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रविवार, 11 दिसंबर 2016

513....प्रश्न तभी उठता है जब उत्तर नहीं मिलता है


जय मां हाटेशवरी...

आंखों में, अच्छे दिनों के सपने लिये...
सारा देश एक महीने से कतार में खड़ा है...
अपने कमाए पैसे की खातिर...
...जो कतार में खड़े नहीं हैं...
...शायद काला धन भी उन्हीं के पास है......
...कहीं वे कतार से बाहर रह कर...
...काले धन को सफेद तो नहीं कर रहे...
...आम आदमी तो कतार में खड़ा-खड़ा,
...
....अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहा है...
...अच्छे दिन आयेंगे...
...जनता का तप व्यर्थ न जाएगा...
....इस आशा के साथ पेश है आज की प्रस्तुति...
...इन चुने  हुए लिंकों के साथ...


खड़े पीठ करके भले उस तरफ हों
मगर मंजिलों को तके जा रहे हैं।
चले जा रहे हैं ।
बसे धडकनों में मेरी इस कदर कि
अमावस को पूनम कहे जा रहे हैं।

रास्ते में बहू ने कहा कि उसके साथ ठीक नहीं हुआ. सास ने बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. दो महीने होते-होते बहू को उल्टियों की शिकायत हो चली. सास, दादी बनने की ख़बर से फूली न समार्इ. बहू के बेटा तो नहीं हुआ पर एक बेटी का जन्म हुआ. दादी खुश तो हुर्इ पर उतनी भी नहीं कि कोर्इ उत्सव मनाया जाता.
 
कहावत है, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। विलंब करना उचित नहीं माना जाता है। निर्णय प्रक्रिया को देखें तो विलंब सदा हानिकारक भी नहीं होता है, वरन कई बार तो आवश्यक और लाभप्रद भी होता है। पर विलम्ब अधिक न हो, इष्टतम हो।  इष्टतम विलम्ब का अर्थ हुआ, उतना ही विलम्ब जितना सर्वोत्तम निर्णय लेने के लिये आवश्यक है। इष्टतम विलम्ब संतुलित निर्णय के लिये अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।

प्रश्न तभी
उठता है
जब उत्तर
नहीं मिलता है
एक ही
विषय
होता है
सब के
प्रश्न
अलग
अलग
होते हैंं

आखिर इस देश की राजनीति को यह हो क्‍या गया है, जो पाकिस्‍तान के लिए इस तरह की कोई गुंजाइश छोड़ती है, जिसमें उसे लगता रहे कि वह तमाम गलतियां करके भी भारत की नजर में वार्ता करने लायक बना हुआ है। भारत स्थित उसके उच्‍चायुक्‍त का यह दुस्‍साहस हुआ ही क्‍यों कि वह कोई प्रेस विज्ञप्ति दे दे कि पाक वार्ता के लिए तैयार है। क्‍या वे दो-ढाई माह पहले उड़ी में शहीद भारतीय सैनिकों का बलिदान तथा उसके बाद भारतभर में आग की तरह व्‍याप्‍त पाकिस्‍तान पर आक्रमण करने तथा भारत की तरफ से उसकी जलापूर्ति रोकने की जनभावना को भूल गए?

कोई देश तब बनता है जब उसका एक-एक नागरिक वहां अपने कर्तव्‍यों के निर्वहन में लगकर देश चलानेवालों से अपनी सुरक्षा की भावना रखता है। कर्तव्‍य निर्वाह करने में तो नागरिक लगे हुए हैं परंतु राष्‍ट्रीय-अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की राजनयिक व्‍यवस्‍था के दोषों और सड़ी हुई कार्यप्रणाली के कारण नागरिकों का जीवन सुरक्षित नहीं है। विशेषकर सैनिकों और किसानों का जीवन तो विगत 70 वर्षों से इस देश में सरकारी सुरक्षा की कागजी छतरी के बावजूद असुरक्षित ही बना रहा।

आज बस इतना ही...
आज की प्रस्तुति में....
इन रचनाकारों की रचनाओं को स्थान मिला...
आदरणीय पुष्पेन्द्र गंगवार
आदरणीय काजल कुमार
आदरणीय प्रवीण पाण्डेय
आदरणीय सुशील कुमार जोशी
आदरणीय विकेश कुमार बडोला

अब चलते-चलते...
रात भर
पू्र्णिमा का चाँद
लहरों से गुहार करता रहा
रात भर
नेह का बादल
प्यासी पृथ्वी पर बरसता रहा


धन्यवाद।







5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई
    आज के रचनाकारों के नाम
    अच्छा लगा..और उनकी रचनाएँ भी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. एक लम्बे समय से 'ब्लाग सेतु' पर नम्बर एक पर बनी हुई 'हलचल' बधाई की पात्र है। आज की सुन्दर प्रस्तुति में 'उलूक' के सूत्र 'बेवकूफ हैं तो प्रश्न हैं उसी तरह जैसे गरीब है तो गरीबी है' की चर्चा करने के लिये आभार कुलदीप जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. पूर्णिमा का चाँद लहरों को एटीएम समझकर उनसे नोटों की गुहार करता रहा. रात भर धपोलशंखी बादल वादों और दावों की बारिश करता रहा.

      हटाएं

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