है एक एहसास हमें भी.. विषय सरल होते हुए भी
क्लिष्ट भी है...ये.. एहसास नाम की चीज वास्तव में है क्या
परिभाषित तो कीजिए..
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परिभाषित करने की कोशिश पुरातन ज़माने से चालू है.....
घूम-फिरकर..ये प्यार में आकर टिक जाता है
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खलील जिब्रान के अनुसार- 'प्रेम अपनी गहराई को वियोग की घड़ियां आ पहुँचने तक स्वयं नहीं जानता।' प्रेम विरह की पीड़ा को वही अनुभव कर सकता है, जिसने इसे भोगा है। इस पीड़ा का एहसास भी सुखद होता है। दूरी का दर्द मीठा होता है। वो कसक उठती है मन में कि बयान नहीं किया जा सकता। दूरी प्रेम को बढ़ाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है, जो अद्वितीय होता है।
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प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता है। जिस दिल में दर्द ना हो, वहाँ प्यार का एहसास भी नहीं होता। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है। इसी दर्द के कारण प्रेमी हृदय कितनी ही कृतियों की रचना करता है।
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इसे यहीं तक रखते हुए आप सब के द्वारा प्रसवित रचनाओं का आनन्द लेते है.....
सामान्य सूचनाः रचनाओँ का क्रम सुविधानुसार है..
जब रूह से
कोरे कागज पर
उतरते हैं
मूक अहसास तो
कहानी बनती है
मन के सूने गलियारों में किसीकी
जानी पहचानी परछाइयाँ टहलती हैं ,
दिल की सख्त पथरीली ज़मीन पर
दबे पाँव बहुत धीरे-धीरे चलती हैं !
पलकों के बन्द दरवाज़ों के पीछे
किसीके अंदर होने का अहसास मिलता है ,
कनखियों की संधों से अश्कों की झील में
आदरणीया मीना जी शर्मा....
तिश्नगी
तेरे अहसास में खोकर तुझे जब भी लिक्खा,
यूँ लगा, लहरों ने साहिल पे 'तिश्नगी' लिक्खा !!!
मेरी धड़कन ने सुनी, जब तेरी धड़कन की सदा,
तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !!!
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी की दो रचनाएँ
अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास,
अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास?
अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास,
क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणिक क्या प्यास?
कानों मे गूंजती एक पुकार,
रह रहकर सुनाई देती वही पुकार,
सम्बोधन नहीं होता किसी का उसमें,
फिर भी जाने क्यों होता एहसास
कोई पुकार रहा मुझे बार-बार!
आदरणीय पुष्पांजली जी...
एहसास
एहसास तेरी कलम से कुछ यूं बहे
कि मुझे सर से पांव तक भिगो गये
आँखों का गीलापन अंतर्मन तक रिस गया
संवेदनाओं का गर्म पानी रग रग में भर गया
एहसास
है अगर एहसास ,
पास होने का
तो मीलों दूर भी
पास ही लगा करते हैं,
वरना तो एक ही कमरे
में भी लोग मीलों
दूर हुआ करते हैं,
आदरणीय पंकज प्रियम की दो रचनाएँ
ग़ज़ल-एहसास
एहसास जगी है,दिल में खास
अब तो अपने, पास आ जाने दो।
मेरा दिल भी तो, है तेरे पास
अब तो अपने रूह ,उतर जाने दो।
एहसास
तुम हो मेरा, पहला एहसास
अब तो सांसों में,बिखर जाने दो।
जगी थी दिल में, जो एहसास
शायद तुझे नहीं, वो एहसास।
तुम थी तो बिल्कुल, मेरे पास
कुछ कहना था, तुझसे खास।
आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्त की कलम से
दो हाथ सिलते ही रहते
घर भर के एहसास सदा
कहीं उधड़ा कहीं खिसा सा
कही सिलाई निकली जाय ।
रेशमी ,सूती कभी मखमली
धागे एहसास के सब ले आये ।
एक एक कर बड़े जतन से
तुरपन बखिया करती जाय ।
आदरणीय आशा मौसी की दिलकश रचना
एहसास
होता है एहसास मन को
छोटे से छोटा
प्रत्यक्ष हो या परोक्ष
मन होता है साक्षी उसका
जब होती है आहट
पक्षियों के कलरव की
जान जाती हूँ देख भोर का तारा
मन को मनाती हूँ
सूर्य का स्वागत करना है
आदरणीय कुसुम जी की भाव-भीनी रचना
एक एहसास अनछुआ सा
जुगनु दंभ मे इतराते
चांदनी की अनुपस्थिति मे
स्वयं को चांद समझ डोलते
चकोर व्याकुल कहीं
सरसराते अंधेरे पात मे दुबका
खाली सूनी आँखों मे
एक एहसास अनछुआ सा
अदृश्य से गगन को
आशा से निहारता
शशि की अभिलाषा मे
आदरणीया दिव्या जी..
एहसास है ..
एहसास है....एक
मोहब्बत का ,
महसूस किया जा सकता है
जिसे रूह से....
यह उस ईश्वर
की तरह है,.... जो
कण-कण में
विद्यमान है
आदरणीया रेणुबाला जी..
सुनो ! मन की व्यथा
ये रेगिस्तान मायूसी के -
है इनमे कोई आस कहाँ ?
तकती है आँखे राह तुम्हारी -
तुम बिन इनमे कोई आस कहाँ ?
एकांत स्नेह से अपने भर दो-
रंग दो रीते एह्सास मेरे !!
कभी झाँकों इस सूने मन में -
रुक कुछ पल साथ मेरे !!!!!
आदरणीया सुधासिंह जी ने निकाल दी अपना भड़ास
बेवफा मोहब्बत
न मालूम था कि तुम भी निकलोगे उन जैसे ही ..
खोल दी थी अपने दिल की किताब मैंने तुम्हारे सामने
उसके हर सफहे पर लिखी हर बात को गौर से पढ़ा था तुमने..
जिसमें लिखे थे मेरे सारे जज्बात, सारे एहसास...
आदरणीया नीतू जी की रचना जो स्वयं एक प्रश्न है
एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता
ये दुनिया कायम नहीं होती अगर एहसास नहीं होता
एहसास बना एक गूढ़ प्रश्न कितना उसको सुलझाएं
हर पल होता होता मौजूद मगर वो कभी नजर न आये
आदरणीय डॉ. सुशील भाई
जब भी लिखते हैं सच ही लिखते हैं
आइना कभी नहीं देखने वाला, दिखाने के लिये रख गया
कई दिनों के बाद
किसी दिन कभी
जैसे शर्म ने
थोड़ा सा हो छुआ
लगा जैसे कुछ हुआ
थोड़ी देर के
लिये ही सही
नंगे जैसे होने का
कुछ अहसास हुआ
हड़बड़ी में अपने ही
हाथ ने अपने
ही शरीर पर
पड़े कपड़ों को छुआ
थोड़ी राहत सी हुई
......
इति ग्यारहवाँ क़दम
आप सभी को आपके इस प्रयास की मंगलकामनाएँ
दिग्विजय