सादर वन्दे
आ रहा है
और जा भी रहा है
चलता रहेगा
आना-जाना
सालों का भी
और इंसानों का भी
रुकता नहीं है
ये आना-जाना..
.....
रचनाएँ..
कारण क्या है...!! .... साझेदारी
जलते देख रहे हो तुम भी
प्रश्नव्यवस्था के परवत पर
क्यों कर तापस वेश बना के,
जा बैठै बरगद के तट पर
हां मंथन का अवसर है ये
स्थिर क्यों हो कारण क्या है ?
वो कभी प्रेम से चूमे गए,
कभी आँसुओं में भीगे ख़त ,
वो सूखे गुलाब जिनमें
ताज़ा है इश्क की महक,
वो तुम्हारे साथ खिंचवाई तस्वीरें
साल मुबारक ..अमृता प्रीतम ...उन्मुक्त उड़ान
जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया...
सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ....दिव्य नर्मदा
कब्ज़ा, सूद, इजारादारी
नस्लभेद घातक बीमारी
कंकर-कंकर में है शंकर
हर इंसां में है पैगंबर
स्वार्थ छोड़कर, करें भलाई
ईशदूत बन, संग चलें हम
सल्ललाहो अलैहि वसल्लम
मन के रूमाल पर
दर्द लिखे बूटे।
रिक्शे का पहिया
गिने
तीली के दिन
पैडल पर पैर चलें
तकधिन-तकधिन
....
बस
अब अगले वर्ष
सादर
आभार..
जवाब देंहटाएंअभी विदाई नहीं
शानदार अंक..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति प्रिय दिबू।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बहुत सुन्दर बढ़िया
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