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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

644.....विश्वविध्यालय बोले तो ? तेरे को क्या पड़ी है रे ‘उलूक’

सादर अभिवादन
नियम और कानून तोड़कर
आज फिर मैं ही आपके समक्ष...
क्या भी करें, आने वाले हर्ष के अतिरेक को रोक भी नहीं सकते...

ये जो दौर है उसके अपने कायदे
अपने कानून हैं,
हवाओं में तैराती हर बात,
शब्दश: सही होगी,
ये मुमकिन भी है, और नामुमकिन भी,

यूँ ही तुम्हारे साथ इक सफर याद आ गया...
मेरी गोद में तुम सर रख सो रहे थे,
और मैं तुम्हे निहार रही थी...
और रेलगाड़ी की खिड़की से चाँद,
हम दोनों के साथ-साथ चल रहा था...

सर्वोच्च स्थान
आदि शक्ति माता का
शाश्वत सत्य

गुज़रेंगे   लम्हात -ए -ज़िन्दगी  
अपनी   रफ़्तार   लिए ,
तराने  गुनगुनायेगी  ज़ुबां  
बजेंगे  धड़कनों  के  साज़   वहाँ। 
मुंतज़िर  है   कोई  
सुनने   को  मेरे  अल्फ़ाज़   वहाँ।


औकात की बात मत करना...ऋतु आसूजा 'ऋिषिकेश'
बूडा फ़क़ीर मुस्कराया और बोला सेठ जी जरूर आपने पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये होंगे जो भगवान ने आपको इतना सब कुछ दिया , 
आप बहुत अच्छा करते हैं जो अपने धन के भंडार में से 
कुछ गरीबों की सेवा मे लगा देते हैं।
जहाँ तक बात औकात की है। औकात आपकी भी वही है ,जो मेरी है ,बस आपके बस जीवन जीने के साधनों के लिये धन-दौलत अधिक है ,सारी दौलत यहीं रह जायेगी सेठ जी आपके साथ नही जायेगी । आप को भी एक दिन मिट्टी हो जाना है, और मुझे भी एक दिन मिट्टी हो जाना है, 
फिर किस की क्या औकात।।



अभी एक 
नया आया है 
तीन साल 
के लिये 

उसे भी 
कुछ बनाना है 
वो भी तो 
कुछ बनायेगा 
या कौवे की 
आवाज वाले 
किसी उल्लू 
की तरफ 
देखता 
चला जायेगा? 

आज अब बस...
आज्ञा दें दिग्विजय को
सादर












9 टिप्‍पणियां:




  1. शुभ प्रभात..
    अच्छी प्रस्तुति बनाई आपने..
    कोई नियम कायदा नही है इस ब्लॉग में
    बस लिंक पाँच या छः ही चाहिए
    यही एक नियम सख्त है..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर चयन आज सूत्रों का ! मेरी प्रस्तुति को भी सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार दिग्विजय जी ! बहुत-बहुत धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति। सलाम आप लोगों की मेहनत को। पन्ने का पन्ने की जगह हो लेना सब से बड़ा नियम हो जाता है। जिम्मेदारी निभा ले जाना सब के बस में नहीं होता है। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के सूत्र को सम्मान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. "पाँच लिंकों का आनंद" अब एक स्थापित वैचारिक मंथन का मंच है जहां आपकी टीम के आन्तरिक नियम-क़ानून होंगे। शायद उन्हें तोड़कर आप इस प्रस्तुति को लेकर हाज़िर / मुख़ातिब हो गए जिसमें पाठकों को किसी प्रकार के नियम -क़ानून तोड़े जाने का अनुभव नहीं हो रहा है।
    शब्द-सृजन के विभिन्न आयामों को पढ़ने और अपनी प्रतिक्रिया देने सुधि पाठक इस साइट का रुख़ करते हैं। आशा है आपकी टीम पाठकों की उम्मीद पर सदैव खरी ही उतरेगी। आज की रसमय ,भावप्रवण प्रस्तुति के लिए बधाई और मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर अभिवादन
      कोई नियम नहीं
      एक ही नियम....
      पाँच लिंकों का आनन्द रोज
      प्रकाशित होगा... डॉ. सुशील भाई जोशी ने ठीक ही लिखा
      पन्ने का पन्ने की जगह हो लेना सब से बड़ा नियम हो जाता है।
      सादर

      हटाएं

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