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सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

808...सोते हुए समाज का बुद्धिजीवी वर्ग !

सोते हुए समाज का बुद्धिजीवी वर्ग ! 
समाज में नवचेतना के प्राण फूंकता हुआ परन्तु अपने आगे आने वाले नवांकुर पीढ़ी का संहारक। तथ्य अज़ीब किन्तु कटु सत्य ! 
इसका प्रमाण आपको देश -विदेश में होने वाले कवि सम्मेलनों में 
साक्षात् देखने को मिलेगा। 
जहाँ मंच पर आमंत्रण उसी ख्याति प्राप्त कवियों को दिया जाता है जो वर्षों से जनता के मनोरंजन का साधन बनकर रह गए हैं।  
जिनका साहित्य से कोई सरोकार नहीं केवल साहित्य के नाम का 
तमग़ा अपने ऊपर चस्पा कर  प्रत्येक मंच पर साहित्य को 
कलंकित करते रेंग रहें हैं। 
रक़्त पान करना इनकी प्रकृति केवल आजीविका चलाने हेतु ! साहित्य मंच को एक मठ बना रखा है जिस  पर वर्षों से एकाधिकार इनका। परन्तु एक बात में ये सच्चे साहित्य साधकों से अव्वल हैं। बातें बनाना ,श्रोता गणों को वो सुनाना जो वे सुनना चाहते हैं 
आख़िरकार इसके दोषी हम भी हैं। 
अब आप कहेंगे कैसे ? 
उचित प्रश्न है आपका !
हम जैसे साहित्यकार ब्लॉगिंग पर ही अपनी 
सृजनात्मक क्षमता दर्शाने में लगे हैं। 
मंचों पर होने वाले कवि सम्मेलनों में भाग लेना नहीं चाहते, हो सकता है कुछ भाई -बहनों के पास समय का अभाव हो और 
किसी को भय हो लोग क्या सोचेंगे ! 
परन्तु मैं इस मंच से इतना कहना चाहूँगा 
वे बहरूपिये आपकी अस्मिता लूटा रहें हैं कब जागोगे ? 
वास्तविक मंच पर आइए नहीं तो ये साहित्य समाज में रह रहे जोंक बचे -खुचे साहित्य की गरिमा भी पी जायेंगे।
''हम ब्लॉगिंग में मस्त 
इन जोंकों से 
जनता त्रस्त'' 

सोचना आपको है !

( प्रस्तुत विचार मेरे वास्तविक अनुभव पर आधारित हैं।
राष्ट्रपिता "महात्मा गाँधी" 
को  "पाँच लिंकों का आनंद" 
परिवार हृदय से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

दुर्गे निशुम्भशुम्भहननी......
आदरणीय "पुरुषोत्तम सिन्हा" 


 कात्यायनी कालरात्रि यति कैशोरी कौमारी क्रिया,
कुमारी घोररूपा चण्डघण्टा चण्डमुण्ड विनाशिनि ,
क्रुरा  चामुण्डा  चिता  चिति चित्तरूपा चित्रा चिन्ता,
बहुलप्रेमा प्रत्यक्षा जया जलोदरी ज्ञाना तपस्विनी।

 छंद स्रग्विणी.......आदरणीया "रेखा जोशी"



 ज़िन्दगी से मिले है बहुत गम हमें
आंख  आंसू   लिए  गुनगुनाते  रहे
,
काश मिलती हमें ज़िन्दगी में खुशी
ज़िन्दगी  साथ   तेरा   निभाते   रहे

 सोच रहा है इतना क्यूँ .......शाहीद कमाल
आदरणीया "यशोदा अग्रवाल" द्वारा संकलित  


 जिस का कुछ अंजाम नहीं वो जंग है दो नक़्क़ादों की 
लफ़्ज़ों की सफ़्फ़ाक सिनानें लहजों की शमशीर निकाल 

अधूरी..... आदरणीया "शालिनी रस्तोगी" 


शुरू से मुझे 
चुप रहने की आदत सी थी 
पर तुमने 


आज्ञा दें। 

"एकलव्य" 

15 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    गांधी..
    एक महान योद्धा
    और शास्त्री.
    एक महान देश प्रेमी
    दोनों की जन्म तिथि है आज
    यदि दोनों आज होते
    तो इस देश की कल्पना कीजिए...
    विचार है मन में.. लिखूँगी जरूर
    पर इस मंच पर नहीं
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई ध्रुव जी
    बेहतरीन प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. कमाल की प्रस्तुति। क्रातिकारी लेखन शैली। साधुवाद एकलव्य जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया. ब्लॉगर साहित्यकार सम्मलेन का आयोजन कर लें "इन जोंकों से" निपटने के लिए!

    जवाब देंहटाएं
  5. ध्रुव जी, प्रभावपूर्ण भूमिका से लिंकों की सुरुवात
    वास्तविक मंच पर आइये...विचारणीय है
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात।
    सुन्दर लिंकों का संकलन प्रस्तुत किया है भाई ध्रुव जी ने ,सामयिक भूमिका लिखी है ,बधाई।
    आज भारत के दो महान सपूतों की जयंती है। एक महात्मा गाँधी जी दूसरे लाल बहादुर शास्त्री जी। इन अज़ीम शख़्सियतों ने भारतीय जीवन दर्शन को नयी ऊँचाइयाँ दी हैं। इन्हें हमारा नमन।
    आज गांधी दर्शन पर लोग बंटे हुए नज़र आते हैं भारत में लेकिन दुनिया गांधीवाद को आज भी सराहती हुई अपने लिए शान्ति के मार्ग तलाश रही है। भारत में सरकारों द्वारा गांधीवादी आन्दोलनों को तरजीह न देना और उन्हें बर्बर हिंसक तरीकों से कुचलना उनकी तानाशाही प्रवृत्ति उजागर करना है।
    देश को स्व. लाल बहादुर शास्त्री जैसा प्रधानमंत्री अब शायद ही मिले जो घोर अभावों में भी मूल्यों को सीने से लगाए हुए था , जिनके निधन के बाद पता चला कि बच्चों की ज़िद के चलते ली गयी कार की क़िस्तों का क़र्ज़ उनके सर पर था।
    हमारे नियमित पाठक आदरणीय विश्व मोहन जी ने गांधी जी को याद करते हुए सारगर्भित लेख प्रकाशित किया है अपने ब्लॉग पर - "गांधी और चम्पारण" जिसका लिंक है-
    http://vishwamohanuwaach.blogspot.in/2016/10/blog-post.html

    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
    आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. साझा करने के लिए हार्दिक आभार।
      वर्ना शोर बहुत है इन युगपुरुषों के नाम का । आत्ममंथन कम है ।

      हटाएं
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति सटीक विश्लेषण के साथ। सुन्दर सूत्र चयन।

    जवाब देंहटाएं
  8. धुव जी, बेहतरीन भूमिका. आपकी सोच से शत प्रतिशत सहमत हूं. आजकल साहित्य के नाम पर कुछ स्वनामधन्य लोग कब्जा किये हुए हैं, अपनी वाह-वाह सुनने में इतना व्यस्त कि कुछ नया लिख तक नही पा रहे. Bloging में व्यस्त लोग इससे बाहर नही आना चाहते.
    आज की सभी रचनायें बेहद सार्गर्भित हैं. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण । आदरणीय ध्रुवजी द्वारा बुद्धिजीवी वर्ग को किया गया आह्वान झकझोर देता है मन को ।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छा लगा । सभी रचनाकारों को बधाई !

    क्या आपको वास्तव में लगता है कि कविताओं के आधार पर कविता मंच पर आमंत्रित किया जाता है ? क्यों ना एक परंपरा शुरू की जाये। कविताओं का चयन हो। कवि का नाम गोपनीय रहे। चयन होने तक। वर्ना पत्रिकाओं में भी छपेगा नहीं नाम हुए बिना। तो ब्लॉग ही बचता है पाठकों तक पहुँचने का माध्यम। सोशल मीडिया पर भीड़ इतनी है कि परिचित भी नहीं पढ़ते। तो कैसे कवि पहुंचे पाठक तक ?

    जवाब देंहटाएं
  11. उम्दा लिंक संकलन ...सुन्दर प्रस्तुतिकरण....

    जवाब देंहटाएं

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