दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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गुरुवार, 25 जनवरी 2018
923....हो रहे पात पीत सिकुड़ी सी रात रीत ठिठुरन भी गई बीत
सादर अभिवादन।
भारतीय संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को मौजूदा संविधान को स्वीकृति मिली और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया अतः कहा गया कि यह पूर्ण स्वतंत्रता को याद करने की तिथि है।
कल 26 जनवरी है।
अपने गणतंत्र पर गर्वित होकर उत्सव मनाने का दिन।
गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाऐं।
आइये अब चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -
आदरणीय सुनील कुमार सजल जी के लघु व्यंग पर अपनी नज़र डालिये-
उनकी अधीक्षिका उन पर अंकुश पर अंकुश लगाती हैं ।पीना-खाना, मौज-मस्ती,, घूमने -फिरने और लड़कों के संग दोस्ती पर अंगुलियां उठाती हैं । आखिर वे वयस्क हो गयी हैं ।समझदारी उनमें भी आ चुकी है फिर तरह तरह के अंकुश क्यों .....?"
आदरणीया मीना भारद्वाज जी की एक मर्मस्पर्शी रचना आपकी नज़र-
प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की एक रचनात्मक पहल जिसने देशभर के लेखकों को एक मंच प्रदान किया अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति को पाठकों के समक्ष लाने में। हमारे नियमित ब्लॉगर इस संग्रह में सम्मिलित हैं। सभी को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आदरणीया अभिलाषा जी ब्लॉग जगत् में लगातार सक्रिय हैं अपनी विभिन्न बहुआयामी प्रस्तुतियों के साथ। इंसानी रिश्तों का हृदयस्पर्शी चित्र उकेरती उनकी एक प्रस्तुति आपकी सेवा में -
धीरे धीरे होश में आ गए. छुट्टी मिली तो घर आ गए. घर में रेस्ट किया और माला - बबलू की सेवा का आनंद लेते रहे. दोनों के गौर से देखते तो सोचने लगते की दोनों कितने अच्छे हैं. मन में विचार आये की कम से कम इन दोनों से तो ढंग से बोल लिया करूँ. अब इन्हें नहीं डांटना है. दोनों ने बहुत सेवा की है. पर ये शब्द जबान पर नहीं आए और माँ बेटे से दूरी घटी नहीं. ऑफिस के लोग भी हालचाल पूछते रहे हैं. उन्होंने सोचा अब ऑफिस में भी ज़रा नरमी बरतनी है.
गणतंत्र दिवस की हलचल हमें उल्लास से सराबोर करती है। इस अवसर पर आदरणीया शुभा मेहता जी की नायाब प्रस्तुति का आनंद लीजिये-
हो रहे पात पीत सिकुड़ी सी रात रीत ठिठुरन भी गई बीत गा रहे सब बसंत गीत भरी है मादकता तन-मन-उपवन में समय होता यहीं व्यतीत बौराया मन बौरा गया तन और बौराई टेसू-पलाश गीत-गात में भर गई प्रीत -मन की उपज
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यह चित्र देखकर आप पच्चीस विषयों में रचना लिखसकते हैंः
मसलनः तितली, फूल, मकरंद,पराग, मौसम, पत्ते, डाल, रंग
इत्यादि इत्यादि
आप अपनी रचनाऐं शनिवार (27 जनवरी 2018 )
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक (29 जनवरी 2018 ) में प्रकाशित होंगीं।
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक
(11 जनवरी 2018 ) को देखें या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें
सुप्रभात रवींद्र जी, विविधापूर्ण बहुत सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता तैयार किया है आपने...सब एक बढ़कर एक हैं। सुंदर सूत्रों का संयोजन। हम-क़दम का नया विषय आकर्षित कर रहा है।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुतीकरण बेहतरीन प्रस्तावना संग. गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.मेरी रचना "आदत" को लिंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
सुप्रभात रविन्द्र जी ...सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ..सुंंदर प्रस्तुतिकरण ,सभी रचनाएँ लाजवाब !मेरे इस छोटे से प्रयास को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।" पंखुडियां "के सभी रचनाकारों को बहु बहु बधाई ।
बेटियां कंधो पर झूलती बेटियों की किलकारियां शरारत से जेब से सिक्के चुराती तितलियां लेटे हुऐ बाप पर छलांग लगाती शहजादियां टांगों पर झूले झूलती यह जन्नत की परियां
सोचता हूं बार बार सोचता हूं बाप बेटियों को कितना प्यार करता होगा सुबह सुबह जब काम के लिये निकलता होगा दिल में नामालूम सी कसक तो रखता होगा उसके जहन में ख्यालात कहर मचाते होंगे सुबह देर तक सोई बेटी के माथे को चूमना जल्द उठने पर उसको साथ पार्क ले जाना कभी उदास मन से बालकनी में तन्हा छोड़ जाना
बाप कितना प्यार करता होगा आखिर कितना ? वक्त ही कितना होता है कितनी तेज है जिंदगी वो रुकना चाहता है लेकिन वो रुक नहीं सकता कभी कभी तो गली के नुक्कड़ से मुड़ते हुऐ एक नजर डालने के लिये भी वो रुक नहीं सकता उसे जाना होता है फिर लौट आने के लिये,
आदरणीय रविन्द्र जी --- सभी साहित्य मित्रों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयाँ | सच लिखा आपने आज अपने गणतंत्र पर गर्वित होने का दिन है जिसके पीछे ना जाने कितने लोगों की अनथक मेहनत , तपस्या और बलिदान हैं | उन सभी को नमन करते अपने संविधान और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता का प्रण ही सच्ची देश भक्ती है | आज की तक़रीबन सभी रचनाएँ पढ़ी है | बहुत उम्दा लगी सभी | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और आपको भी बहुत बधाई इस सुंदर लिंक संयोजन के लिए |
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शुभ प्रभात अग्रज रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
भारतीय गणतंत्र की शुभकामनाएँ
सादर
सुप्रभात रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंविविधापूर्ण बहुत सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता तैयार किया है आपने...सब एक बढ़कर एक हैं। सुंदर सूत्रों का संयोजन।
हम-क़दम का नया विषय आकर्षित कर रहा है।
वाह
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
बहुत खूबसूरत प्रस्तुतीकरण बेहतरीन प्रस्तावना संग. गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.मेरी रचना "आदत" को लिंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं'स्वभाव' को शामिल करने का धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात रविन्द्र जी ...सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ..सुंंदर प्रस्तुतिकरण ,सभी रचनाएँ लाजवाब !मेरे इस छोटे से प्रयास को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।" पंखुडियां "के सभी रचनाकारों को बहु बहु बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत संकलन |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सभी रचनाकारों को बधाई
गणतंत्र की शुभकामनाएँ
सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ..सुंंदर प्रस्तुतिकरण के साथ सभी रचनाएँ बढिया.. सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी विविधापूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बाप की परियां
जवाब देंहटाएंबेटियां
कंधो पर झूलती बेटियों की किलकारियां
शरारत से जेब से सिक्के चुराती तितलियां
लेटे हुऐ बाप पर छलांग लगाती शहजादियां
टांगों पर झूले झूलती यह जन्नत की परियां
सोचता हूं बार बार सोचता हूं
बाप बेटियों को कितना प्यार करता होगा
सुबह सुबह जब काम के लिये निकलता होगा
दिल में नामालूम सी कसक तो रखता होगा
उसके जहन में ख्यालात कहर मचाते होंगे
सुबह देर तक सोई बेटी के माथे को चूमना
जल्द उठने पर उसको साथ पार्क ले जाना
कभी उदास मन से बालकनी में तन्हा छोड़ जाना
बाप कितना प्यार करता होगा आखिर कितना ?
वक्त ही कितना होता है कितनी तेज है जिंदगी
वो रुकना चाहता है लेकिन वो रुक नहीं सकता
कभी कभी तो गली के नुक्कड़ से मुड़ते हुऐ
एक नजर डालने के लिये भी वो रुक नहीं सकता
उसे जाना होता है फिर लौट आने के लिये,
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन.....
जवाब देंहटाएंगणतन्त्रदिवस की शुभकामनाएं...
आदरणीय रविन्द्र जी --- सभी साहित्य मित्रों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयाँ | सच लिखा आपने आज अपने गणतंत्र पर गर्वित होने का दिन है जिसके पीछे ना जाने कितने लोगों की अनथक मेहनत , तपस्या और बलिदान हैं | उन सभी को नमन करते अपने संविधान और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता का प्रण ही सच्ची देश भक्ती है | आज की तक़रीबन सभी रचनाएँ पढ़ी है | बहुत उम्दा लगी सभी | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और आपको भी बहुत बधाई इस सुंदर लिंक संयोजन के लिए |
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