सादर अभिवादन
सड़क, गली, मुहल्ले, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड के आस- पास गंदे,
मैले-कुचैले,रूखे बाल, बेतरतीब वेशभूषा में आवारा घूमते चार-छः बच्चों के झुंड दिखना आम बात है। कचरा बीनते, आपस में भद्दी गालियाँ बकते लड़ते-झगड़ते ये बच्चे कुदरत के ऐसे फूल हैं जिन्हें
अभाव और दरिद्रता का जीवन मिला।
मेरी तकलीफ़ और ज़्यादा बढ़ जाती है जब इनके डेंड्राइट,कोरेक्स,वाइटनर जैसे नशे का शिकार होने की ख़बर पढ़ती हूँ। नशे की इस लत को पूरा करने के लिए ये मासूम मानसिक रोगी, शातिर अपराधी की भाँति चोरी -छिनतई जैसे काम करते हैं समय से पहले परिपक्व होकर । कितना दुखद है न हम इन बच्चों के लिए सिवाय सहानुभूति प्रकट करने के और कुछ मदद नहीं कर पाते हैं। कहते है आज के बच्चे कल का भविष्य होते हैं। पर ऐसे बीज जाने किस समाज का निर्माण करेंगे। विचार करियेगा।
आज की रचनाएँ.......
प्रेम को परिभाषित करने में हर शब्द, हर भाव असमर्थ हो जाते है।
पढ़िये यशोदा दी की लेखनी से प्रसवित
आज भी प्रेम
अपरिभाषित है,
नव्य है....
काम्य है....
ऐसा कौन सा
जीव होगा...
जो अछूता है
जादू नहीं चला
-*-
समसामयिक घटनाक्रमों को अपनी कलम की नोक से
कुरेद कर नयी इबारत गढ़ती पढ़िये
आदरणीया अलकनंदा सिंह जी को
ये परेशानियां जिस्मानी नहीं हैं औ
ये ख्वाहिशें रूमानी नहीं हैं
और ये खिलाफतें भी रूहानी नहीं हैं
कि अब ये आवाज़ें उठ रही हैं
उन जमींदोज वज़ूदों की जानिब से,
-*-
जाते-जाते साल के आखिरी दिन सन सत्रह
दे गया ज़ख्म गहरा,कैसे मनाएं साल अट्ठरह ,
दर किसी के आयी सज अर्थी कोई जश्र में डूबा
देश के लोगों का जश्न मनाना लगे बड़ा ही अजूबा ,
ऐसे ताजा तरीन खबर पे भी किसी ने नज़र न डाली
चार जवानों के शोक पर लोग कैसे मना रहे खुशहाली
-*-
प्रेम,सौहार्द्र भाईचारे का सुखद स्वप्न बुनती
आदरणीया शुभा जी की कलम से
आपस में प्रेम है
न जाति ,न भाषा
की बाधा है कोई
एक स्वर में
गा रहे सब
हम एक हैं
-*-
दुनिया के रवैय्ये से परेशान होकर मन की शांति की तलाश में
आदरणीया प्रीती सुराना जी कलम से
कतरा-कतरा
विश्वास-अपनापन
कर्तव्यपरायणता-समर्पण
और
प्रेम तलाशता
*मेरा मन*
-*-
पौराणिक पात्रों के माध्यम से आज के अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछती आदरणीय सुधा जी की लेखनी से एक सारगर्भित कहानी
अर्जुन आज की कक्षा में
यदि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है तो सबसे पहले हिंदी भाषा को अंग्रेजी भाषा जितना गौरव प्रदान करना जरूरी है। अन्यथा एक दिन
ऐसा आएगा कि भारत की संस्कृति पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी
और फिर कोई कुछ नहीं कर पाएगा! "
" पर यह सब तो भारत वासी ही कर सकते हैं। हम और तुम कुछ नहीं कर सकते। आखिर उन्हें ही तो अपना भविष्य तय करना है।"
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सुधीनामा...जाना पहचाना नाम
आदरणीय दीदी साधना वैद...
शोभित गगन के ललाट पर
ओ करुणाकर भुवन भास्कर,
स्वर्णिम प्रकाश से तुम
उदित हो जाओ
जीवन में मेरे
और आलोकित कर दो
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और चलते-चलते पक्षियों के रोचक और ज्ञानवर्द्धक संसार से
आदरणीय राकेश जी के कैमरे से
ब्राउन रॉक चैट या भारतीय चैट (ओएनंथे फेसा) चैट (एसएक्सिकोलिने) उपप्रजाति में एक पक्षी है और यह मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य भारत में पाया जाता है यह अक्सर पुरानी इमारतों और चट्टानी क्षेत्रों पर पाया जाता है।
बताइयेगा आज का अंक कैसा लगा।
आप सभी के बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा में
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंएक बार फिर
एक प्रश्न चिन्तनीय...
लावारिश से घूमते बच्चे
ये सब सरकारी दामादों के है
जो एक रुपए किलो में चांवल खरीदकर
तेरह रुपए में बेचकर शराब पीते हैं...
बच्चे क्या करें..कबाड़ बीनकर पैसा कमाते हैं
खाते हैं और बचे पैसे घरपर देने की बजाए
उन्हीं की राहपर चल पड़ते हैं...
हम सुधर भी जाएं तो...
ये कभी नहीं सुधरेंगे....
आभार...ज्वलन्त प्रश्न
सादर
प्रश्न बहुत हैं। प्राथमिकता किस प्रश्न को हल किये जाने की होनी चाहिये ये पाठ्यक्रम अभी तैयार होने में शायद जमाने लगें। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसही कहा सर आपने ! हम टाट में मखमल का पैबंद लगाकर गर्व महसूस करने के आदी हो गए हैं...
हटाएंहमेशा की तरह सार्थक और सारगर्भित!!!
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन अंक को पढ़ते- पढ़ते अनायास ही हमारा ध्यान आज के अग्रलेख में वर्णित भूमिका पर जाकर फोकस हो जाता है जिसे और आगे बढ़ा दिया है अपनी टिप्पणियों में आदरणीया यशोदा बहन जी और आदरणीय डॉक्टर सुशील सर ने।
जवाब देंहटाएंसंकलन में विविधता का प्रधान पाठकों को अवश्य प्रभावित करता है।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
सीमा पर सैनिकों की शहादत का क्रम अनवरत ज़ारी है यह गंभीर चिंता का विषय है। इस विषय पर हमारा सहज हो जाना और भी चिंता का विषय।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबड़े-बड़े एनजीओ और सरकारें भी इनके लिए बहुत-कुछ करने की बातें तो करती हैं लेकिन स्थिति जस की तस रहती हैं। आम आदमी देख-देख कर अभ्यस्त हो चुका होता है, फिर संवेदन होने का प्रश्न कैसा? ...................
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
बहुत सारगर्भित बातों से आज की लिंक की शुरुआत..
जवाब देंहटाएंविविधतापूर्ण संकलन रोचक, सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
बहुत सुंदर प्रस्तुति..।
आदरणीय श्वेताजी ने जो मुद्दा उठाया है वह गंभीर चर्चा का विषय तो है ही, गंभीरता से कुछ करने का भी विषय है! हम अपने बच्चों की पढ़ाई पर लाखों रुपए खर्च करते हैं । अब तो पहले की तरह ज्यादा बच्चे भी नहीं होते,बस एक या दो । क्या हम में से हर परिवार एक, सिर्फ एक गरीब बच्चे की कम से कम साधारण शिक्षा का खर्च उठा सकता है? यदि कर पाएँ तो अवश्य करें । मैं अपने शहर के बाल सुधार गृह कई बार गई हूँ। वहाँ मैंने जो देखा, सुना, द्रवित कर देने वाला था...उनमें से हर बच्चे की अपनी कहानी है जिसमें ना राजा है ना रानी है और ना परियाँ....उसमें है भूख, अभाव, मारपीट, नशाखोरी, अपराध....सरकार से प्रति बच्चे के लिए एक निश्चित रकम आती है,अनुदान आते हैं, दान भी आते हैं पर किसके पेट में जाते हैं कोई नहीं जानता।
जवाब देंहटाएंआज की सार्थक, विविधतापूर्ण प्रस्तुति व भूमिका के लिए श्वेताजी को साधुवाद एवं बधाई ।
लाज़वाब...बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंभूमिका में डूबने के बाद... कठिन है कुछ कहना
जवाब देंहटाएंसार्थक श्रम
श्वेता जी ,भूमिका का प्रश्न ,एक कटु सत्य है ... सिवाय सहानुभूति के हम कुछ नही कर पाते और शायद ये सहानुभूति भी क्षणिक होती है....।सोचते हैं कुछ करें इनके लिए लेकिन फिर" मेरा -मेरा "में लीन....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्र आज की हलचल में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार श्वेता जी ! आज की भूमिका में आपने जिस मुद्दे को उठाया है वह मेरे मन को भी अक्सर विचलित करता है ! इसी सन्दर्भ में मैंने भी एक लेख लिखा है जिसमें अपने कुछ सुझाव भी दिए हैं ! लिंक दे रही हूँ समय मिले तो अवश्य पढियेगा ! http://sudhinama.blogspot.in/2009/04/blog-post_13.html
जवाब देंहटाएंजी आभार दी हम जरुर पढ़ेगे।
हटाएंशुभ संध्या बहुत ही सुंदर आभार आदरणीय आपका
जवाब देंहटाएंश्वेता जी आज का संकलन बहुत ही गंभीर विषय से शुरू हुआ है इन बच्चों को सभी के प्यार की आवश्यकता है न कि झूठे वादों और दीन दृष्टि की
जवाब देंहटाएंश्वेता जी आभार, मार्मिक पृष्ठभूमि और इस मार्मिक विषय से हम मुँह नहीं मोड़ सकते है। हमें आज तक समझ नहीं आया कि मैं इनकी मदद कैसे करूँ ? कुछ एन.जी.ओ. इस पर काम करती हैं, परन्तु मेरे इलाके में इसका प्रभाव नहीं दिखता जिससे मन आहत होता है। इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई। सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ श्वेता जी. धन्यवाद इस सुंदर संकलन के लिए. सभी सूत्र उम्दा हैं.
जवाब देंहटाएंश्वेता जी बहुत ही गंभीर और शोचनीय विषय है यह. समाज का एक घिनौना चित्र.जो मर्माहत करता है. परंतु इनके पीछे एक बड़ा रैकेट होता है जो प्रशासन की नाक तले अपना काम धड़ल्ले से करता है. और पुलिस की जेब गरम करके वे बेखौफ छोटे छोटे बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर कर देते हैं। इन जैसे कुकृत्यों के चलते ही देश की प्रगति बाधित होती है.
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अप्रतिम संकलन ...👏👏👏👏👏👏👏👏👏
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