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शनिवार, 31 मार्च 2018

988... क्षमा


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
सृजन का सम्मान है।
नफरत का निदान है।
शीलवान का शस्त्र है।
अहिंसक का अस्त्र है।

क्षमा

 ज़रा ये सोंच कि गुजरेगी उस गुलाब पर क्या
जो शाख पर तो रहे गंध से बिछुड़ जाए ||
एक बार अगर ये सारे धर्म ग्रन्थ जला दिए जाएँ,
उन सब पुस्तकों में आग लगा दी जाए जो
मनुष्य में भय पैदा करती हैं तो संभव है
 इंसान कोई नयी सोच , नया चिंतन पैदा कर सके |
जीने के नए रास्ते तलाशे |
अपने होने के वजूद को प्रमाणिकता प्रदान कर सके |

क्षमा

यह देख राज ने रघु से पूछा कि उस दिन जब
मैंने तुम्हें तमाचा मारा था तो तुमने रेत पर लिखा था
और आज पत्थर पर लिख रहे हो..इसका क्या कारण है ?

रघु ने बहुत सहजता से उत्तर दिया उस दिन
 मैंने रेत पर इसलिये लिखा था कि जब हवा चले
मेरा लिखा मिट जाये और आज पत्थर पर
 इस लिये लिख रहा हूं कि यह हमेशा लिखा रहे I

क्षमा

माँ !
तुम क्यों चली गई ?
मुझे अकेला छोड़
निरीह-नीरस और जड़
जीवन में
जिसका न आदि हैं
और न अन्त
जिसका न आधार हैं
और न विकास
पर, माँ !


क्षमा

स्वयं करता है, कौन यहाँ
कर्मों का, ताना बाना है
नहीं जानते हम, बीते काल का
किसका क्या, कर्ज़ चुकाना हो …

परिन्दों के जैसे, पिंजर खुल गए
खुल के हवा में, उन्मुक्त श्वास लो
नहीं है ज़रा भी, संशय इस में बंधू


क्षमा

बमुश्किल से उसकी काली चमड़िया
ढँक रही हों उसकी पसलियाँ
और उस चार हाथों वाले ईश्वर के
एक हाथ में फरसा
दूसरे में हँसिया
तीसरे में मुट्ठी भर अनाज
और चौथे में महाजन का दिया परचा हो


फिर मिलते हैं... जरा ठहर जाइये


हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम  बारहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: तन्हाई ::::
:::: उदाहरण ::::
जब कभी किसी
तन्हा सी शाम
बैठ अकेले चुपचाप 
पलटोगे जीवन पृष्ठों को
सच कहना तुम
क्या रोक सकोगे
इतिहास हुए उन पन्नों पर
मुझको नज़र आने से
क्या ये कह पाओगे
भुला दिया है मुझको तुमने
कैसे समझाओगे ख़ुद को
बहते अश्कों में छिपकर
याद मेरी जब आयेगी
शाम की उस तन्हाई में 

आप अपनी रचना आज 
शनिवार 31  मार्च 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं।
 चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक
 02 अपैल 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
 विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु 
हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018  का अवलोकन करें



कुछ बातें अगले अंक में


शुक्रवार, 30 मार्च 2018

987.....पवित्र विचारों का झौंका आये तो रूह को सुकून आये.....

सादर अभिवादन। 
सत्य, प्रेम, क्षमा, एकता और भाईचारे का सन्देश देने वाले 
ईसा मसीह को आज के दिन अनेक प्रकार की यातनायें देते हुए 
सलीब (सूली) पर लटकाया गया था अतः ईसाई धर्माबलम्बी इसे 
शोक दिवस के रूप में काला शुक्रवार , पवित्र शुक्रवार, 
महान शुक्रवार भी कहते हैं। नासमझी में कुछ लोग अपने 
ईसाई मित्रों को "Happy Good Friday" कहते हैं या सन्देश भेजते हैं 
जो उनके शोक में असहज स्थिति उत्पन्न करने वाली भूल है। 

धार्मिक उन्माद में 
झुलसते माहौल में 
पवित्र विचारों का झौंका आये 
तो रूह को सुकून आये। 

चलिए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलते हैं-
आदरणीय पंकज प्रियम जी की एक  विचारोत्तेजक रचना- 
लफ्ज़ मेरी पहचान बने तो ही बेहतर
चेहरे का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही गुजर जाएगा।

शब्द मेरा सम्मान बने तो ही बेहतर

बोल का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही चुप हो जाएगा।

आदरणीया मीना गुलियाली जी  दिखा रही है एक कड़वा सच 

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कड़वा सच है
मैं एक पानी की बूँद हूँ
कुछ हवा भी तूफ़ान उठाती है
एक प्रलय ,ज्वारभाटा सा
मेरे अन्तर में उभरता है
हर कोई जिसे नहीं समझता

आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्ता जी  की  एहसासों को 
शिद्दत के साथ महसूस कराती एक गंभीर रचना -  
सूखे सूखे 
चरमर पत्ते 
आहट से 
चर्राते से ! 
दबे पाँव से  
आती यादै 
फिर भी 
आस जगाते से ! 

आदरणीया ऋतु जी की रचनाओं में  दार्शनिक अन्दाज़ बख़ूबी झलकता है।  उनकी एक रचना आपकी नज़र-

अब मैं आज जो है ,उसको जीना सीख गया हुआ हूँ
जो वर्तमान है वही ख़ूबसूरत है ,सत्य है
भविष्य की चिंता में अपना आज खराब नहीं करता
अपने आज को ख़ूबसूरत बनाओ
कल ख़ुद ब ख़ुद ख़ूबसूरत ख़ुशियों भरा हो जाएगा ।


आदरणीय अयंगर साहब की आकर्षक लेखकीय प्रतिभा अब किसी से छिपी नहीं है।  वैचारिकी  की गहराई महसूस कीजिये इस 
सारगर्भित एवं विचारोत्तेजक आलेख में -



अच्छी गुणवत्ता के साथ हमारे विज्ञों को बाहर परदेश जाने दीजिए .. मत रोकिए, ब्रेन ड्रेन के नाम पर. मत पीटिए सर कि आई आई टी से पढ़कर बच्चे देश की सेवा करने की बजाए अमेरिका जैसे देशों में सेवा देते हैं. क्या करेंगे बच्चे, यदि देश में उचित नौकरी उपलब्ध न हो तो ?


आदरणीया रेखा जी की एक गंभीर रचना आपकी सेवा में  -

है सृष्टि का नियम यही......रेखा जोशी

My photo




रही बदलती काया
जर्जर हुआ तन अंत में
कभी न फिर ठौर पाया
है सृष्टि का नियम यही
इक दिन तो माटी में
इसको
है मिल जाना
रेखा जोशी
आदरणीया पूनम जी की ख़ूबसूरत प्रस्तुति आपकी नज़र -

प्रस्तुति- पूनम श्रीवास्तव 



झुकी हुई डालियां कुछ और नीचे झुक आयीं।उन्होंने पहचानावह सलमा थी।और सलमा जानती थी कि क्यों ये डालियां इतना नीचे झुक आयी हैं और पिछले पतझड़ के गिरे सूखे फूल-पत्तों में वे किसे ढूंढ़ रही हैं।

आदरणीय ऋषभ जी की प्रस्तुति पर ग़ौर कीजियेगा-

बेचारे नेता जी...ऋषभ शुक्ला

 


थोड़ी देर बाद चौधरी साहब का काफिला भी आगे बढ़ गया, लेकिन पांडे जी उस युवक के साथ उसी चाय की दुकान पर एक और काफिले के इंतज़ार में बैठ गए, और चौधरी जी बुराइयां शुरू | चायवाला शुरू से अंत तक के इस घटनाक्रम को देख बरबस ही बोल उठा ...........
बेचारे नेता जी !


आज के लिए बस इतना ही। 
और हम-क़दम..
हम-क़दम के  बारहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........

कल की प्रस्तुति लेकर आ रही हैं 
आदरणीया विभा दीदी 
जिसमें समाहित हैं 
क्षमा बिषय पर आधारित 
ख़ूबसूरत रचनाऐं और साहित्यिक गतिविधियों की सूचना।
रवीन्द्र सिंह यादव  

गुरुवार, 29 मार्च 2018

986.....आज जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती है

आज जैन धर्म के 24 वें 
तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती है। 
जैन समुदाय का यह प्रमुख त्योहार है।
शुभकामनाएँ
सत्य,अहिंसा,औचार्य,अपरिग्रह एवं बह्मचर्य इन पाँच व्रतों का पालन जैन धर्म के अनुयायियों का मुख्य सिद्धांत है। जैन धर्म को प्रतिष्ठित करने में , व्यापकता प्रदान करने में और इसके समृद्ध दर्शन का पूरा श्रेय महावीर स्वामी को जाता है।
छोटी-छोटी बात पर तलवारें निकालकर मरने-मारने को उतारु वर्तमान  सामाजिक परिदृश्य में प्रायोजित साम्प्रदायिकता हमारे 
लिए गंभीर चिंतन का विषय है। धर्मनिरपेक्ष भारत आखिर किस
दिशा में अग्रसर है? भविष्य में इससे होने वाले दुष्परिणाम 
की पदचाप काश हम सुन पाते।

आज ही के दिन 29 मार्च 1913 को हिंदी साहित्य के 
महान कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म हुआ था।  
गाँधीवादी विचारधारा स्वच्छता, नैतिकता  और पावनता का पालन 
करने वाले दूसरे तार सप्तक के महान कवियों में एक थे।

उनकी एक रचना
उस दिन 
आँखें मिलते ही 
आसमान नीला हो गया था 
और धरती फूलवती 

चार आँखों का वह जादू 
तुम्हें यहाँ से कैसे भेजूं?
आओ तो दिखाऊं 
वह जादू 

जादू जैसे 
जँबूरे के बिना नहीं चलता 
वैसे बिना तुम्हारे 
अकेला मैं 
न आसमान 
नीला कर पाता हूँ 
न धरती फूलवती!

सादर नमस्कार
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चलिए आपकी रचनात्मकता की दुनिया में-
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आदरणीया राजश्री जी की कलम से
उमंगों का सैलाब है तू
तरंगों का शबाब है तू
हर सवाल का जवाब है तू
किसी तन्हा का ख्वाब है तू

●●●●●★●●●●●
आदरणीया रश्मि जी की कलम से
उँगलियाँ मचलतीं हैं

सुलझे
बाल बिखराने को
शब्दों और आँखों से
अलग बातें न करो

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आदरणीय पुरुषोत्तम जी की लेखनी से

ठहर जाओ, न गीत ऐसे गाओ तुम,
रुक भी जाओ, प्रणय पीर ना सुनाओ तुम,
जी न पाऊँगा मैं, कभी इस यातना में....

●●●●●●★●●●●●●
आदरणीया मीना जी की कलम से
जब मैं तुमसे मिलूँगी,
तुमसे कुछ दूर बैठी
टकटकी लगाकर
निहारूँगी तुम्हें.....
पहचानने की कोशिश करूँगी,
महसूस तो हर पल
किया है तुम्हें,
अब जानना चाहूँगी !

●●●●●●★●●●●●●
आदरणीया नुपरम् जी की रचना
तुम एक शायर हो ।
तुम्हें पता है ? 
ना जाने 
कितने लोगों का आसरा 
तुम्हारा पता है ।

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आदरणीया आशा सक्सेना जी की रचना
काली अंधेरी रात में  
डाली अपनी नौका मैंने
इस भवसागर में
पहले वायु  ने बरजा
पर एक न मानी
फिर गति उसकी
बढ़ने लगी मनमानी
जल यात्रा लगी बड़ी सुहानी
नौका ने गति पकड़ी

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आदरणीय लोकेश जी की बेहतरीन ग़ज़ल
ख़्वाबों को....
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तूफ़ान में कश्ती को उतारा नहीं होता
उल्फ़त का अगर तेरी किनारा नहीं होता

ये सोचता हूँ कैसे गुजरती ये ज़िन्दगी
दर्दों का जो है गर वो सहारा नहीं होता

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आज आदरणीय रवींद्र जी की व्यस्तता की वजह से 
प्रस्तुति जल्दबाजी में हम तैयार किये है।
कल की प्रस्तुति रवींद्र जी लेकर आयेगे।
आज की प्रस्तुति पर आप सभी सुधिजनों का 
बहुमूल्य सुझाव अपेक्षित है
●●●●●★●●●●●
और हम-क़दम..
हम-क़दम का बारहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........




बुधवार, 28 मार्च 2018

985..मेरे ख्यालों के शब्द,प्रश्न बनके मुझसे ही पूछते..


।।शुभ वन्दन।।



इस सुंदर ,सुसंस्कृत  ,सुविचार शब्दों से 

आज का संकलन की ..✍

 प्रथम प्रस्तुति ब्लॉग    " कलम घिस्सी "सेे

हे प्रभु

तुझको कण- कण में 

खोजने का करूँ जतन 

पर कहाँ मैं तुझको पाऊँ

ये मन समझ न पाए

आस बड़ी है

तुझको पाने की

और एक पल को 

हो निराश मैं सोचूँ 

क्या कभी मनोरथ ये मेरा 

हो पाएगा पूरा
द्वितीय प्रस्तुति ब्लॉग "मेरा मन" से..


न शक्ल-न अक्ल, न संगी-न साथी, न जानकारी-न अनुभव, न सहयोग-न मार्गदर्शन, न धन-न साधन, यानि सफलता के लिए जरूरी सारे मार्ग अंधेरों से भरे।

शुभ्रा अवसाद से घिरती जा रही थी। अचानक उसने खुद को झकझोरा और कहा- 'तुम कमजोर नहीं हो शुभ्रा' और अपने हौसले, आत्मनिष्ठा, सपने, चाहतें, लक्ष्य, आशा, समर्पण और स्वाभिमान से आच्छादित करते हुए दृढ़संकल्प के धागे में पिरो लिया। 

तृतीय ब्लॉग "पाल ले इक रोग नादां..." से आनंद ले.।


गुज़र जाएगी शाम तकरार में

चलो ! चल के बैठो भी अब कार में

अरे ! फ़ब रही है ये साड़ी बहुत

खफ़ा आईने पर हो बेकार में

तुम्हें देखकर चाँद छुप क्या गया

फ़साना बनेगा कल अख़बार में..

चतुर्थी ब्लॉग ...यादें...से..



फिर पतझड़ में, पत्ता टूटा

शाख़ से उसका, नाता छुटा,

जब तक था, डाली पे लटका  

न जान को था, कोई भी खटका.. 

अब कौन करें उसकी रखवाली 

रूठ गया जब बगिया का माली.. 

पंचमी कड़ी में ब्लॉग "ज़िन्दगी रंग शब्द"  से...



सुनहरे ख़्वाब मेरे,शब्द बनके कविता में ढल रहे हैं,

मेरे ख्यालों के शब्द,प्रश्न बनके मुझसे ही पूछते हैं, 

ये प्रश्न मेरे जवाब बन,आपके लफ़्ज़ों में पल रहे हैं।  

आखिरी में भोजपुरी गीत..चयैता विशाल गगन जी के स्वर में..
सावन से न भादों दुबर
फागुन से ह चइत ऊपर
गजबे महीना रंगदार..

हम-क़दम का बारहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........




।।इति शम।।
धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍










मंगलवार, 27 मार्च 2018

984....गर्मी आने की आहट


जय मां हाटेशवरी....
अभी दो दिन पहले....रामनवीं थी.....मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, जिन्होंने त्रेता युग में रावण का संहार करने के लिए धरती पर अवतार लिया। कौशल्या नंदन प्रभु श्री राम अपने भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से एक समान प्रेम करते थे। उन्होंने माता कैकेयी की 14 वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए पिता के दिए वचन को निभाया। उन्होंने ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाय’ का पालन किया। भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि
इन्होंने कभी भी कहीं भी जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वह ‘क्यों’ शब्द कभी मुख पर नहीं लाए। वह एक आदर्श पुत्र, शिष्य, भाई, पति, पिता और राजा बने, जिनके राज्य में प्रजा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण थी।

केवट की ओर से गंगा पार करवाने पर भगवान ने उसे भवसागर से ही पार लगा दिया। राम सद्गुणों के भंडार हैं इसीलिए लोग उनके जीवन को अपना आदर्श मानते हैं। सर्वगुण सम्पन्न भगवान श्री राम असामान्य होते हुए भी आम ही बने रहे। युवराज बनने पर उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी और वन जाते हुए भी उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी।
वह चाहते तो एक बाण से ही समस्त सागर सुखा सकते थे लेकिन उन्होंने लोक-कल्याण को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए विनय भाव से समुद्र से मार्ग देने की विनती की। शबरी के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उसे ‘नवधा भक्ति’ प्रदान की।  वर्तमान युग में भगवान के आदर्शों को जीवन में अपना कर मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पा सकता है। उनके आदर्श विश्वभर के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
नवमी तिथि का महत्व भगवान का जन्म नवमी तिथि को हुआ जो अपने आप में ही पूर्ण है। अंकशास्त्र के तहत 9 का अंक सबसे बड़ा और पूर्ण है। यदि 9 के अंक को किसी भी अन्य एक अंक से गुणा करेंगे तो उसके गुणांक का जोड़ भी 9 ही होगा।
9X1 = 9
9X2 = 18 (1+8 =9)
9X3 = 27 (2+7 =9)
9X4 = 36 (3+6 =9)
9X5 = 45 (4+5 =9)
9X6 = 54 (5+4 =9)
9X7 = 63 (6+3 =9)
9X8 = 72 (7+2 =9)
9X9 = 81 (8+1 =9)
9X10 = 90 (9+0 =9)



जीत या हार ...
उम्र काफी नहीं होती पहली मुहब्बत भुलाने को  
जुम्बिश खत्म हो जाती है आँखों की   
पर यादें ...
वो तो ताज़ा रहती हैं जंगली गुलाब की खुशबू लिए 
ये जीत है आवारा मुहब्बत की या हार उस सपने की
जिसको पालने की कोई उम्र नहीं होती

My photo
महज़ बातों ही से क्या मन की बात होती है
तू ख़ुश रहे
तू सदा होके आबाद रहे
इन्हीं दुआओं के संग
सुबह-शाम होती है
वफ़ाएँ छोड़ भी दीं
जफ़ाएँ ओढ़ भी लीं


बताओ ना मम्मा
यह सब छल था तेरा बस एक झूठा यश कमाने को.
कहाँ थी तब तेरी भक्ति दिया था घूरे पे जब फेंक,
मैं तब भी थी वही ‘देवी’ उसे तू क्यों न पाई देख !


गर्मी आने की आहट
छतों पर खोज रहीं है
चिड़ियां
दाना पानी
पिछले बरस ही
फेंक दिया गया था
फूटा मटका
घर घर
ढूंढा जा रहा है पानी ---



क्या किया, सोचो कभी तो
कल धरा का रूप क्या हो !
दिख रही जो आज धानी
गर नहीं सत्ता रहेगी
कौन राजा, कौन रानी !

मेरी फ़ोटो
रामनवमी पर विशेष --- -----राम की राजनीति--- डा श्याम गुप्त...
ऋषि-मुनि गण एवं वनचारी,
सबको प्रभु ने आश्वस्त किया|
अत्याचार न होगा कोई,
जो अब तक होता आया है |
कोई मख विध्वंस न होगा,
कुटिया का भी ध्वंस न होगा३ ||

आज के बच्चे कल के नेता
यही जब नेता बनेंगे
बागडोर देश की सम्हालेंगे
ये ही कमान सम्हालेंगे
लोकसभा विधान सभा में
अखाड़े का मंजर रहेगा
मजा कुश्ती का आएगा |
..................................................

हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम  बारहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: तन्हाई ::::
:::: उदाहरण ::::
जब कभी किसी
तन्हा सी शाम
बैठ अकेले चुपचाप 
पलटोगे जीवन पृष्ठों को
सच कहना तुम
क्या रोक सकोगे
इतिहास हुए उन पन्नों पर
मुझको नज़र आने से
क्या ये कह पाओगे
भुला दिया है मुझको तुमने
कैसे समझाओगे ख़ुद को
बहते अश्कों में छिपकर
याद मेरी जब आयेगी
शाम की उस तन्हाई में 

आप अपनी रचना शनिवार 31  मार्च 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 01 अपैल 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018  का अवलोकन करें

           
धन्यवाद.

सोमवार, 26 मार्च 2018

983....ग्यारहवाँ क़दम हम-क़दम का...एहसास

है एक एहसास हमें भी.. विषय सरल होते हुए भी
क्लिष्ट भी है...ये.. 
एहसास नाम की चीज वास्तव में है क्या
परिभाषित तो कीजिए..
.....
परिभाषित करने की कोशिश पुरातन ज़माने से चालू है.....
घूम-फिरकर..ये प्यार में आकर टिक जाता है
.......

खलील जिब्रान के अनुसार- 'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियां आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है। 
.........
प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।
.....
इसे यहीं तक रखते हुए आप सब के द्वारा प्रसवित रचनाओं का आनन्द लेते है.....

सामान्य सूचनाः रचनाओँ का क्रम सुविधानुसार है..
मेरी फ़ोटो
जब रूह से
कोरे कागज पर
उतरते हैं
मूक अहसास तो
कहानी बनती है

मन के सूने गलियारों में किसीकी
जानी पहचानी परछाइयाँ टहलती हैं ,
दिल की सख्त पथरीली ज़मीन पर
दबे पाँव बहुत धीरे-धीरे चलती हैं !
पलकों के बन्द दरवाज़ों के पीछे
किसीके अंदर होने का अहसास मिलता है ,
कनखियों की संधों से अश्कों की झील में

आदरणीया मीना जी शर्मा....
तिश्नगी
तेरे अहसास में खोकर तुझे जब भी लिक्खा,
यूँ लगा, लहरों ने साहिल पे 'तिश्नगी' लिक्खा !!!

मेरी धड़कन ने सुनी, जब तेरी धड़कन की सदा,
तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !!!

आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी की दो रचनाएँ
अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास,
अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास?

अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास,
क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणिक क्या प्यास?

कानों मे गूंजती एक पुकार,
रह रहकर सुनाई देती वही पुकार,
सम्बोधन नहीं होता किसी का उसमें,
फिर भी जाने क्यों होता एहसास
कोई पुकार रहा मुझे बार-बार!

आदरणीय पुष्पांजली जी...
एहसास

एहसास तेरी कलम से कुछ यूं बहे
कि मुझे सर से पांव तक भिगो गये
आँखों का गीलापन अंतर्मन तक रिस गया
संवेदनाओं का गर्म पानी रग रग में भर गया



एहसास

है अगर एहसास ,
पास होने का
तो मीलों दूर भी
पास ही लगा करते हैं,
वरना तो एक ही कमरे
 में भी लोग मीलों
दूर हुआ करते हैं,

आदरणीय पंकज प्रियम की दो रचनाएँ
ग़ज़ल-एहसास
एहसास जगी है,दिल में खास
अब तो अपने, पास आ जाने दो।

मेरा दिल भी तो, है तेरे पास
अब तो अपने रूह ,उतर जाने दो।

एहसास

तुम हो मेरा, पहला एहसास
अब तो सांसों में,बिखर जाने दो।

जगी थी दिल में, जो एहसास
शायद तुझे नहीं, वो एहसास।

तुम थी तो बिल्कुल, मेरे पास
कुछ कहना था, तुझसे खास।

आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्त की कलम से

दो हाथ सिलते ही रहते 
घर भर के एहसास सदा 
कहीं  उधड़ा कहीं  खिसा सा 
कही सिलाई निकली  जाय ।
रेशमी ,सूती कभी मखमली 
धागे एहसास के सब ले आये ।
एक एक कर बड़े जतन से 
तुरपन बखिया करती जाय ।

आदरणीय आशा मौसी की दिलकश रचना
एहसास
होता है एहसास मन को
छोटे से छोटा
प्रत्यक्ष हो या परोक्ष
मन होता है साक्षी उसका
जब होती है आहट
पक्षियों के कलरव की
जान जाती हूँ देख भोर का तारा
मन को मनाती हूँ
सूर्य का स्वागत करना है

आदरणीय कुसुम जी की भाव-भीनी रचना
एक एहसास अनछुआ सा

जुगनु दंभ मे इतराते
चांदनी की अनुपस्थिति मे
स्वयं को चांद समझ डोलते
चकोर व्याकुल कहीं
सरसराते अंधेरे पात मे दुबका
खाली सूनी आँखों मे
एक एहसास अनछुआ सा
अदृश्य से गगन को
आशा से निहारता
शशि की अभिलाषा मे

आदरणीया दिव्या जी..
एहसास है ..

एहसास है....एक
मोहब्बत का  , 
महसूस किया जा सकता है
जिसे रूह से.... 
यह उस ईश्वर
की तरह है,.... जो
कण-कण में 
विद्यमान है

आदरणीया रेणुबाला जी..
सुनो ! मन की व्यथा

ये रेगिस्तान मायूसी के -
है इनमे कोई आस कहाँ ? 
तकती है  आँखे राह तुम्हारी   -
तुम बिन इनमे कोई आस कहाँ ? 
एकांत   स्नेह से अपने भर दो-
रंग दो  रीते एह्सास  मेरे !!
कभी झाँकों  इस  सूने मन  में -
 रुक   कुछ पल साथ मेरे  !!!!!

आदरणीया सुधासिंह जी ने निकाल दी अपना भड़ास
बेवफा मोहब्बत

न मालूम था कि तुम भी निकलोगे उन जैसे ही ..
खोल दी थी अपने दिल की किताब मैंने तुम्हारे सामने
उसके हर सफहे पर लिखी हर बात को गौर से पढ़ा था तुमने..
जिसमें लिखे थे मेरे सारे जज्बात, सारे एहसास...




आदरणीया नीतू जी की रचना जो स्वयं एक प्रश्न है

एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता
ये दुनिया कायम नहीं होती अगर एहसास नहीं होता

एहसास बना एक गूढ़ प्रश्न कितना उसको सुलझाएं
हर पल होता होता मौजूद मगर वो कभी नजर न आये

आदरणीय डॉ. सुशील भाई
जब भी लिखते हैं सच ही लिखते हैं

आइना कभी नहीं देखने वाला, दिखाने के लिये रख गया

कई दिनों के बाद 
किसी दिन कभी 
जैसे शर्म ने 
थोड़ा सा हो छुआ 
लगा जैसे कुछ हुआ 
थोड़ी देर के 
लिये ही सही 
नंगे जैसे होने का 
कुछ अहसास हुआ 
हड़बड़ी में अपने ही 
हाथ ने अपने 
ही शरीर पर 
पड़े कपड़ों को छुआ 
थोड़ी राहत सी हुई 
......
इति ग्यारहवाँ क़दम
आप सभी को आपके इस प्रयास की मंगलकामनाएँ
दिग्विजय