेंगे एक ऐसे ब्लॉग से जो आम आदमी को भी आइना दिखाता हो ..... हांलांकि फिलहाल इस ब्लॉग पर पोस्ट आ नहीं रही हैं फिर भी आप पाठकों को इसका पता ठिकाना देना चाह रही हूँ . क्यों कि इस ब्लॉग पर बहुत कुछ तीखा तीखा मिलता रहा है .... यदि इस ब्लॉग पर कुछ पुरानी पोस्ट पढेंगे तो मुद्दों पर किस तरह विचार विमर्श हो जाया करता था उससे परिचित होंगे ... इस ब्लॉग का सञ्चालन अंशुमाला जी करती हैं .और अपने इस ब्लॉग mangopeople के बारे में कहती हैं कि -----
मैंगो पीपल यानी हम और आप वो आम आदमी जिसे अपनी हर परेशानी के लिए दूसरो को दोष देने की बुरी आदत है . वो देश में व्याप्त हर समस्या के लिए भ्रष्ट नेताओं लापरवाह प्रसाशन और असंवेदनशील नौकरशाही को जिम्मेदार मानता है जबकि वो खुद गले तक भ्रष्टाचार और बेईमानी की दलदल में डूबा हुआ है. मेरा ब्लाग ऐसे ही आम आदमी को समर्पित है और एक कोशिश है उसे उसकी गिरेबान दिखाने की.....जब कोरोना का पदार्पण हुआ ही था तो ४ महीने के अन्दर ही उन्होंने समझ लिया था कि ---
दुनियां और देश के बाकि हिस्सों का हाल मार्च में जो भी था लेकिन मुंबई में मास्क की कमी कभी नहीं रही | मार्च में यहाँ फुटपाथों पर 30 ,50 , १०० रुपये तक के मास्क के ढेर लगे थे , अब भी लगे हैं | वो अलग बात हैं कि वो थ्री लेयर नहीं थे और जरुरत के मुताबिक भी , लेकिन मास्क थे | इसलिए कोई कम से कम तब और अब मास्क ना मिलने का बहाना मार कर मास्क पहनने से इंकार नहीं कर सकता हैं |
आज मास्क हेलमेट की तरह हो गया है ....... सावधानी हटी दुर्घटना घटी ..... तो मेरी भी यही गुज़ारिश कि बिना मास्क घर से बाहर न निकलें ....
***********************************************************
रही बाहर निकलने की बात तो आज की स्त्रियाँ हर ओर अपना परचम लहरा रही हैं ...... कोई भी क्षेत्र हो .... लेखन को ही ले लीजिये .... हर तरह का लेखन हो रहा है ...... और स्त्रियाँ बेबाक अपनी बात रख रही हैं .... ... और चुनौतियाँ भी दे रही हैं .... राहुल देव जी के ब्लॉग अभिप्राय पर पढ़िए एक मंथन करने वाला लेख ...जिसके लेखक हैं विमल चंद्राकर ....
आज के प्रासंगिक समय में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है।आज स्त्रियाँ जहाँ प्रगतिवादी कविता के भीतर वैयक्तिक सामाजिक जीवन के प्रेम मूल्य को साध चुकी हैं। वे नागार्जुन, त्रिलोचन, मुक्तिबोध, शमशेर के प्रेम काव्य से हटकर स्त्री पुरूष संबंधो पर बेबाकी से लिखना चाहती हैं। वह छायावादी वायवीय वातावरण से कोसों दूर खास किस्म की फैंटेसी से इतर प्रणय-व्यंजना जैसे विषय को लेखन का विषय नहीं चुनती। अतएव इन सब कारणों को देख स्त्री का लेखन कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा यह अनुभूत होता है।
***********************************************************************
एक ओर स्त्री लेखन की चुनौतियाँ हैं ....तो दूसरी ओर ज़िन्दगी से लड़ने कि जद्दोजहद चल रही है ...... किसी की ज़िन्दगी में सुकून नहीं . हर्ष महाजन जी लाये हैं अपनी दुविधा को एक ग़ज़ल के रूप में .....
फैसले के लिए उसने था बुलाया मुझको,
दिल में क्या बात कहा बात बता लूँ यारो ।
आस्तीनों में यूँ साँपों को मैं कैसे झेलूँ,
दो इज़ाज़त तो ज़रा बीन बजा लूँ यारो ।
************************************************************
अब देखिये बीन तो न जाने कौन-कौन और कहाँ -कहाँ बजा लेगा ....... वैसे पूरे साल भर किसी न किसी बात की बीन ही बजती रहती ...... कभी मजदूर दिवस तो कभी हिंदी दिवस .... अब तो माता पिता .....सभी के दिन मुक़र्रर हो गये हैं ...... तो हमारी चिंतनशील ब्लॉगर डा ० शरद सिंह जी एक सलाह दे रही हैं .... अब मानें या न माने ये आपके ऊपर निर्भर है .....
यूं भी एक दिवसीय चिन्ताओं का हमारा अद्भुत रिकॉर्ड पाया जाता है। अब देखिए न, हम हिन्दी की चिंता सिर्फ एक दिन करते हैं। उस एक दिन हम हिंदी के उद्भव, विकास, अवसान आदि सब के बारे में चिंता कर डालते हैं। यह ठीक भी है क्योंकि शेष दिनों में अंग्रेजी के बिना हमारा काम नहीं चलता। यदि इंग्लिश-विंग्लिश नहीं बनती तो हिंग्लिश से काम चला लेते हैं।
***********************************************************************
वैसे हर कोई सलाह देने में बहुत माहिर होता है ..... कोई सुने या न सुने ..... असल में सबको दूसरों की चिंता रहती है ... अब आज कल सब घर में रह रह कर बहुत उकता गए हैं तो धीरेन्द्र जी चाहते हैं कि कुछ तो रचा जाये ..... लिखा जाये .... कहीं तो भावनाओं की नदी बहे ....
गीत लिखो कोई भाव सरणी बहे
मन की अदाओं को वैतरणी मिले
यह क्या कि तर्क से जिंदगी कस रहे
धड़कनों से राग कोई वरणी मिले |
*********************************************************
एक ओर धीरेन्द्र जी सरिता बहाने की बात कर रहे तो दूसरी ओर हमारी एक अन्य ब्लॉगर आज के हालत को देख अपना आक्रोश रोक नहीं पा रहीं .......
अनुराधा जी अपने अंदाज़ में बता रहीं हैं कि
चीखती धरणी पुकारे
जाग मानव सो रहा है।
काल को घर में बुलाने
बीज जहरी बो रहा है।
अब अनुराधा जी की रचना पढ़ कर तो जागिये ....... चलिए आज इतना ही ........ पाँच से थोडा ज्यादा हो गया ...... सब्जी खरीदते वक़्त धनिया पत्ती और हरी मिर्च अलग से ले आते हैं .....बस वैसे ही .... :) :)
फिर मिलते हैं ......... आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा ........ शुक्रिया .
संगीता स्वरुप .
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंमैंगो पीपुल
काफी रचनाएँ पढ़ी..
राहुल देव जी का अभिप्राय दमदार है
कल हर्ष भाई साहब का ब्लॉग देखने गई थी
ग़जलों के अलावा लघुकथा का ब्लॉग मन मोह लिया
सारी रचनाएँ पढ़ कर एक टिप्पणी और दूँगी
सादर नमन..
शुक्रिया यशोदा । अगली टिप्पणी का इंतज़ार है ।
हटाएंआदरणीय दीदी..
जवाब देंहटाएंअदरक लहसुन और मीठा नीम
भी ले लीजिएगा अगली बार..
आभार..
सादर..
😄😄😄 फिर तो अगली बार चटनी का स्वाद लीजिएगा ।
हटाएंवन्दन संग शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआज सभी रचनाओं को पढ़ ली
–सामयिक चिन्तन से जगने की कोशिश जारी
साधुवाद आपको
आभार विभा जी ।
हटाएं🙏🙏🙏
चिन्ता तो है..
जवाब देंहटाएंजून शान्त है अब तक
अगली बार गाजर भी लीजिएगा
हलुआ खाऊँगी
सादर चरण स्पर्श
गाजर के लिए इंतज़ार करो ।
हटाएंशुक्रिया
शुभ प्रभात !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चयन
सादर
हर्ष जी ,
हटाएंआभार ।
एक संपूर्ण थाली सी विविधता है आज की चर्चा में.
जवाब देंहटाएंपढ़ते हैं धीरे-धीरे!
वाणी ,
हटाएंतुम्हारी टिप्पणी ने राजस्थानी थाली की याद दिला दी । वैसे भी कई बार तुम्हारे द्वारा परोसी थाली के चित्र देखे हैं जो विभिन्न पकवानों से सजे थे । थाली से आज की प्रस्तुति की तुलना मन को तृप्त कर रही है । बहुत बहुत शुक्रिया ।
बेहतरीन संकलन। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएंआभार , अनुराधा जी ।
हटाएंअंशुमाला जी के ब्लॉग mangopeople की तरह ही कई ब्लॉग जो पहले खूब लिखे जाते थे, आज लगभग बंद हो चुके है, जहाँ पहुंचकर लगता है तालाबंदी के शिकार हो गए हैं, या कोई पहाड़ का घर छोड़कर शहर बस कर भूल गया उस पहाड़ी घर को ......................
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
कविता जी ,
हटाएं।आप बिलकुल सही कह रही हैं । अब न जाने सब फेसबुक पर ही पोस्ट लिख कर संतुष्ट हो जाते हैं । ब्लॉग को डायरी ही समझ कर प्रयोग कर लें।
खैर ...… कोशिश तो कर रहे हैं कि लोग फिर से ब्लॉग से जुड़ें ।
आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए आभार ।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ।
हटाएंप्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख और सारगर्भित कविताओं से सुसज्जित बेहतरीन संकलन तैयार किया है आपने।
बढ़िया गज़ल हर्ष महाराज सर के द्वारा,शरद जी का एकदिवसीय चिंतन पर व्यंग्य, धीरेंद्र जी की सुंदर कविता और अनुराधा जी की सामयिक परिस्थितियों से उपजी मार्मिक अभिव्यक्ति सभी बेहतरीन है।
Mangopeple और अभिप्राय पर प्रतिक्रिया बाद में लिखेंगे।
आलेख पर प्रतिक्रिया बाद में लिखेंगे
----
भावों की अवरुद्ध हुई नलिकाएँ
झर गयी असमय नवकलिकाएँ
तुकांत-अतुकांत के प्रश्न हैं गौण
मुरझाये मन से कैसे गीत लिखे?
------
सप्रेम
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंजब कोई पाठक लिंक पर जा कर उसे गहनता से पढ़ अपनी प्रतिक्रिया देता है तो चर्चा कार को खुशी होती है और लगता है मेहनत सफल हुई ।
मुरझाए हैं मन तभी तो धीरेंद्र जी आह्वान कर रहे हैं कि तुकांत हों या अतुकांत बस निर्झरणी बहनी चाहिए ।
सस्नेह
सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
बंद पड़े ब्लॉग के बारे में सोचा जा सकता है
शायद वे कोमा से बाहर आ जाएँ
सादर..
दिग्विजय जी ,
हटाएंजिन बलॉस पर गाहे बगाहे कुछ पोस्ट होता रहता है उनको कोमा से बाहर लाया जा सकता है । प्रयास तो जारी है ।
बहुत ही रोचक तथा विविधतापूर्ण प्रस्तुति,बहुत बढ़िया अंक, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जिज्ञासा आप ऐसे ही प्रोत्साहित करती रहें ।
हटाएंसंगीता स्वरुप जी मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद | अब प्रयास करुँगी ब्लॉग पर पोस्ट देतीं रहूं |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अंशुमाला जी ।
हटाएंयदि आप ब्लॉग पर पोस्ट करती रहेंगी तो मेरा प्रयास थोड़ा सफल हो पायेगा ।
इंतज़ार रहेगा आपकी नई पोस्ट का ।
वाह अप्रतिम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भारती जी ।
हटाएंVery interesting content. I think you have the power to attract people with your post. Such a nice post. Visit my Site HindiWorldinfo
जवाब देंहटाएंसब पढ़ चुकी.....कविता, गजल, आलेख से सज्जित बहुत रोचक संकलन आपको और सभी रचनाकारों को बधाई 💐
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक हैं। आलेख पढ़े।
जवाब देंहटाएं