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सोमवार, 15 जुलाई 2019

1459..हम-क़दम का उन्यासिवाँ अंक ....सावन

स्नेहिल नमस्कार
--------
सोमवारीय विशेषांक में 
आप सबका हार्दिक अभिनंदन है।
★★★★★
टप-टपाती मादक बूँदों की
रुनझुनी खनक,
मेंहदी की 
खुशबू से भींगा दिन,
पीपल की बाहों में
झूमते हिंडोले,
पेड़ों के पत्तों,
छत के किनारी से
टूटती
मोतियों की पारदर्शी लड़ियाँ
आसमान के
माथे पर बिखरी
शिव की घनघोर जटाओं से
निसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
उतरती हैं
नभ से धरा पर,
हरकर सारा विष ताप का
 अमृत बरसाकर
प्रकृति के पोर-पोर में
भरती है
प्राणदायिनी रस
सावन में...।
#श्वेता

सावन बारिश का मौसम ही नहीं हैं
सावन उम्मीद है,सपना है,खुशी है,त्योहार-उत्सव है,उमंग-तरंग है,राग-रंग है,सुर-संगीत है,प्रेम-गीत है

चलिए अब आज हम मिलकर 
मधुमय उत्सव के
विविधापूर्ण रंग का
आस्वादन करते हैं-
★★★★★★
आज की सारी प्रस्तुति 
((सौजन्य यशोदा दी साभार))
एक अविस्मरणीय गीत सुनिए

शुरुआत कुछ कालजय़ी रचनाओं से
स्मृतिशेष सुमित्रानंदन पंत
1900-1977
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
स्मृतिशेष हरिवंश राय बच्चन 
1907-2003
झोंका जब आया मधुवन में
प्रिय का संदेश लिए आया-
ऐसी निकली ही धूप नहीं
जो साथ नहीं लाई छाया।
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आए, सावन आया।
स्मृतिशेष परवीन शाकिर
1952-1994
पैरों की मेहँदी मैंने 
किस मुश्किल से छुड़ाई थी
और फिर बैरन ख़ुश्बू की
कैसी-कैसी विनती की थी 
प्यारी धीरे-धीरे बोल सावन, 
स्मृतिशेष सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" 
1911-1987
कोयल भी बोली
पपीहा भी बोला
मैं ने नहीं सुनी
तुम्हारी कोयल की पुकार
तुम ने पहचानी क्या
मेरे पपीहे की गुहार?

सम्पर्क फार्म द्वारा आई रचनाएँ....
आदरणीया अनुराधा चौहान
यादों की बदली ....

झड़ी लगी है सावन की
बहे नयनों से नीर नदी
कहाँ बसे हो जाकर परदेशी
मिलने की लगन लगी है

आदरणीया साधना वैद
(चार रचनाएँ)
सीला सावन ...

सीला सावन 
तृषित तन मन 
दूर सजन 

मुग्ध वसुधा 
उल्लसित गगन 
सौंधी पवन


सावनी ताँका ....

बरस गयी
सावन की फुहार
अलस्सुबह,
भिगो गयी बदन
सुलगा गयी मन ! 


बरसा सावन ....

उमड़े घन
करते गर्जन
कड़की बिजली
तमतमाया गगन
बरसा सावन 


घटायें सावन की ....

घटायें सावन की
सिर धुनती हैं
सिसकती हैं
बिलखती हैं
तरसती हैं
बरसती हैं
रो धो कर
खामोश हो जाती हैं


आदरणीया आशा सक्सेना
(दो रचनाएँ)

सावन .....

आया महीना सावन का 
घिर आए बदरवाकाले भूरे  
टिपटिप बरसी बूँदें जल की
हरियाया पत्ता पत्ता
सारी सृष्टि का
धरती हुई हरी भरी
प्रकृति हुई समृद्ध
ईश्वर की कृपा से |

बरसात ....
जब भी फुहार आती है
ठण्डी बयार चलती है

तन भींग भींग जाता है
मन भी कहाँ बच पाता है

आदरणीय अनीता सैनी 
सुनो ! सावन तुम फिर लौट आना ...

सुनो ! सावन तुम फिर लौट आना,
फिर महकाना मिट्टी को,
डाल-डाल पर पात सजाना, 
फिर बरसाना, बरखा  रानी  को |
आदरणीय मीना शर्मा
(दो रचनाएँ)


सावन ....

बाग-बगीचों में अब भी,
झूले पड़ते हैं क्या सावन के ?
गीत बरसते हैं क्या नभ से,
आस जगाते प्रिय आवन के ?

बाबुल मेरे ...

सावन के बहाने, बुला भेजो बाबुल,
बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।
-*-*-*-
चलते-चलते एक गीत और
मेरे नैना सावन भादों
फिर भी मेरा मन प्यासा....

★★★★★★
आज का यह हमक़दम 
का अंक
आपको कैसा लगा?
आप सभी की बहुमूल्य 
प्रतिक्रिया
उत्साहित करती है।
हमक़दम का अगला विषय
जानने के लिए
कल का अंक
पढ़ना न भूलें।

#श्वेता सिन्हा








14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात.
    सावन..सावन..और सावन
    पूरे बारह महीना प्रतीक्षा करवाती है
    नखरे करते आती है रुलाते हुए जाती है
    बेमिसाल अंक आज का..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. वाहः वाहः
    बेहद खूबसूरत प्रस्तुति छूटकी
    सावन और साजन
    प्रेम और प्रतीक्षा
    विरह तो वेदना
    तेरी दो टकिया की नौकरी मेरा लाखों का सावन...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत ही आनंदमय प्रस्तूति,विषय ही ऐसा था हर किसी ने कभी न कभी इसपे लिखा ही होगा उपर से आजकल की बारिशों ने और चार चाँद लगा दिये,
    ये गाना तो हैं ही अजर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. कालजयी रचनाकारों की सरस सावन की फूहार के साथ, उत्कृष्ट रचनाकारों की गीत कविता झड़ी से बरसता, मन तक उतरता सुंदर अंक, सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर श्वेता।सावन की पंक्तियों को बहुत सुंदर सजाया। ईश्वर तेरे सावन को सदा सुहावन रखें। सप्रेम आशीष।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर संकलन, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता बहन |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सावन को कितनी खूबसूरती से शब्दों में बाँधा है आपने श्वेता जी ! मन भीग भीग उठा ! मेरी रचनाओं को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत आभार ! यह विषय ही ऐसा है कि बारिश की बूंदों के साथ ही हृदय विगलित होने लगता है और भावनाएं उमड़ने लगती हैं तो लेखनी स्वत: ही चलने लगती है ! सभी रचनाएं मनमोहक !

    जवाब देंहटाएं
  9. कालजयी रचनाओं सुमधुर गीतो के साथ शानदार प्रस्तुतिकरण लाजवाब सावनी संकलन...सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय श्वेता, सबसे पहली तारीफ तो आपने जो भूमिका लिखी है उसकी करनी पड़ेगी। बहुत सुंदर रूपकों में बाँधा है बारिश की झड़ियों को। आज का दिन इतना व्यस्त रहा कि दो तीन रचनाएँ ही पढ़ पाई हूँ। कल शाम की क्लासेस नहीं होगी तब शांत मन से गरम चाय की प्याली के साथ इन फुहारों में भीगने की योजना है। सारी रचनाओं का संयोजन इतना सुंदर है कि प्रशंसा के शब्द कम पड़ जाएँ। आपको व यशोदा दीदी को बहुत बहुत साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  12. मेरी दोनों रचनाओं को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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