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रविवार, 1 सितंबर 2019

1507...... पोषण मास का आरंभ.....

जय मां हाटेशवरी.....
 हम श्री कृष्ण को भगवान मानकर पूजते रहे........
घर में उनकी प्रतिमा की अपने बच्चों से पूजा कराते रहे.........
उनसे संबंधित बाल  लीलाएं बार-बार बच्चों को सुनाते रहे.........
ताकि हमारे बच्चे भी श्रीकृष्ण की तरह बन सके....
पर हमने कभी अपने बच्चों को नहीं सीखाया......
हमारे प्रभू, मखन,  घी, दूध छाछ खाते थे......
तुम्हे भी ये चीजें खानी चाहिये......
तुम्हारे जिन सखाओं के पास इनकी कमी है.....
उन्हे भी ये चीजें खिलानी चाहिये.....
तभी तुम भी श्री-कृष्ण जैसे बन सकोगे.....
मंदिरों के बाहर भूखे बच्चों की अनदेखी करते हुए....
 अकसर मंदिरों में अनेकों पौषटिक वस्तुएं चढ़ाते हैं.....
काश ये सभी वस्तुएं इन भूखे बच्चों को मिल पाती.....
फिर शायद भारत में कोई भी बच्चा कुपोषण का शिकार न होता......
फिर शायद भारत जैसे देश में......
जहां दूध की नदियां बहती है......
पोषण जैसे किसी  अभियान की आवश्यक्ता ही न पड़ती.....
भारत सरकार द्वारा.....
पोषण-अभियान के अंतर्गत.....
माह सितंबर पोषण मास के रूप में मनाया जा रहा है......
जिसके मुख्य उदश्य....
 बच्चो ( 0-6 वर्ष ) मे ठिगनेपन  ( Dwarfishness )  को कम करना।....
 बच्चो ( 0-6 वर्ष ) मे कुपोषण ( Malnutrition )  के कारण वजन की कमी की समस्या मे कमी लाना।.....
 छोटे बच्चो ( 5 से 59 महीने ) मे रक्‍ताल्‍पता – रक्त की कमी ( Anemia )  की समस्या मे कमी लाना।.....
 15-49 आयु वर्ग की किशोरियों एवम महिलाओ मे रक्‍ताल्‍पता – रक्त की कमी ( Anemia )  की समस्या मे कमी लाना।.....
नवजात शिशु के जन्म के समय वजन मे कमी की समस्या मे कमी लाना।....
कल गणेश-चतुर्थी है.....
कुछ दिनों बाद श्राद प्रारंभ हो जाएंगे.....
फिर नवरात्रे., और  दशहरा.....
जब तक देश में एक भी बच्चा कुपोषित है.....
तब तक देश में दिवाली कैसी?....
एक भूखे बच्चे को भोजन खिलाकर देखो.....
मंदिर में भगवान प्रसन्न नजर आयेंगे.....
मैं सभी ब्लौगर साथियों से आशा करता हूं कि.....
आप सभी अपनी लेखनी के माध्यम से.....
पोषण अभियान को सफल बनाएं.....
ये जन आंदोलन बनना चाहिये.....
तभी भारत कुपोषण मुक्त होगा.....
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद.....


धुँधली आँख-लघुकथा
 अन्दर से गृहस्वामी निकले जिनकी रईसी उनकी साजसज्जा बता रही थी।
"क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो। कान्हा की आरती का समय हो गया है भाई, अभी वापस जाओ।"
"मेरा बच्चा कई दिनों से भूखा है, कुछ खाने को दीजिये।" खुले दरवाजे से माखन, दही की हांडी देखते हुए सुदामा ने कहा।

"अभी क्या दूँ, सब कुछ भोग में चढ़ा हुआ है"

"मित्र, मैं राघव हूँ, मैं तो तुम्हें देखते ही पहचान लिया था।मैं चाहता था कि तुम मुझे स्वयं पहचानो। अभी मेरी माली हालत ठीक नहीं, बच्चा भूखा है।" सुदामा
ने विनीत भाव से कहा।

गृहस्वामी की आंखों में क्षण भर की पहचान उभरी।
" पर मैं नहीं पहचान पा रहा। क्या मेरे वैभव से आकर्षित होकर आए हो।"

"नहीं,धरती पर शोर मचा है कि कृष्ण भाव के भूखे हैं। हम अपनी वही भूख मिटाने आये थे।" कृष्ण सुदामा ने असली रूप धारण कर गृहस्वामी को अचंभित कर दिया।

 "मित्र कृष्ण, जो भी आपके नाम की टेर लगा रहे उनमें कितनों ने आपके सद्गुणों को अपनाया है, बस यही दिखाना था। जो जीते जागते बाल गोपाल को धुँधली आँखों से देख
रहे वे आपका अनुकरण कैसे कर पाएँगे।"


अमृता क्या तुम चली गईं
अगर मिले सच्चा साहिर
और उस सपने को निभाने वाले इमरोज़,..!
आज
नसीहतें हर प्रेम कविता लिखने वाली रचनाकार को मिलती है
कि लिखना हो तो बनो अमृता
पर सच ये है,..
साहिर केवल तुम्हारी कविताओं में ही है
और मेरी कल्पनाओं में,
इमरोज़ तुम्हारी जिंदगी का सच है
और मैंने भी तुम्हारी तरह कभी इमरोज़ का साथ नहीं छोड़ा
क्योंकि इमरोज़ वो हकीकत है जो कोई नहीं बदल पाएगा।

मेरी नज़्म...
साहिल की ठंडी रेत पर
जाने क्या लिखती - मिटाती
बड़ी शिद्द्त और ख़ामोशी से
देखती रहती है.....
ख्वाहिशों की तरह
लहरों का आना
और पत्थरों से चोट खाकर
बार-बार लौट जाना...

क्या .......?
किसी  से  कहे  कुछ
उसे  समझ  कुछ
और  आती  है  ।
शायद  इसलिए  ज़िन्दगी  अब ,
लम्हों  में  बिखर  जाती  है  ।


सौ साल की हुई अमृता प्रीतम
 कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये….
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
          
 तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौटकर नहीं आती। उम्र दिल का साथ नहीं दे रही है। दिल उसी जगह पर ठहर गया है, जहाँ ठहरने
का तुमने उसे इशारा किया था। सच, उसके पैर वहाँ रूके हुए हैं। पर आजकल मुझे लगता है, एक-एक दिन में कई-कई बरस बीते जा रहे हैं, और अपनी उम्र के इतने बरसों का

भाषा
यह एक अनुभूति है
जो भाषाओं की दुनिया में
भाषाओं से परे
भाषाओं से कही उपर है
उन अनुभूतियों में हम सब एक है
एकांत है


कुछ अधूरा -सा....
उससे पहले लेकिन
कोई सत्य
कोई किरण
दृश्य हो ले
जो कहीं किसी  सुनहरे या कि स्याह रैपर में
अटकी पड़ी है....
कुपोषण की कविता
भरे पेट और फूले पेट में उतना ही अंतर है
जितना एंटीलिया और उसके सामने बनी झुग्गी में है
फूले पेट का अर्थ जानने के लिए
उसकी आँखों को पढ़ने वाली नज़र चाहिए
न कि सिर्फ मोटी किताबें।




धन्यवाद।

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी बात कही है भाई जी कि मंदिर मेंं क्या क्या नहीं अर्पित करते हैं। लेकिन जो दरिद्र नारायण हैं। वे इन देवालयों के द्वार पर भूखे ही रह जाते हैं।
    सच तो यह है कि अपने धन का उपयोग आदि काल से मनुष्य स्वहित में करता रहा है। निर्धन पड़ोसी के घर में क्या चल रहा है। उससे उसे क्या मतलब है।
    कितनी विचित्र विडंबना है कि मंदिर में हम छप्पन भोग चढ़ाते हैं और बाहर बैठें साक्षात दरिद्र नारायण को एक रुपये का सिक्का बड़ी मुश्किल से दे पाते हैं।
    सुंदर प्रस्तुति और विषय का चयन..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन..
    आभार आपका..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर विषय का चयन किया है आपने राष्ट्रीय पोषण माह पर..
    निम्न मध्यवर्गीय परिवार पर दूध- दही नहीं पहुंच पा रहा है। फिर बच्चों का शारीरक विकास कैसे होगा।
    लेकिन रचनाएँ सभी कुछ हट के है ?

    जवाब देंहटाएं
  4. सटीक विषय, सुन्दर रचना संकलन

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन प्रस्तुति।
    शानदार भुमिका अपनाने लायक तथ्य ।
    सभी रचनाएं मोहक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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