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शनिवार, 24 जून 2017

708 ... मानसून



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


तेज़ रफ्तार से
यादें संग होते हैं 




मैं देखता हूँ कि रेडियो, टेलीविज़न और फेसबुक पे 
लाशों ने टहलना शुरू कर दिया है | लोगों ने बेचना शुरू कर दिया है 
लाशों की जलावन, कुछ दफ्तरों में बैठे लोगों ने 
ख़रीद कर जलाना शुरू कर दिया है और नेताओं ने 
पकाना शुरू कर दिया है रोटी | अब बंटेगी रोटियाँ .
 मेरे सामने भी पड़ी है, क्या उठा लूँ  . . . . . 
खा लूँ  . . .नहीं  . . . .  हाँ  . .  . नहींहींहीं





‘खुषबू मेरे देष की’ मई 2017 (बरेली) के लघुकथा विषेषांक अंक
,वर्ष-5 में पृष्ट- 13 पर प्रकाशित
मेरी एक लघुकथा
आपकी नज़र कर रहा हूँ-






कोई ऐसी रात नहीं गुज़रती जिसमें तेरा सपना ना हो
कोई दिन नहीं गुज़रता जब तेरा एहसास अपना ना हो
इस मुस्कान के पीछे ज़ख्म जो अभी हरे से हैं
सुर्ख रखने को खुद को मेरा लहू पी रहे हैं
मरते दम तक तेरी राहों में पलकें बिछाए






जब चन्द्रमा अपनी रश्मियाँ बिखेर रहा होगा ।
जब जुगनु टिमटिमा रहे होंगे ।
जब रात का धुंधलका छाया होगा ;
जब दूर सन्नाटे में किसी के रोने की आवाज़ होगी ;
या कहीं पास पायल की झंकार  होगी ?
या चूड़ियों की कसमसाहट ?





लिखना सीखना शुरू की थी तब
आया तो अब तक नहीं
पाठक रहना ज्यादा आसान है

><><

फिर मिलेंगे

विभा रानी श्रीवास्तव





10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर पठनीय लिंकों का चयन,बहुत सुंदर रचनाएँ पढ़ने मिली।धन्यवाद विभा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात....
    सुंदर पठनीय लिंकों का चयन
    लिखना सीखना शुरू की थी तब
    आया तो नहीं अब तक
    ज्यादा आसान है पाठक रहना
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर सूत्रों के साथ बढ़िया प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभप्रभात....
    सुंदर....
    आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभ प्रभात । बेहद खूबसूरत रचनाओं का संकलन है आज का अंक। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर लिंक संयोजन....

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय, विभा जी, प्रणाम
    आज का अंक अच्छा लगा ,
    सुन्दर लिंको का चयन
    आभार। "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर लिंक संयोजन किया है आपने आज के लिए।

    जवाब देंहटाएं

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