हम-क़दम का तीसरा क़दम
शीर्षक था एक चित्र...
कि मैं बसंत हूँ
मुझ पर लिखिए कविता...
अब की बार हम सोचते हैं...
पाठकों से ही माँगा जाए शीर्षक..
आसान विषय....देखें सोई हुई शेरनी (कविता)
जागृत होती है या नहीं...
जो भी होगा मंडल तय करेगा.....
चलिए अब तक की प्राप्त रचनाओं का ज़ायज़ा लें....
पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
फूलों से तितली का जीवन
तितली फूलों का श्रृंगार है
तूम पी लो सारा रस मेरा
हम मुरझाने को तैयार हैं।
आदरणीया सुधा जी.. इन साईट
धानी चुनर ओढ़
धरणी मुस्काई
तितलियों को देख - देख
गोरी इठलाई
टेसू के फूल और
आम की मंजरियाँ
सुना रहे नित रोज
नई - नई कहानियाँ
भ्राता श्री विश्वमोहन जी
पपीहे की प्यासी पुकार में,
चिर संचित अनुराग अनंत है.
सृष्टि का यह चेतन क्षण है,
अलि! झूमो आया वसंत है .
आदरणीया नीतू ठाकुर
जल बिन सूख रहा था गुलशन
तितली पल पल नीर बहाये
जैसे गुलों में प्राण बसे हों
ऐसे उनसे लिपटी जाये
देख रही हर पल अंबर को
आदरणीय लोकेश नशीने
नहीं गैरों की कोई फ़िक्र मैं अपनों से सहमा हूँ
बचाकर आँख जो पीछे से खंज़र मार देते हैं
कभी जब सांस लेती है मेरे एहसास की तितली
यहाँ के लोग तो फूलों को पत्थर मार देते हैं
आदरणीया रेणु बाला जी
डाल- डाल पे फिरे मंडराती -
तु बनी उपवन की रानी तितली ;
हरेक फूल को चूमे जबरन -
तु करती मनमानी तितली !
आदरणीया सखि आँचल पाण्डेय
मधुकर के संग नए रागों को गाऊँ
बागों में कुसुम संग मैं खिलखिलाऊँ
फ़िर रस को चुराकर मगन उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके
आदरणीया सखि मीना शर्मा
बहारों का संदेशा ले,
वो जब उड़ती थी, थमती थी,
सरसराते थे रंग जीवंत होकर
फूल-फूल में, कली-कली में !
उतर आते थे शाखों पर,
फ़िजाओं में, हजारों रंग बिखरते थे !!!
सखी वैभवी पाण्डेय
मद भरी मादक
सुगन्ध से
आम्र मंजरी की
पथ-पथ में....
कूक कूक कर
इत-उत
इतराती फिरे
बावरी
कोयलिया....
भगिनी दिव्या अग्रवाल
स्वर्ण चुनर
ओढ़ वसुधा झूमी
महकी हवा
पीने पराग
तितलियाँ मचली
लगी बौराने
आदरणीय सखि सुधा देवराणी
रंग बिरंगे पंखो वाली
इक नन्हीं सी तितली आयी
पास के फूलों में वह बैठी,
कभी दूर जा मंडरायी...
नाजुक रंग बिरंगी पंखों को
खोल - बन्द कर इतरायी
थोड़ी दूर गई पल में वह
अपनी सखियों को लायी....
भाँति-भाँति की सुन्दर तितलियां
मिन्नी के मन को भायी ।
आदरणीय सखी कुसुम कोठारी जी
फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।
सखी श्वेता सिन्हा
एक गुनगुना एहसास
बंद मुट्ठियों तक आ पहुँचा
पसीजी हथेलियों की
आडी़ तिरछी लकीरों से
अनगिनत रंग बिरंगे
सोये ख़्वाब फिर से
ख़्वाहिशों के आँगन में
तितली बन उड़ने लगे।
आदरणीय डॉ. सुशील जोशी जी
एक तितली
सोच कर
उसे उड़ाने की
तितली होती है
कि नजर
ही नहीं आती है
तितली को
कहाँ पता होता है
उसपर किसी को
कुछ लिखना है
.................
आप सभी को आभार...
इस बार जितनी भी रचनाएँ आई वे सब शामिल है
क्रम सुविधानुसार दिया गया है..
श्रेष्ठ रचनाओ का आंकलन आप स्वयं करेंगे
अगला विषय कल के अंक में
इज़ाज़त दें..
यशोदा
सुप्रभातम् दी,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों की सृजनशीलता को नमन, विविध रंगों में सजी एक चित्र देखकर लिखी गयीं रचनाएँ सच में अद्भुत है। सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
मेरी रचना को भी आपने स्थान दिया आभारी है हम दी।
सभी रचनायें बेहद खूबसूरत हैं
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभ दिवस छोटी बहना
बहुत सुन्दर एक तितली सी प्रस्तुति रंगों से भरी। आभार 'उलूक' के तितली उड़ाने के प्रयास को भी जगह देने के लिये यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दी -- आज पञ्च लिंकों के प्रांगण में खिली इस बसंत वाटिका को देख मन बाग़ - बाग़ है |हर और बासंती छटा है .फूल है , तितलियाँ हैं औए भावनाओं के उमड़ते मकरंद साहित्यिक भाईचारें की सुगंध बिखेर रहे हैं | खूब सार्थक सृजन हुआ तितली , फूल और बसंत के बहाने से हालांकि आदरणीय सुशील जी के शब्दों में --- तितली को क्या पता उस पर किसी को कुछ लिखना है |आज की रचनाओं पर अभी नजर भर मारी है | अभी किसी पर लिख नहीं पायी हूँ -- बाद में लिखूंगी | सभी रचनाकार साथियों को बहुत बहुत बधाई | सभी ने बेहतरीन लिखा है |
जवाब देंहटाएंआपको भी हार्दिक बधाई -- अत्यंत मेहनत से सुंदर लिकंक संयोजन के लिए |
बसंत पर को मेरी ओर से कुछ पंक्तियाँ
खिलो बसंत -- झूमे दिग्दिगंत --
सृष्टि के प्रांगण में उतरे
सुख के सुहाने सूरज अनंत |
झूमो रे !गली-गली ,उपवन उपवन ;
लुटाओ नव सौरभ का अतुलित धन
फैलाओ करुणा- प्रेम का उजास .
ना हो आम कोई ना हो खास ;
आह्लादित हो ये मन आक्रांत !
खिलो बसंत-- झूमे दिग्दिगंत !!!!!!!
सादर और सस्नेह ------
शुभदोपहर....सुंदर संकलन.......ये कदम बढ़ते रहें......
जवाब देंहटाएंआज पांच लिंकों का आनंद पर खिल उठी है बसंत की बगिया। रंग बिरंगी रचनाओं से खिलखिला रहा है आज का अंक।
जवाब देंहटाएंसभी भागीदार रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं साथ-साथ आभार भी इस आयोजन को सफल बनाने के लिए।
बसंत लिखने के साथ-साथ उसे महसूस ना भी होता है जोकि बखूबी रचनाकारों ने अपना कमाल दिखाया है इस विषय पर किए गए सृजन में।
हम-क़दम के बढ़ते क़दम सचमुच उत्साहवर्धक है। आप सभी सुधिजनों का पुनः- पुनः आभार।
कृपया महसूस ना को महसूसना पढ़ें। धन्यवाद।
हटाएंरेणु जी को हार्दिक आभार सार्थक टिप्पणी के साथ बसंत पर रचना जोड़ने के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविन्द्र जी --- सादर आभार |
हटाएंआदरणीय दी बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइतनी सारी रंग बिरंगी खूबसूरत तितलियाँ एक साथ
वो भी गाती गुनगुनाती
आज की प्रस्तुति किसी हसीन बगीचे सी लगी
जिसमें रचनाकारों ने अपनी रचना की सुगंध भर दी
बेहद शानदार।
हम कदम के हर कदम के साथ उत्सुकता बढ़ती जा रही है
अगले शिखर का नाम क्या है और क्या लिखेंगे
खैल की मंडी
जवाब देंहटाएं.......................
मंच सजा
बोलियां लगी
ये बिका
वो बिका
उसे इसनें खरीदा
इसे उसने खरीदा
कला बिक गई
खैल बिक गया
बोली लगी
अमीरों ने लगाई
कौन बिका
कौन रह गया
गरीबों नें तालियां बजाई
किसी को ढैला ना मिला
कही पैसों की बरसात हो गई
बिकना भी अब यहां
सम्मान की बात हो गई
क्या मेरी टीम
क्या तेरी टीम
सब पैसों का खैल है
निचोड़ रहे है जो
बस गरीबों का ही तेल है
-----------------------------
https://deshwali.blogspot.com/2018/01/blog-post_86.html
आदरणीय दी बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरंग बिरंगी खूबसूरत शब्दों से सृजनशीलता और भी निखर गई..दूर तक चलेगी हमकदम..
सभी रचनाकारों को बधाई
आभार।
तुम मेरी तितली बन जाओ
जवाब देंहटाएंमैं तेरा गुलाब बन बन जाऊं।
बहुत बहुत आभार मेरी तितली को बगिया में रसपान कराने को। सभी की रचनाएं बहुत ही उत्कृष्ट हैं। पुनः धन्यवाद सञ्चालक मण्डल को
तुम मेरी तितली बन जाओ
जवाब देंहटाएंमैं तेरा गुलाब बन बन जाऊं।
बहुत बहुत आभार मेरी तितली को बगिया में रसपान कराने को। सभी की रचनाएं बहुत ही उत्कृष्ट हैं। पुनः धन्यवाद सञ्चालक मण्डल को
बहुत सुन्दर रंगारंग हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!! बहुत सुंंदर संकलन । खूब तितलियाँ उडीं ...सभी रचनाएँ लाजवाब।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम आज का संकलन 👏👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंमहकी सी फुलवारी
आज उड़े गंध अति प्यारी
मन उपवन सा आज सज गया
हिय तितली बन आज उड़ गया !
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति है दीदीजी ऐसा लग रहा है की ऋतुराज के आगमन पर सभी ओर तितलिया मँडराती हुई बसंत का काव्यात्मक स्वागत उत्सव मना रही हैं
जवाब देंहटाएंहम कदम के इस कदम से तो सबके मन खिल गए
सभी रचनाएँ बहुत सुंदर एवं मनमोहक है 👌
सभी को खूब बधाई 👏👏
और मेरी रचना को मान देने के लिए अति आभार 🙏
आप सभी का दिन मंगलमय हो इस कामना के साथ सादर नमन शुभ दिवस 🙏🙏😊
आज हलचल पर बसंत घिर आया तितली के बहाने । शब्दों के मकरंद ने ऐसा जादू बिखेरा कि पाठक तितली बन खिंचे चले आ रहे हैं । ये आयोजन बेहद सराहनीय है । हलचल टीम को बहुत बहुत बधाई । सभी रचनाएं अनोखी हैं । सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं । सादर
जवाब देंहटाएंऋतुराज, सजाकर साज
जवाब देंहटाएंझूमता आया !
खिल उठे पुष्प,कलियों का
मन हरषाया !
चहुँ ओर, उठे हिलोर
मगन मन भाया,
टेसू पर लागे फूल,
आम हरषाया !
सतरंगी सुमनों संग
सजी है 'हलचल'
अभिनव रचनाओं संग
बिखेरे परिमल !!!
- मीना शर्मा
सभी रचनाकारों ने दिए गए विषय पर अपने अपने ढ़ंग से जो भी लिखा, सराहनीय है। मैंने सबकी रचनाएँ पढ़ीं। विविधता में एकता के दर्शन हुए। मेरी रचना को शामिल करने हेतु हृदय से आभार। सादर।
सुन्दर प्रस्तुति यशोदा बहन एवं "पांच लिंकों का आनंद" के ब्लॉग पर बसंत का अवतरण अच्छा लगा। इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंबासंती छटा बिखेरती खूबसूरत रचनाएं...
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
सादर आभार...
वाह...
जवाब देंहटाएंसतरंगी चमक लिए वासंती आभा बिखेरती रचनाओं का संगम.
एक से बढ़कर एक सुन्दर कड़ियों का संकलन.
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद .
बहुत बहुत आभार.
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंबासंती छटा बिखेरती खूबसूरत रचनाएं...
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
सादर आभार...
'यशोदा दी संग सखी श्वेता' के स्तुत्य सद्प्रयास ने सही में वासंती अहसास को बंद मुट्ठियों तक पहुंचाया. साधुवाद, आभार एवं बधाई!!!
जवाब देंहटाएं