सादर अभिवादन..
आज सब आनन्दित हैं
दिन भी मस्त है
उत्सव भी मस्त है
एक अघोषित
मित्रता दिवस..
विरोध भी है
स्वीकार्य भी है..
पर आज की चुनिन्दा रचनाएँ
कुछ तो
इस दिवस के साथ है
इस देश के साथ है
कविताओं और कहानियो के साथ भी है...
पापी हैं वे लोग कि जिनको देश न अपना भाता है
'भारत को हम नष्ट करेंगे', पागल ही चिल्लाता है.
जिस भूमि ने हम सबको इतना सुंदर परिवेश दिया.
रहो प्रेम से मिलजुल कर के संतों ने उपदेश दिया.
ये कहकर गया था जब अबकी बार आउंगा
माँ गोद में तेरी सर रख कर जी भरकर सोउँगा ।
लाल मेरा तू तो है भारत माता का प्रहरी
इसीलिये नींद तेरी रहती थीं आँखों से ओझल
आजाद कलम
उन्नत विचार
मन में लिए विश्वास
पैर धरातल पर पड़े
जीवन में आया निखार
भाव मन के स्पष्ट हुए
छलकपट से दूर हुए
स्वतंत्रता के पुरोधा
बन्धनों से मुक्त हुए
पत्र विहीन पेड़ की उजड़ी हुई डाल को
दया भाव से कभी भी मन में न आँकिए
यहीं पर के नीड़ में अवतरित पंख हैं
उड़ रहे परिंदों में किरन भी टाँकिए
आती है जब
बसंत पंचमी
झूमती है
समस्त प्रकृति
हर्षित होता है
हर जीव
गाती है धरा
यौवन के गीत...
आज बस इतना ही
आज्ञा दें दिग्विजय को
श्रेष्ठ रचनाएँ
जवाब देंहटाएंआभार..
आपकी चुनी गई कवितायेँ पढ़ना बहुत अच्छा लगता है |
जवाब देंहटाएंआज अपनी रचना यहाँ देख बहुत अच्छा लगा |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
चुनिन्दा रचनाऐं आनंदित करती है। बिभिन्न प्रकार की रचनाऐं एक ही मंच पर मिल जाती है। अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-:> अब खून भी बहता नहीं, पर जख्म भी बढते गये,
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बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमस्त रचनाओं
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंको के साथ मनभावन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात...
जवाब देंहटाएंदेर से आना हुआ...
पर आया तो....
आनंद आ गया...
आभार सर आप का।