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सोमवार, 17 जुलाई 2017

731....सत्य की खोज !

सत्य की खोज ! बड़ा ही चिरपरिचित परन्तु  दूर की बात 
सुनने में कर्णप्रिय 
वास्तव में छलावा 
स्वयं को छलने ,स्वयं ही मैं दिन में सौ झूठ बोलता हूँ ,सभ्यता का दिखावा किन्तु 
अंतरात्मा रात्रि में 
उद्वेलित करती है ,फूट पड़तीं हैं 
रचनायें 
धो देती हैं सारे मैल 
अनावरण करती है मेरे ढ़ोंगीपन  का 
क्षणभर 
में 
सोमवार का दिन ,पुनः एक सत्य की 
ख़ोज 
''पाँच लिंकों का आनंद'' 
के माध्यम से 

सादर अभिवादन  



कहते हैं ,आंचलिक भाषा की मिठास किसी और भाषा शैली में कहाँ और जब कहानी की बात हो तो पूछिए ही मत!
 आदरणीय ''दिग्विजय अग्रवाल'' की प्रस्तुति एवं ''प्रशांत पांडेय'' द्वारा लिखित 


 उस समय तो हम यही सोचे थे की आदिवासी लोग है, 
गरीब हईये है.......माई-बाप जल्दी सादी करके 
काम निपटा देना चाह रहा होगा। 
छौ  गो बच्चा में चार गो बेटिये है; आ ई सबसे बड़ी है.

प्रेमी की बाट जो रही नायिका न जाने कितने ही स्वप्न अपनी पलकों पर सँजोए कुछ कह रही है 
स्वयं से 
आदरणीय ''यशोदा अग्रवाल'' द्वारा संकलित एवं ''प्रीति श्रीवास्तव'' द्वारा रचित रचना 


 दे दे कोई साथी संदेशवा !
आंख मेरी भर आयी है !!
अबके आना फिर न जाना !
बैरी बलम तुमको दुहाई है !!


लोकतंत्र की धज्जियाँ तो उड़ी रहीं हैं आँसू बहाना व्यर्थ है तो क़व्वाली ही सही 
आदरणीय, रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' द्वारा रचित
  

ढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है
लोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये जाते हैं।

आगे से अरबी घोड़ी है, पीछे से लगती गैया है,
परदेशी दुधारू गैया के, नखरे भी उठाये जाते हैं।।


यदि हम अनुभव करें तो पंक्षी भी अपनी भाषा में कुछ कहते हैं हमारे 'राही' जी बख़ूबी इन्हें समझते हैं तभी तो इनके छायाचित्र  के साथ ढेर सारी रोचक जानकारी सदैव हमें देते रहते हैं 
आदरणीय, राकेश श्रीवास्तव 'राही' द्वारा संकलित छायाचित्र एवं पंक्षियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी    



ढोर फाख्ता, कबूतर की एक प्रजाति है 
जो गर्म शीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय एशियामें पाया जाता है। 

प्रस्तुति के आख़िरी पड़ाव पर जीवन को लय  प्रदान करती 
आदरणीय ''विश्वमोहन'' जी की सुन्दर रचना  


अंतरिक्ष के सूनेपन में
चाँद अकेले सो जाता है।
विरल वेदना की बदरी में
लुक लुक छिप छिप खो जाता है।
अकुलाता पूनम का सागर
उठती गिरती व्याकुल लहरें।


अंत में आपकी प्रतीक्षा में ''मेरी भावनायें'' 

खोज रहा हूँ 
मैं तुझको 
ओ ! मायावी 
मानव तृष्णा 
बाँध रहा हूँ, मैं प्रतिक्षण 
प्रीत की डोरी ,तुझसे अपना 
दिव्य दृष्टि तूं 
दे, दे ! मुझे 
हो जाऊँ सबल 
केवल सपना 


17 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर संकलन ध्रुव जी !बधाई ! विविधतापूर्ण सूत्र। प्रभावी भूमिका। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. आसान नहीं है सत्य की अभिव्यक्ति,ऐसे सहजता से स्वीकारोक्ति शुद्व अंतर्मन का परिचायक है। सुंदर पठनीय लिंकों का चयन और भावनाओं का 'प्रभावी' संयोजन ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ध्रुवजी, क्या कहें ! आपने मुझे भी घुसा दिया है. अन्यथा ये सच आपको बताने से नहीं चुकता कि आपकी पसंदों का मै कायल हूँ.....; पगलिया से ' उल्लू ' पक्षी तक!और फिर अंतिम बकबक!

    जवाब देंहटाएं
  5. Satye ko chhupaya nhi ja sakta, chahe woh loktantr ka chhalawa ho, Sawan agmun por preysi ka sajawut ho , nakasawadio ka bal vivah dikhawa go, Preet ki undikhi dori ho ya chand ka pooranmasi ke baad lukna chhupna ho...Sub udte pakshio ki bhanti soochak chinnh hai

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर संकलन ध्रुव जी,
    सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ
    प्रस्तुति बहुत अच्छी बन पड़ी है..
    सच सत्य की अभिव्यक्ति कठिन है..
    आभार सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. सत्य की खोज, जो शायद ही पूरी होती है !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुन्दर लिंक संयोजन....
    सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय एकलव्य . आपकी सत्य की खोज से भरी भावपूर्ण यायावरी का सुंदर पड़ाव आज के पांच लिंकों में देखकर बहुत अच्छा लगा | आपके चयन में सार्थक रचनाओं के साथ आदरणीय राही जी के पक्षी संसार को देख कर हार्दिक आनंद हुआ | बाकी रचनाकारों की रचनाएँ सराहनीय और सार्थक है -- सभी रचनाकारों और आपको हार्दिक बधाई --

    जवाब देंहटाएं
  10. इस अंक का संकलन उत्कृष्ट है, बधाई हो ध्रुव भाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. खूबसूरत लिंक तैयार किया , पढवाने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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