निवेदन।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 7 जून 2019

1421....प्यासे मवेशियों के पास इक बार जाइए

स्नेहिल नमस्कार
जलती धरती ,जलता आसमान,सूखते कंठ,पसीने से लथ-पथ आकुल तन,गर्म थपेड़ों से बेहाल जीव-जन्तु, मुट्ठीभर घने पेड़ों की सिकुड़ी छाया में सुस्ताते परिंदें, पीने की पानी के लिए लंबी कतारें,

उफ़ गर्मी,हाय गर्मी

जल संकट इन दिनों सबसे भयावह दृश्य उत्पन्न कर रहे हैंं।

देशभर से मिलने वाले समाचार और तस्वीरों की माने तो आने वाले सालों में पेयजल की समस्या का कोई हल न निकला तो बूँद-बूँद पानी के लिए हमें जूझना होगा।

जेठ के महीने में मानसून दस्तक दे जाती है।

सबकी आँखें सूखे आसमान पर लगी है।


उसिन-उसिन कर पछिम से जब
धनक धरित्री जलती है
कनक कुरिल कंटक किरणों से
हिम की चादर गलती है
द्रूम लता झुलसाती है
तब तपिश जेठ जलाती है।
★★★★★
चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते है -
रचनाकारों के नाम हैं क्रमशः-
आदरणीय जयकृष्ण  राय तुषार जी
आदरणीय अमित निश्छल जी
आदरणीय मनीष के.सिंह जी
आदरणीय कैलाश शर्मा जी
आदरणीय राजकुमार जी
आदरणीय गगन शर्मा जी
खेत -वन 
आँगन 
हवा में भी उदासी है ,
कृष्ण का 
उत्तंग -
बादल भी प्रवासी है ,
प्यास 
चातक चलो 
अपने होंठ को सी लें |
★★★★★


कुतरने के पड़ा सूरज,
विकल हो, आसमानों से
शिकायत क्या करे नीरज?
अगर शिकवे करे दिनभर, कुदरती माननीयों से
सुबह खिलना उसे पड़ता, बला यह जानकर देखो।।
★★★★★

गाँव की चौपाल
शहरों का कारोबार
आदमी की हंसी
आंखो की नमी
रिश्तों का अपनापन
प्रेम का समर्पण
★★★★

इक जैसा ज़ब रहता हर दिन,
नीरस कितना सब रहता है।

मन के अंदर है जब झांका,
तेरा ही चेहरा दिखता है।
★★★★★★

प्यासे मवेशियों के पास इक बार जाइए
दिल न पसीज जाए तो फिर बताइए
अजी तालाबों थोडा तो पानी  रहने दिया करिए
थोडी फिकर तो बेजुबानों की भी किया करिए

इनके पास सिर्फ दूसरों के लिए सलाहें और निर्देश होते हैं ! उनसे कोई पूछने वाला नहीं होता कि जनाब आपने इस मुसीबत से पार पाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर क्या-क्या किया है ? जैसे अभी भयंकर गर्मी पड़ रही है, तो आपने अपने निजी तौर पर उसे काम करने में क्या सहयोग या उपाय किया है ? क्या आपने अपने लॉन-बागीचे की सिंचाई के लिए प्रयुक्त होते पानी में कुछ कटौती की है ? आप के घर से निकलने वाले कूड़े में अब तक कितनी कमी आई है ? क्या आप शॉवर से नहाते हैं या बाल्टी से ? आपके 'पेट्स' की साफ़-सफाई में कितना पानी जाया किया जाता है ?  क्या आपके घर के AC या TV के चलने का समय कुछ कम हुआ है ? क्या आप यहां जब आए तो संयोजक से AC बंद कर पंखे की हवा में ही बात करने की सलाह दी ? क्या आप कभी पब्लिक वाहन का उपयोग करते हैं ? ऐसे सवाल उन महानुभावों से कोई नहीं पूछेगा ! क्योंकि वे ''कैटल क्लास'' से नहीं आते ! और यह सब करने की जिम्मेदारी तो सिर्फ मध्यम वर्ग की है ! 
★★★★★

आज का यह अंक आपको कैसा लगा?
कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें।

हमक़दम के विषय के लिए
यहाँ देखिए

कल का अंक पढ़ना न भूलेंं कल आ रहीं हैं विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम दी,
    संवेदनाओं से परिपूर्ण एक बेहतरीन प्रयास आपका। पर्यावरण और इसमें रहने वालें प्रत्येक जीव-जंतुओं का ख़याल रखना बहुत जरूरी है। यहाँ प्रस्तुत प्रत्येक रचना से यही प्रदर्शित हो रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात...
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    प्यासे मवेशियों के पास इक बार जाइए
    दिल न पसीज जाए तो फिर बताइए
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात सुंदर प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभप्रभात ! बेहद प्रभावशाली भूमिका और बेहतरीन सूत्र संकलन...मौसम की उष्णता और जल की महत्ता पर उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात। बेहद खूब सूरत अंक श्वेता ।पानी के लिए जीव जन्तु की व्याकुलता प्रकट करती रचनाएँ।बेहतरीन।

    जवाब देंहटाएं
  6. जल ही जीवन है सभी समझते हैं
    खर्च करने में बुझते क्यों नहीं हैं समझ के बाहर
    अति सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर !
    शुक्रिया जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  8. सामायिक त्राहिमाम का सजीव चित्रण करती भुमिका के साथ शानदार लिंकों का चयन।
    बहुत अच्छा अंक ।

    जवाब देंहटाएं
  9. तपती जेठ में ठंडाती प्रस्तुति! :
    जला जेठ कलमुंहा का,
    उड़ा जल जलकर कुआं का.
    दूर रेत चमकती चानी सी,
    बन मृग-मरीचिका पानी की.


    भई मुख सूख सांवली गोरी की,
    शुष्क रास-रस ठोड़ी की.
    ना साजन ने बरजोरी की,
    ये वेदना क्या थोड़ी सी!

    साल में 'सावन' साजन सा,
    शेष "देवर" मनभावन सा.
    बस 'जेठ' "जेठ" सा मुआ सा,
    जला जेठ कलमुंहा सा!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत रोचक और सारगर्भित प्रस्तुति। बहुत सुंदर...

    जवाब देंहटाएं
  11. यहाँ दस जून तक बारिश आ जाती है। अब सबकी आँखें बादलों की राह देख रही हैं। पानी का ही सहारा होता है ऐसे में, पता चलता है कि जल को जीवन क्यों कहते हैं। पर सुधरते कहाँ हैं हम ! पानी की बर्बादी, पानी का प्रदूषण....हमारे बाद वाली पीढ़ी का क्या होगा ?
    आज के अंक की प्रस्तुति इस बारे में सोचने को बाध्य करती है। सुंदर अंक।

    जवाब देंहटाएं
  12. शुक्रिया मेरी रचना "प्यासे बेजुबान" को जगह देने के लिए...

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...