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बुधवार, 6 जुलाई 2016

355...मर जाना किसे समझ में आता नहीं है...

सादर अभिवादन
आज रथयात्रा है..पर ईद आज नहीं है
आज ही के दिन पाँच लिंकों का आनन्द का
पहला अंक प्रकाशित हुआ था
पंचाग के अनुसार..पर
अंकों के आधार पर अभी दस दिन शेष हैं

वर्षांत अंक कैसा हो..और क्या हो 
इस अंक में ये प्रश्न मैं 
आपकी अदालत में रखती हूँ

बहरहाल देखिए आज की पसंदीदा रचनाएँ...



" तुम खुदा से मांगों तुम्हारी जान बख्श दे शायद ,,
मुझे मेरे ईश्वर पर पूरा भरोसा है ...

दर्द से विक्षिप्त हूँ फिर विश्व का दर्द भी
पात पर अटकी है हर घड़ी यह जिंदगी

न है इस्लाम खतरे मेंन हैं श्री राम खतरे में
तुम्हारे शौक़ में, इंसानियत, इंसान खतरे में ! 
पेड़ का दर्द... साधना वैद
अभी तो खड़ा हूँ
अभी तो हरा हूँ  
अनगिनत पंछियों का
बसेरा खरा हूँ  !



रिमझिम बरसे मेघ है....रेखा जोशी
आसमाँ गरजता मेघ घटा घिरी घनघोर
रास रचाये दामिनी  मचा रही  है शोर 



आप से अब कोई गिला भी नहीं..
और कोई हमें मिला भी नहीं..!


ये है "पाँच लिंकों का आनन्द"  के प्रथम अंक में प्रकाशित रचना
मरने की बात 
कोई भी मरने वाला 
किसी भी जिंदा 
आदमी को 
मगर कभी भी 
बताता नहीं है ।

आज बस इतना ही...
आज्ञा दीजिए यशोदा को



ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी
प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी




5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । आभारी है 'उलूक' धूल खा रहे एक सूत्र को झाड़ पोछ कर यहाँ फिर से सजा देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
    पाँच लिंकों के आनन्द का एक वर्ष पूर्ण होने पर हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार दीदी
      ऩहीं हुआ है साल पूरा अभी
      365 वें अंक मे होगा पूरा
      366 वां अंक नव वर्षांक होगा
      सादर

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर सार्थक सूत्रों से सजी आज की आनंदानुभूति ! एक सफल आनंदवर्धक वर्ष के पूर्ण होने की दिशा में अग्रसर होने के उपलक्ष्य में अग्रिम शुभकामनायें ! मेरी प्रस्तुति को आज सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. रचना के सम्मान के लिए अाभार अापका यशोदा जी ....

    जवाब देंहटाएं

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