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सोमवार, 1 मई 2017

654....क्या किया जाये अगर कभी मेंढक बरसात से पहले याद आ जाते हैं

आज विश्व मज़दूर दिवस है
आज एक दिन के लिए
मज़दूरों के सिहासन पर बिठलाया जाता है
विकास की इमारत में
किसी मजदूर का खून
पसीना बनकर बह रहा है,
वह फिर भी गरीब है
उसका अभाव
पुराने शोषण की 
पुरानी कहानी कह रहा है।
फिर भी....
मजदूर दिवस की शुभकामनाएँ

आज की रचनाओ पर एक नज़र.....

कभी बन कर 
कोल्हू के बैल 
घूमते रहे गोल-गोल 
ख्वाबों में रही 
हरी-भरी घास 
बंधी रही आस 
होते रहे चूर-चूर 
सबके करीब 
सबसे दूर 
मजदूर! 


रीती गागर 
गहरा सरवर
रीता अंतर 

ई जे लउकत बा, इंडिया ह इ
अउर हिंदोस्तान  गायब बा

खांसि के टिमटिमा रहल बा दीया
नीन गायब निदान गायब बा।


अचिन्हित तट....पुरुषोत्तम सिन्हा
निश्छल, निष्काम, मृदुल, सजल तेरी ये नजर,
विरान फिर भी क्यूँ तेरा ये तट?
सजदा करने कोई, फिर क्यूँ न आता तेरे तट?
बिन पूजा के सूना क्यूँ, तेरा मंदिर सा ये निर्मल तट?


जमाना जाने क्या समझे...आशा ढौंडियाल
शेर लिखो,ग़ज़ल या कलाम लिखो
ख़ुद ही पढ़ो, ख़ुद ही दाद भी दो
ख़ुद ही ढूँढो ख़ामियाँ बनावट में
ख़ुद ही तारीफ़ के अल्फ़ाज़ कहो
क्यूँकि ज़माना ना जाने क्या समझे?


रविकर के दोहे.....रविकर 
सच्चाई परनारि सी, मन को रही लुभाय।
किन्तु झूठ के साथ तन, धूनी रहा रमाय।।

सच्चाई वेश्या बनी, ग्राहक रही लुभाय।
लेकिन गुण-ग्राहक कई, सके नहीं अपनाय।।

बात सोचने की....डॉ. सुशील कुमार जोशी
कूँऐं के अंदर से 
चिल्लाने वाले 
मेढक की 
आवाज से परेशान 
क्यों होता है 
उसको आदत होती है 
शोर मचाने की 
उसकी तरह का 
कोई दूसरा मेंढक 
हो सकता है 
वहाँ नहीं हो 
जो समझा सके उसको 
दुनिया गोल है और 
बहुत विस्तार है उसका 

आज्ञा दें यशोदा को
सादर..













5 टिप्‍पणियां:

  1. आज तो सजदा किए जाता है ये मन इस तट....

    सुन्दर संकलन।।।। सादर धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह । आभार यशोदा जी 'उलूक' के मेंढक को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद ज्ञापन में विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ यशोदा जी ! आज आपने बहुत ही सुन्दर लिन्क्स का चयन किया है ! मेरी प्रस्तुति को भी स्थान देने के लिए आपका हृदय तल से धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं

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