हाँ, रायपुर का एक गरम रविवार ज़रूर है...
ज़ियादा विचार न करते हुए चलें
आज-कल में पढ़ी रचनाओं की ओर....
न्याय-तंत्र ही माँगे न्याय...रवीन्द्र सिंह यादव
लोकतंत्र का एक खम्भा
कहलाती न्याय-व्यवस्था,
न्याय-तंत्र ही माँगे न्याय
आयी कैसी जटिल अवस्था।
"लेखनी की आत्महत्या"...विभा दीदी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEil3TWVyoHz1bvtJ9KZu7q3nRpZfZ-hZPE3SEsyJxl0IuNdE05cTuI_gLmJkzk8RDfTXlTKuih_eCg4vWSeTr3GHz5yVE5ULY95dAIIYWfxM2QXnlIIuhFB6p0YMY2IvD-kZKjBHE9YW9o4/s320/FB_IMG_1524800488784.jpg)
स्तब्ध-आश्चर्य में डूबी मैंने यह निर्णय लिया कि इससे
इस परिवर्त्तन के विषय में जानना चाहिए...
मुझे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी... मुझे देखकर
वह स्वत: ही मेरी ओर बढ़ आया।
औपचारिक दुआ-सलाम के बाद मैंने पूछ लिया ,
"तुम तो साहित्य-सेवी हो फिर यह यह राजनीति?"
उसने हँसते हुए कहा, "दीदी माँ! बिना राजनीति में पैठ रखे मेरी पुस्तक को पुरस्कार और मुझे सम्मान कैसे मिलेगा ?"
मैं : विधुर.. सुप्रिया पाण्डेय
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_nnhg0FFusLIdDgVxJw7PveNZ_3oxcQAqOGFDemK8pXyD7C0uIdsVDAff-SPJnjtax9owPYFYFoxof5_YTCj_y9iuCxxPc3frehLx6TcY1Rf-5mVcX6pgYLrXR4uiCiXEHYmkxlYVuiY/s320/2018-04-27-18-56-05-286-001.jpg)
मेरे सुख- दुख,मुस्कान-आँसू,
बाँटती रही ताउम्र
बन के मेरी हमकदम,
सारे फूल चुने जीवन के,
काँटो से होकर बढ़ाये कदम,
देकर थाती तीन अमूल्य धन,
छोड़कर यूँ बीच मे साथ कर गयी निर्धन ...
हर नया दिन...नूपुर जी कहती हैं
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhChyj-bJy62V9xY2v9t3S1azxVOcLalErAKHc99yfEIeIr1N4laFlgiScvAQ_ISEYi3fCQjbsMS03Ve7zA5EYVinouOZeunTsTrpl5xbU75UZQzmKp7zEudnnNyZAGD-FQhyphenhyphenUJGSF2sSs/s320/20180322_093904+%25282%2529.jpg)
हर नया दिन
एक फूल की तरह
खिलता है,
और कहता है . .
उठो जागो !
बाहर चलो !
शुरू करो
कोई अच्छा काम,
लेकर प्रभु का नाम ।
बालों पे चांदी सी चढ़ी थी.....निधि सिंघल
ध्यान से देखा बालों पे
चांदी सी चढ़ी थी,
थी तो मुझ जैसी
जाने कौन खड़ी थी।
इंसान...ओंकार केडिया
वह आदमी,
जिससे मैं सुबह मिला था,
कमाल का इंसान था,
बड़ा दयावान,
बड़ा संवेदनशील,
किसी का बुरा न करनेवाला,
किसी का बुरा न चाहनेवाला,
गम कहाँ जाने वाले थे रायगाँ मेरे...रोहिताश घोड़ेला
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPB7u6FZEKP1P5krIrs8IMdvgrr06CHufDLeoWyjNsgCXm3T7vgGKNo1Xbhm-RK6TrcdjoZ0B1QzkSPP2rZ2FSIUenb_T27FcHH8dqkKxnoOkkpmCJRpP7Etakg5qKTFNZK72u43u5VvSb/s200/bespoke-signage-The-Psychology-of-Colour-and-How-It-Affects-Your-Business-Signage-blog-image.png)
कितने दिन हो गये अफ़लातून से भरे हुए
यानी कब तक जियें खुदा को जुदा किये हुए
उलझी जुल्फें हैं और जिन्दगी भी एक तस्वीर में
क्या यही बनाना चाहता था मै इसे बनाते हुए?
दें आदेश दिग्विजय को
सादर
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग आभारी हूँ...
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
आभार
सादर
सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, सभी रचनाऐं बहुत सुंदर सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंहलचल से जुड़े सभी आदरणीय/ आदरणीया कवि/ कवियत्रियों को सादर प्रणाम,शुभ प्रभात,हर रोज जैसे एक मंद शीतल हवा का झोंका लिए ये सुबह सुबह ताम को दूर करने वाली रचनाओं का संग्रह में हर्षित कर जाता है,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल की गहराई से धन्यवाद
सुन्दर हलचल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई
वाह!!बहुत लाजवाब प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को बधाई ।
जवाब देंहटाएंआजकी फिज़ा में बात ही कुछ और है,
जवाब देंहटाएंसबकी बात और अंदाज़े-बयां में असर है .
बधाई सभी को .
दिग्विजय जी का बहुत बहुत आभार .
लाजवाब लिंक्स हैं सारे।
जवाब देंहटाएंइस रोशन बगिया में मेरा भी एक दरख़्त शामिल करने के लिए आभार रहेगा।
लाजवाब प्रस्तुति..सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
हटाएंआभार।
मेरे नाम में थोड़ी सी गलती हो रक्खी है
जवाब देंहटाएंइसमे आपकी गलती नहीं है ये नाम ही इतना अनोखा है 😂😂😁
"रोहिताश घोड़ेला"
आभार....
जवाब देंहटाएंगलती सुधार दी गई है
सादर
सुंदर लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय अंक. लिंक संयोजन बेहतरीन है. बधाई आदरणीय दिग्विजय भाई जी. इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार.
बहुत ही प्यारा संयोजन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का एक प्यारा मंच सभी सम्मानित रचनाकारों को बधाइयाँ
Very Nice..
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