चमन से रुख़्सत-ए-गुल है न लौटने के लिए
तो बुलबुलों का तड़पना यहाँ पे जाएज़ है।
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला।
परिवर्तन
ऐसे परिवर्तनशील जीवन में ‚
क्यों कहीं ठहर जाता दर्द का आभास?
मिले किसी को जीवन–तृप्ती‚
कोई करता रहे क्यों कर उपवास?
– राजेन्द्र कृष्ण
सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
परिवर्त्तन प्रकृति का नियम है
बदलते मौसम से एहसास हो जाता है
बदलाव का अर्थ है
स्थान्तरण
चल, चल के देख लें उनको,
अभी जो अपने थे।
सुबह गुलाबी धूप से
रातों में,
आँखों के सपने थे
स्थान्तरण
लायी हयात आये, क़ज़ा ले चली चले,
अपनी ख़ुशी न आये, न अपनी ख़ुशी चले।
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे,
पर क्या करें जो काम न बे दिल लगी चले।
कबीर अहमद
परिवर्तन
हर तरफ़ आज कल जैसा देश में माहौल है ,
लेखों में कविताओं में भारत में वर्तमान स्थिति पर चिंताएँ जताई जा रही हैं.
इसी विषय पर मैं अपने भाई श्री प्रदीप शिशौदिया जी की कविता
जो दिल्ली से प्रकाशित एक पत्रिका में छपी थी
परिवर्तन
अपना दामन मैला जिन्हे नही दिखता
वो दूसरो को दोषी मानते है
कैसे आम लोगो को बनाये बेवकूफ
यह अच्छे से जानते है
><
फिर मिलेंगे...
चौसठवें अंक का
विषय
अश्रु, अश्क आँसू
प्रेम में कोई अश्रु गिरा आँख से,
और हथेली में उसको सहेजा गया।
उसको तोला गया मोतियों से मगर
मोल उसका अभी तक कहाँ हो सका ?
ना तो तुम दे सके, ना ही मैं ले सकी
प्रेम दुनिया की वस्तु, कहाँ बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
रचनाकार मीनाकुमारी शर्मा
अन्तिम तिथिः 30 मार्च 2019
प्रकाशन तिथि ः 01 अप्रैल 2019
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आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन...
सदा की तरह बेमिसाल प्रस्तुति
सादर..
अरे वाहह्हह दी.... रचना के साथ रचनाकारों के परिचय का अंदाज़ बहुत पसंद आया...प्रेरक सुंदर सराहनीय रचनाओं से सजा आज का अंक हमेशा की तरह बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक्। आज ही की तारीख में हलचल का एक और खाली पन्ना नजर आ रहा है कृपया हटा लें।
जवाब देंहटाएंआभार...
हटाएंसादर नमन..
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
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