19 नवेम्बर..
जिसमें उलूक, कारोबार, चूहा, दिल्ली, बिल्ली का भी जिक्र है
अधखुली खिड़की का
और समाजवाद का
सन्नाटे में कभी..
सृष्टि का सार नहीं न है
आखिर आज क्यूँ...
मज़ाल है कोई हटे जेहन के पास से
छपवा देंगे..
उलूक के पन्ने में हम
याद कीजिएगा आप.. वो दिन..
अधखुली खिड़की से.......अनु अन
अधखुली खिड़की से,
धुएं के बादल निकल आए,
संग साथ मे सोंधी रोटी
की खुशबु भी ले आए,
सृष्टि का सार...अंशु जौहरी
रंगों की मृगतृष्णा कहीं
डरती है कैनवस की उस सादगी से
जिसे आकृति के माध्यम की आवश्यकता नहीं
जो कुछ रचे जाने के लिये
नष्ट होने को है तैयार
आज क्यूँ ?.....पुरुषोत्तम सिन्हा
आज क्यूँ ?
कुछ अनचाही सी बेलें उग आई हैं,
मन की तरुणाई पर, कोई परछाई सा लगता है,
बिखरे हो टूट कर पतझड़ में जैसे ये पत्ते,
वैसा ही बेजार ये,
कुछ अनमना या बेपरवाह सा लगता है.......
मजाल है जो ज़ेहन से रुखसत हो.....पम्मी सिंह
ऐसी भी जहीनी क्या?
बेफिक्री वाली हंसी हंसना चाहती हूँ ..
इत्ता कि सामने वाले की हंसी या तो गायब हो
(मानो कह रहा लो मेरे हिस्से की भी ले लो)या हंसने लगे
और मन के किसी कोने में बैठा भय बस..सहम ही जाए..
मुसाफिर हूँ बस.. खुशनसीब शज़र की
लंच बाक्स से झांकता है समाजवाद...अपर्णा वाजपेई
कुछ डिब्बों में रखी होती हैं करारी- कुप्पा तली हुयी पूरियां
और कंही,
चुपके से झांकती है तेल चुपड़ी तुड़ी-मुड़ी रोटी,
कुछ बच्चे खाते हैं चटखारे लेकर-लेकर
बासी रोटी की कतरने, तो कुछ;
देशी घी में पगे हलवे को भी देखकर लेते हैं
"वो दिन"....मीना भारद्वाज
बर्फ से ठण्डे हाथ और
सुन्न पड़ती अंगुलियाँ
जोर से रगड़ कर
गर्म करने का हुनर
तुम्हें देख कर
तुम ही से सीखा है ।
पन्ना उलूक का
धोती है कुर्ता है
झोला है लाठी है
बापू की फोटो है
मास्साब तबादले
के लिये पीने
पिलाने को खुशी
खुशी तैयार है
‘उलूक’ के पास
काम नहीं कुछ
अड़ोस पड़ोस
की चुगली का
बना लिया
व्यापार है ।
आज बस इतना ही..
गालियाँ नहीं न खानी है
यशोदा
शुभप्रभात दी,
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह.....आज की तारीख की महत्ता के साथ आज का सुंदर संकलन,और दी आपने तो सारी रचनाओं के शीर्षक से एक कविता भी बना डाली।
बहुत सुंदर।
सराहनीय रचनाएँ है सारी दी और सुगढ़ संयोजन।
सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी शुभ प्रभात आज का अंक विशेष लगा ख़ासकर "लंच बाक्स से झांकता है समाजवाद" सभी रचनायें बेहतर। सादर
विविधतापूर्ण सुन्दर प्रस्तुति। इतिहास के पन्नों को पलटना खासकर तब जब विवाद सामने हो, अत्यन्त ही आवश्यक है।कएक अन्य लिंक पर की गई टिप्पनी प्रस्तुत है:
जवाब देंहटाएंइतिहास प्रयोगधर्मी का सेट नहीं हो सकता। ''अभिव्यक्ति की आज़ादी'' शौर्य की प्रतीक एक रानी का चरित्रहनन या मर्यादाहनन नहीं होना चाहिए। अत्याधुनिक होने के बावजूद सभ्यता-शालीनता-मर्यादा आज भी वांछित है। इसी मर्यादा के कारण जायसी की अवधी भाषा में कृति ''पद्मावत'' सूफी परम्परा का प्रसिद्ध ''महाकाव्य'' बन गई।
ऐसे मे आज की प्रस्तुति अत्यन्त महत्वपूवपूर्ण
सादर नमन।
सुप्रभात ! खूबसूरत और रोचक प्रस्तावना संग विविधताओं से परिपूर्ण खूबसूरत पुष्पगुच्छ की तरह मनमोहक लिंक संयोजन . सादर आभार!
जवाब देंहटाएंआपके बनाये पोस्ट में खो जाते हैं
जवाब देंहटाएंढ़ेरों आशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
सुप्रभात!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओ का संगम,नित न ई रचनाओ से साक्षात्कार मन को बेहद ह्रास्रित करती है।
आज के रविवारीय अंक मे मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार...!!!
सुप्रभात। भूमिका में गूढ़ता का समावेश। बेहद खूबसूरत रचनाओं का संकलन जिसमें विविधता पूरी तरह से परिलक्षित हो रही है। सभी चैनल रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंकृपया चैनल को चयनित पढ़ें। धन्यवाद।
हटाएंसुप्रभात..दीदी
जवाब देंहटाएंआज की दिनांक की महत्ता दर्शाती प्रस्तुति के साथ
बहुत बढिया संकलन..मेरी रचना को शामिल करने के लिए
धन्यवाद,
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
आभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सराहणीय प्रयास
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति. मेरी रचना को शामिल करने के लिये सादर आभार. सभी चयनित साथियों को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों का चयन आज की हलचल में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !
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