भाई विरम सिंह जी परीक्षा की तैय्यारी में व्यस्त हैं
वे सफल हों ऐसी शुभकामना करता हूँ
आज की चुनिन्दा रचनाओं की कड़ियो की ओर चलते है..
"अंदाजे ग़ाफ़िल में....चन्द्र भूषण मिश्र ग़ाफ़िल
सच है के तुझसे कोई रिश्ता नहीं
जी तेरे बिन पर कहीं लगता नहीं
है तस्सवुर ही ठिकाना वस्ल का
इश्क़ मुझसा भी कोई करता नहीं
"कुछ अलग सा में.....गगन शर्मा
"फूँक-फूँक कर कदम रखना।"
पिछले रविवार, एक स्टूल से उतरते समय अपने कदमों को जमीन पर रखने से पहले फूंकना भूल गया और पैरों के बजाए कमर के बल फर्श पर लंबायमान हो गया। इस क्रिया के दौरान हाथों ने पैरों की नाफ़र्मानि को सुधारने की कोशिश की होगी, पर जिसका काम उसी को साजे वाली कहावत को ध्यान में नहीं रख पाए होंगे और बस आका को बचाने की कोशिश में खुद को चोटिल कर बैठे....
"सुधिनामा में..आशा लता सक्सेना
“सम्वेदना की नम धरा पर” फैली काव्य धारा विविधता लिए है |
साधना की ‘साधना’ लेखन में स्पष्ट झलकती है |
बचपन से ही साहित्य में रूचि और
कुछ नया करने की ललक उसमें रही
जो रचनाओं के माध्यम से समय-समय पर प्रस्फुटित हुई |
"शान्तम् सुखाय में...भागीरथ कनकानी
बच्चे खो रहें हैं अपना बचपन
अब वो नहीं खेलने जाते
मैदानों में, पार्कों में, गलियों में,
अब वो देखने नहीं जाते
दशहरे, नागपंचमी, गणगौर
के मेले में
"सरोकार में...अरुण रॉय
बड़ा बनिया
देता है उधार में
अनाज, तेल, हथियार
पंडित नहीं कराता पूजा
उधार में
और ये रही आज की प्रथम कड़ी
उम्र अभी कच्ची है मेरी ,
श्रम इतना मुझसे होता नहीं।
मुझे मेरा स्कूल बुलाता है,
क्यों तुम्हे सुनाई देता नहीं।
देखे हैं ख्वाब कई मैंने ,
हौसलों की मुझमे ताकत है।
पोछा बरतन मत करवाओ,
कुछ बन जाने की चाहत है।
इसी के साथ आज्ञा दे दिग्विजय को
वाह..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी प्रस्तुतियाँ एक से बढ़ कर एक ! मेरे काव्यसंग्रह''सम्वेदना की नम धरा पर', की समीक्षा को सम्मिलित करने के लिये आपका आभार दिग्विजय जी ! बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र सुंदर प्र्स्तुति ।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक
जवाब देंहटाएं